पश्चिम बंगाल में दिवाली के दिन होती है मां काली की : दिवाली के दिन मां काली की होती है विशेष पूजा,जानिए पूरी कथा

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DIWALI KE DIN MAA KALI KI HOTI HAI VISHESH PUJA DIWALI KE DIN MAA KALI KI HOTI HAI VISHESH PUJA

DESK: कार्तिक महीने की अमावस्या की रात जब पूरे देश में दीपावली का शुभ त्यौहार मनाया जाता है तो वही पश्चिम बंगाल में (उड़ीसा और असम में भी) इस दिन मां काली की पूजा की जाती है बंगाली परंपरा में दीपावली को कालीपूजा ही कह कर संबोधित भी किया जाता है. ठीक इसी तरह उड़ीसा और असम की सामाजिक परंपराओं में इस पवित्र पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इसी दिन मां काली चौसठ हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं और रक्तबीज समेत अनेक राक्षसों और दुष्टों का संहार किया था. माना जाता है कि आधी रात को मां काली की विधिवत पूजा करने पर मनुष्य के जीवन के संकट, दुख और पीड़ाएं समाप्त हो जाती हैं, शत्रुओं का नाश हो जाता है और जीवन में सुख- समृद्धि का प्रवेश होता है .

मान्यता के पीछे है रोचक कथा

एक समय चंड- मुंड और शुंभ- निशुंभ आदि दैत्यों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था. उन्होंने इंद्रलोक तक पर अधिकार करने के लिए देवताओं से लड़ाई शुरू कर दी. सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे दैत्य रक्षा की प्रार्थना की. भगवान शिव ने माता पार्वती, जो जगज्जननी के रूप में पूजी जाती हैं, के एक रूप अंबा को प्रकट किया. माता अंबा ने इन राक्षसों का वध करने के लिए मां काली का रौद्र रूप धारण किया और अत्याचार करने वाले सभी दैत्यों का वध कर दिया. तभी एक अति शक्तिशाली दैत्य रक्तबीज वहां आ पहुंचा. रक्तबीज की विशेषता यह थी कि उसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरते ही उस रक्त से एक नया राक्षस पैदा हो जाता था, इसीलिए उसे रक्तबीज कहा गया.रक्तबीजको मारने के लिए महाकालीनेउसके शरीर में मौजूद खून की एक-एक बूंद पी ली और उसकी सारी प्रतिकृतियों को खा गईं.रक्तबीजको मारने के पश्चातकालीक्रोध में तांडव करने लगीं और उन्हें शांत करवाने के लिए भगवान शिव को उनके पैरों के नीचे लेटना पड़ा.कालीशांत हो गईं और शर्म की वजह से उन्होंने अपनी जीभ बाहर निकाल ली.