पोते-पोतियों की शादी की उम्र में खुद रचा रहें शादी : अपने परिवार के सदस्य को मुखिया बनाने की चाह में बुड्ढे कर रहे हर जतन
अररिया : बिहार में चल रहे पंचायत चुनाव में मुखिया जैसे पद पर कब्जा ज़माने के लिए लोग एक से एक कारनामे किए जा रहे हैं। उत्साह ऐसा है कि लोग दूसरी शादी तक कर रहे हैं। आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने के हिसाब से रिश्ते तय हो रहे हैं और लोग जीत भी रहे हैं। सिकटी प्रखंड में पंचायत चुनाव के दौरान पदों को लेकर मारामारी मची हुई है। यहाँ मुखिया पद से ज्यादा वार्ड सदस्य के लिए दौड़भाग मची है। पंचायत चुनाव में मुखिया जैसे पद पर कब्जा ज़माने के लिए लोग एक से एक कारनामे किए जा रहे हैं। कि आप हैरान हो जायेंगे।
बिहार के अररिया में एक बुजुर्ग ने इस उम्र में सिर्फ इसलिए निकाह किया कि मुखिया पद पर उसके परिवार का ही शख्श काबिज़ रहे। बुजुर्ग को कई पोते-पोतियां औऱ नाती-नातिन हैं। बुजुर्ग पत्नी के रहते रचाई नवयुवती से शादी। लोग किसी भी सूरत में चुनाव लड़ना और जीतना चाहते हैं। खुद नहीं तो अपनी पत्नी को चुनाव लड़वा रहे हैं। पत्नी नहीं लड़ सकती तो दूसरी शादी भी कर रहे हैं। मुखिया बनाने की चाह में कुछ लोग तो बुढ़े होकर भी इसके लिए अंतरजातीय विवाह भी कर रहे हैं और नवविवाहिता को मैदान में उतार रहे हैं।
सिकटी प्रखंड के पडरिया पंचायत में अत्यंत पीछडी महिला सीट पिछले बार हीं हो गया था जिस कारण मो. ताहीर ने अत्यंत पीछडी जाति की काम उम्र की महिला से शादी कर पंचायत चुनाव में अपने नयी पत्नी नसीमा खातुन 2016 में उतारा था ग्रामीणों का कहना है कि शर्त यह था कि यदि नसीमा खातुन चुनाव जीत जाती है तो उसे पत्नी के रूप में रखा जायेगा, यदि चुनाव हार जाती है तो पांच बीघा जमीन देकर उसे अलग कर दिया जायेगा। जो 1904 मतों से चुनाव जीती थी। वहीं 2021 में पूर्व पंसस जैनूद्दीन ने भी मुखिया बनने की चाह में अत्यंत पीछडी महिला साहीरा खातुन को चुनावी मैदान में उतारा है।
पंचायतों में कहां से आते हैं फंड :-
जानकारों का मानना है कि केंद्र के वित्त आयोग की तर्ज पर 1993 में देश के सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग की स्थापना की गई। इसके जिम्मे पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों की आर्थिक स्थिति की समीक्षा करना और इन संस्थाओं की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए विभिन्न कदम उठाना तथा पंचायतों को अनुदान सहायता प्रदान करना है। इसी के जरिए पंचायतों को सीधे राशि दी जाती है।
पंचायतों के लिए आवंटित राशि सभी वार्डों में बराबर बांट दी जाती है, ताकि सभी वार्ड का समान रूप से विकास हो सकें। एक पंचायत कई वार्डों में बंटी होती है। एक वरीय अधिकारी के अनुसार प्रत्येक ग्राम पंचायत को पांच साल में पांच-छह करोड़ रुपये दिए जाते हैं। अर्थात करीब एक से सवा करोड़ की राशि पंचायतें सालाना गांवों की कई योजनाओं के मद में खर्च करती हैं।
इतनी बड़ी धनराशि मुखिया व वार्ड सदस्य के द्वारा खर्च की जाती है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) तथा प्रधानमंत्री ग्रामीण योजनाओं की राशि सीधे पंचायतों के खाते में ट्रांसफर की जाती हैं।इनके अतिरिक्त शिक्षा व सिंचाई, हर घर नल का जल व पक्की गली-नाली जैसी अन्य विकास योजनाओं के मद में राशि भुगतान के लिए चेक काटने का अधिकार भी गांव की सरकार को ही है।जिस कारण मुखिया व वार्ड सदस्य के लिये मारामारी चल रही है।