लोस चुनाव के लिए INDIA का बड़ा हथियार : BJP की राजनीतिक काट के लिए लालू-नीतीश का 'जाति कार्ड' दाव,जानिए इनसाइड स्टोरी

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Lalu-Nitish's caste card to counter BJP's religious politics, know the inside story Lalu-Nitish's caste card to counter BJP's religious politics, know the inside story

PATNA- बिहार सरकार द्वारा जातीय गणना की रिपोर्ट राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व पीएम लालबहादुर शास्त्री की जयंती पर जारी कर दी गयी.आज सीएम नीतीश कुमार इस रिपोर्ट को लेकर बिहार की सभी 9 दलों की बैठक करने जा रहे हैं जिसमें रिपोर्ट के आधार पर सरकार द्वारा उठाये जाने वाले संभावित कदमोंकी चर्चा की जा सकती है,पर इसके इतर इस रोप्ट को जारी करने के पीछे 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपे के खिलाफ लालू- नीतीश ने बड़ा दाव माना जा रहा है.. धर्म की राजनीति को जाति के कार्ड तोड़ने की कोशिश के रूप में इसे माना जा रहा है.


बढ़ सकता है आरक्षण का दायरा

बिहार के सीएम नीतीश कुमार आज सर्वदलीय बैठक कर रहे हैं जिसमें जातीय गणना की रिपोर्ट पर चर्चा होगी.इसमें सरकार द्वारा उठाये जाने वाले कदमों पर विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों से राय ली जाएगी.इसमें आबादी के हिसाब से आरक्षण में बदलाव पर भी चर्चा हो सकती है.इसका संकेत नीतीश कुमार ने समोवार को मीडिया से बातचीत के दारौन दिया था जिसमें ये सवाल पूछा गया था कि क्या आरक्षण की सीमा बढायेगी जाएगी तो उन्हौने सर्वदलीय बैठक में सभी संभावित उपायों पर चर्चा की बात कही थी.बताते चलें कि पिछड़ा-अतिपिछड़ा और अनुसूचित जातियों का आंकड़ा 80 फीसदी से ज्यादा है,पर उस हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं है.


आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी की मांग

बिहार के सीएम नीतीश कुमार एक ओर जहां सरकार के स्तर पर उठाये जाने वाले कदमों पर फोकस कर रहे हैं तो उनकी सहयोगी आरजेडी और उनके नेता लालू प्रसाद यादव उस स्लोगन को फिर से दोहरा रहें है जिसमें कहा गया है कि ‘जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी भागीदारी’.ये नारा दलित नेता काशीराम वं जगदेव प्रसाद समेत कई नेता दे चुकें हैं.आरजेडी ने बड़े ही चालाकी से इस मुद्दे को लेकर अपने राज्यसभा सांसद मनोज झा को आगे किया. तेजस्वी यादव के साथ मीडिया के समक्ष आए मनोज झा ने खुले रूप से कहा कि गांधी जयंती के दिन जातीय गणना की रिपोर्ट जारी करना एक ऐतिहासिक कदम है और अब अब समय आ गया है कि जिसकी जितनी आबादी है उसको उसी हिसाब से हिस्सेदारी मिलनी चाहिए और इसमें किसी भी समाज को नफा नुकसान की बात नहीं करनी चाहिए.


मांझी ने भी आरजेडी की मांग का समर्थन किया

इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने भी अपनी बात रखी है और उन्होंने कहा है कि राज्य की बड़ी आबादी के साथ लगातार भेदभाव हो रहा है इसलिए अब समय आ गया है की आबादी के अनुसार ही सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी दी जाए. मांझी के इस बयान का बीजेपी के नेता शायद ही पूरी तरह से समर्थन कर पाए.

भ्रम की स्थिति में बीजेपी

इस रिपोर्ट पर विचार विमर्श करने के लिए नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक बुला ली है वहीं धर्म की राजनीति करने वाली बीजेपी इस मुद्दे पर भ्रम की स्थिति में दिख रही है एक तरफ बीजेपी के नेता इस रिपोर्ट का स्वागत कर रहे हैं और यह कह रहे हैं कि जातीय गणना करने में उनके दल की भी सहमति थी दूसरी तरफ ये नेता इस रिपोर्ट पर सवाल भी उठा रहे हैं ।सुशील मोदी और सम्राट चौधरी से लेकर गिरिराज सिंह तक ने इस रिपोर्ट को लेकर लालू नीतीश एवं तेजस्वी पर हमला बोला है.वहीं रिपोर्ट जारी होने के बाद पीएम मोदी ने एक सभा को संबोधित करते हुए इस मुद्दे पर अपनी बात रखी और विपक्षी INDIA गठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा कि इनलोगों के पास देश और राज्य के लिए विकास का की एजेंडा नहीं है.इसलिए येलोग समाज को जातियों में बाटना चाहते हैं.

फिर से मंडल कमंडल की राजनीति

बताते चलो की 90 के दशक में मंडल यानी जाति और कमंडल यानी धर्म की राजनीति खूब हुई थी। बीपी सिंह की सरकार द्वारा ओबीसी के लिए 27 फ़ीसदी आरक्षण नौकरी में घोषित किए जाने के बाद देश में काफी बवाल हुआ था, और बीजेपी ने उस समय बीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिसकी वजह से उस पर पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगाता रहा है. हालांकि बीजेपी हमेशा इसका खंडन करती रही. अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों की इंडिया गठबंधन पिछड़े और अति पिछड़े की 60 फीसदी से ज्यादा जनसंख्या की राजनीति कर बीजेपी को परास्त करना चाहती हुए।इसके लिए बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक की गयी है. अब बात बिहार की जातीय गणना के मॉडल पर पूरे देश में जातीय जनगणना करने की मांग तेज की जायेगी इसे चुनावी मुद्दा बनाया जायेगा.

बीजेपी ने सवर्णो को दिया था आरक्षण

हलांकि बीजेपी भी जाति की राजनीति अपनी सुविधानुसार करती रही है,संविधान लागू होने के समय से एससी और एसटी के लिए आरक्षण का प्रावधान है वहीं वीपी सिंह की सरकार ने पिछड़ा वर्ग के लिए नौकरी में 27 फीसदी का का आरक्षण दिया था.जबकि पिछड़ा समाज की मांग नौकरी के साथ ही राजनीतिक भागेदारी की भी रही है.वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 2018 में बीजेपी ने जातीय कार्ड खेलते हुए सवर्ण समाज के आर्थिक रूप से पिछले छात्र-छात्राओं को नौकरी में 10 फीसदी का आरक्षण दिया था जिसका फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को मिला और सवर्ण समाज के अधिकांश वोटरों ने बीजेपी का समर्थन किया और बीजेपी 2014 से भी ज्यादा सीट जीतकर मोदी के नेतृत्व में दोबारा सरकार बनाई.

2024 के चुनाव में बड़ा मुद्दा

लालू नीतीश एवं INDIA गठबंधन में शामिल अधिकांश दलों के नेताओं की सोच है कि बीजेपी के हिंदुत्व के एजेडें को काटने के लिए जाति के एजेंडे को आगे बढ़ाना होगा.लालू और नीतीश 2015 का बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम को उदाहरण के रुप में ले रहे हैं,जहां आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा के एक बयान को लालू-नीतीश ने लपक लिया था और अपनी जीत मान रही बीजेपी अंत समय में बुरी तरह हार गई थी।

राहुल गांधी भी जातीय गणना का मुद्दा उठा रहे

लालू-नीतीश को उम्मीद है कि इस मुद्दे के जरिए वो बीजेपी को नुकसान कर सकेगी। यही वजह है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत अन्य नेता भी पूरे देश में जातीय गणना करने की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के अधिकांश नेताओं ने महिला आरक्षण में भी पिछला वर्ग के लिए अलग से आरक्षण देने की मांग संसद में उठाई थी.इस मुद्दे पर बीजेपी थोड़ी असहज महसूस करती है जिसका फाईदा INDIA गठबंधन उठाना चाहती है.

बीजेपी को खोजनी होगी काट

वहीं जातीय गणना के मुद्दे पर भाजपा हमेशा से भ्रम की स्थिति में रही है वह ना तो इसको पूरी तरह से स्वीकार कर पा रही है और ना ही इसका विरोध कर पा रही। अब जबकि लालू नीतीश ने इस जातीय कार्ड को 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर खेला है तो बीजेपी भी अब इसकी काट के लिए कुछ ना कुछ ऐसा कदम जरूर उठेगी जिससे कि पिछड़ी जातियों का विश्वास बहाल रख सके.

जातीय गणना की रिपोर्ट जारी

इस कड़ी में बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट सोमवार को सार्वजनिक कर दी गई है. इस रिपोर्ट के अनुसार 63 फ़ीसदी से ज्यादा आबादी बिहार में पिछड़े(OBC) और अति पिछड़ों(EBC) की है जबकि दलित समाज(SC) की आबादी 19 फ़ीसदी और सामान्य वर्ग यानी सवर्ण की जनसंख्या करीब 15.2 फ़ीसदी है. इस रिपोर्ट कार्ड के जारी होने के बाद एक तरफ जहां लालू नीतीश और तेजस्वी जैसे नेता उत्साहित हैं,जबकि बीजेपी पशोपेश में है.

रिपोर्ट के आंकड़े

बिहार सरकार द्वारा जारी जातीय गणना की रिपोर्ट पर गौर करें तो बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है।इनमें हिंदू समुदाय की आबादी 81.9%, मुस्लिम की आबादी 17.7%, ईसाई 0.05%, सिख- 0.01%, बौद्ध 0.08%, जैन 0.0096% और अन्य धर्म के लोगों की आबादी 0.12% है।यानी कुल 13 करोड़ से ज्यादा की आबादी में 10.07 करोड़ हिंदू और मुस्लिम की आबादी 2.31 करोड़ है।

वहीं जातीय समूह की बात करें तो अत्यंत पिछड़ा- 36 फीसदी, पिछड़ा वर्ग- 27 फीसदी, अनुसूचित जाति- 19 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 1.68 फीसदी है।सामान्य वर्ग की कुल आबादी 15.2 फीसदी है.

215 जातियों की गणना

जातीय गणना के मुताबिक, बिहार में कुल 215 जातियां हैं,जिसमें सबसे ज्यादा आबादी 14 फीसदी यादव की है। कायस्थ- 0.60 फीसदी, कुर्मी- 2.87 फीसदी, कुशवाहा- 4.21 फीसदी, चंद्रवंशी- 1.64 फीसदी, धानुक- 2.13 फीसदी, धोबी- 0.83 फीसदी, नाई- 1.59 फीसदी, नोनिया- 1.91, कुम्हार- 1.40, पासी- 0.98, बढ़ई- 1.45, ब्राह्मण- 3.65, भूमिहार- 2.86, मल्लाह- 2.60, माली- 0.26, मुसहर- 3.08, राजपूत- 3.45, लोहार- 0.15, सोनार- 0.68, हलवाई- 0.60 फीसदी है।


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