लोकसभा चुनाव 2024 में BJP को मिलेगी चुनौती ! : विपक्षी एकता पर नीतीश का पैगाम , क्या कांग्रेस करेगी राह आसान

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PATNA: 16 फरवरी को समाधान यात्रा के समापन के साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मिशन 2024 में लगने का संदेश दे दिया है.शनिवार 18 फरवरी को भाकपा माले के मंच से नीतीश ने जब यह कहा कि हम इंतजार कर रहे है कि कांग्रेस हमें कब बुलाये और बैठ कर बात हो. हालांकि इसके बाद नीतीश ने इसी मंच से यह दावा भी किया कि अगर विपक्षी दल एक जुट हों जाये तो भाजपा 100 से कम सीटों पर सिमट जायेगी.


दरअसल नये साल की शुरूआत होने के साथ ही 4 जनवरी से समाधान यात्रा पर निकले सीएम नीतीश की यात्रा 16 फरवरी को पूरी हुई. इस य़ात्रा के क्रम में ही नीतीश ने कहा था कि समाधान यात्रा के बाद वे विपक्षी एकता के लिये प्रयास करेगें.हालाकि यात्रा के दौरान नीतीश राजनीतिक बयानबाजी से परहेज करते रहे . लेकिन समाधान यात्रा के समापन के साथ ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद के समक्ष नीतीश ने जिस तरह से विपक्षी एकता को लेकर कांग्रेस के पाले में गेंद डाल दिया उससे कांग्रेस भी भौचक्क है. नीतीश यही पर नही रूके उन्होनें कहा कि मेरी कोई ख्वाहिश नही है.यानि उनका एक ही लक्ष्य है कि 2024 में किसी भी कीमत पर बीजेपी को सत्ता में नही आने देना .हालांकि नीतीश के इस बयान का समर्थन सलमान खुर्शीद ने भी किया और उन्होनें दावा किया कि कांग्रेस की भी यही मंशा है . लेकिन साथ ही सलमान ने अलाकमान के समक्ष अपनी बात रखने की बात जरूर की और कहा कांग्रेस और विपक्षी दलो के बीच ILU यानि आई लव यू का संबंध है.


लेकिन सबाल यह उठता है कि आखिर कांग्रेस इतनी सुस्त क्यों है कि नीतीश को कांग्रेस से गुहार लगानी पड़ रही है. दूसरी ओऱ एक तरफ जब नीतीश विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं तो तेजस्वी ने विपक्षी एकता के लिये एक फार्मूला दिया है जिसमें उन्होनें ड्रायविंग सीट पर क्षेत्रीय पार्टियों को बैठाने की बात कही है. क्या कांग्रेस इस फार्मूले को स्वीकार करेगी . यानी बिहार , बंगाल , महाराष्ट्र झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिसा, दिल्ली जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दल कांग्रेस से ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं या उनकी सरकार है यानि वहां ड्रायविग सीट क्षेत्रीय दलों को मिले . जबकि राजस्थान मध्यप्रदेश छतीसगढ कनार्टक, गोवा ,उत्तराखंड, असम जैसे राज्यो की ड्रायविंग सीट पर कांग्रेस बैठे जहां उसका बीजेपी के साथ सीधा टक्कर है.यानि तेजस्वी ने एकता के साथ शर्त भी जोड़ दी है. अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस इसे स्वीकार करेगी.

दूसरी तरफ इस गठबंधन से अलग भी कई दल हैं जिसमें तेलांगना, आंध्रप्रदेश , तमिलनाडु त्रिपुरा, केरल जैसे राज्य है जो किसी भी कीमत पर कांग्रेस के साथ जाने को तैयार नही हैं. ऐसे में विपक्षी एकता का क्या होगा. वजह साफ है यहां क्षेत्रीय दलो का दबदवा ही नही कांग्रेस से सीधी टक्कर भी है.भला वे कांग्रेस के साथ जायें तो क्यो जायें.

दूसरी ओर नीतीश और तेजस्वी जिस मंच से भाषण दे रहे थे वहां वामपंथी दो महत्वपूर्ण पार्टिया सीपीआई और सीपीएम के बड़े नेता मौजूद नही थे जिनके वगैर त्रिपुरा केरल में गठबंधन संभव नही है.

यानि विपक्षी एकता में भी दो महत्वपूर्ण ग्रुप है जिसमें एक ग्रुप मे कांग्रेस राजद जद यू, एनसीपी, शिवसेना, झामुमो, सपा और वामपंथी पार्टिया है जो अगर एकजुट हो जाती है तो बीजेपी की परेशानी बढ़ सकती है.लेकिन सवाल उठता है कि ये पार्टिया भी पहले एक मंच पर क्यो नही आती है ताकि दूसरे ग्रुप को भी संदेश जाये.

हालांकि बिहार में 7 दलो के सत्ताधारी गठबंधन ने आगमी 25 फरवरी को पूर्णिया में महारैली आयोजित की है. देखना दिलचस्प होगा कि इस रैली में देश के अन्य विपक्षी नेताओं को बुलाया जाता है या नही या उस मंच से नीतीश और तेजस्वी विपक्षी एकता के लिये क्या एलान करते है. फिलहाल यह जरूर कहा जा सकता है कि नीतीश ने माले के मंच से कांग्रेस को संदेश देकर कांग्रेस के पाले में गेंद डाल दिया है और अब कांग्रेस के अगले कदम का इंतजार है. यानि नीतीश के दबाब की राजनीति कितनी कारगर होती है.. देखना दिलचस्प होगा.

संपादक अशोक मिश्रा की रिपोर्ट.