जातीय गणना पर सियासी घमासान : केन्द्र के हलफनामा पर राजनीति,सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार..
DESK:-बिहार में हो रही जातीय गणना को लेकर केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा दायर अपने हलफनामा का वापस लेकर दुबारा हलफनामा देने का मुद्दा अब राजनीतिक रंग ले चुका है.बिहार की सत्ताधारी महागठबंधन से जुड़ी आरजेडी,जेडीयू, कांग्रेस और वामपंथी दलों ने केन्द्र और बीजेपी को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है..जबकि बिहार बीजेपी के नेता जातीय गणना को लेकर सफाई देने में लगे हुए हैं.इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की खंडपीठ शुक्रवार 1 सितंबर को सुनवाई कर सकती है.
गृह मंत्रालय ने दिया हलफनामा
बताते चलें कि बिहार में हो रही जातीय गणना पर पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता एवं राज्य सरकार के साथ ही केन्द्र सरकार को हलफनामा दायर करने को कहा था.इसके लिए 28 अगस्त की अगली सुनवाई की तिथि तय की थी.केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से यह हलफनामा दायर किया गया थ जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा था कि जनगणना एक विधाई प्रकिया है,और किसी तरह की जनगणना कराने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास है.ऐसे में बिहार सरकार को सर्वे करने का अधिकार नहीं है.
महागठबंधन के नेता हुए हमलावर
केन्द्र सरकार के हलफनामे के बाद बिहार की महागठबंधन सरकार से जुड़ी जेडीयू, आरजेडी,कांग्रेस और वामपंथी दलों के नेता बीजेपी के खिलाफ हमलावर हो गए. और ये आरोप लगाने लगे कि केन्द्र सरकार और बीजेपी का असली चेहरा सामने आ गया है.केन्द्र सरकार का हलफनामा बिहार की जातीय गणना को रोकने का प्रयास है.जेडीयू नेता सह नीतीश सरकार के वित्त मंत्री विजय चौधरी ने मीडिया के समक्ष कहा कि भाजपा का असली चैहरा सामने आ गया है.इस प्रकिया को रोकने की साजिश के तहत कहा गया है कि बिहार सरकार को यह कराने का अधिकार नहीं है.संविधान से संघ सूचना के जिस इंट्री 69 की बात कही गयी है.उस पर पटना उच्च न्यायालय ने पहले ही साफ कर दिया है कि 2008 की भारत सरकार की अधिसूचना ही राज्य सरकार को इसके लिए अधिकार देती है.
हलफनामा की वजह से केन्द्र और बीजेपी निशाने पर
हलफनामा को लेकर शुरू हुई बयानबाजी के बाद केन्द्र सरकार ने अपने पुराने हलफनामे का वापस ले लिया और फिर से नया हलफनामा दिया है जिसमें पैरा पांच के उस अंश को हटा दिया है.इसमें केन्द्र सरकार ने कहा है कि केन्द्र सरकार की तरफ से पहले दिए गए हलफनामे में पाराग्राफ पांच को असावधानीवश जोड़ दिया गया था.इसलिए उस हलफनामे को सरकार वापस ले रही है और इस संशोधित हलफनामे को ही केन्द्र सरकार को कोर्ट मे हलफनामा माना जाए.
बिहार बीजेपी ने केन्द्र का किया बचाव
इस संशोधित हलफनामा के बाद बिहार बीजेपी के नेता केन्द्र सरकार के बचाव में आए.बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सह राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने कहा कि केन्द्र के हलफनामे ने स्पष्ट कर दिया है कि वह बिहार की जातीय सर्वे कराने के विरूद्ध नहीं है.संवैधानिक दृष्टि से इस मुद्दे पर केन्द्र और राज्य सरकार मे टकराव नहीं है,लेकिन राजद और जदयू इस पर राजनीति कर रही है.उन्होंने कहा कि सेंसस और सर्वे मुद्दे पर केंद्र सरकार के हलफनामा दायर कर संवैधानिक स्थिति स्पष्ट कर देने के बाद किसी को अनर्गल आरोप नहीं लगाना चाहिए, लेकिन थेथरोलॉजी करने वालों को कौन रोक सकता है? संविधान की धारा-3 के अनुसार सेंसस कराने का अधिकार केवल केन्द्र का ही.भाजपा का भी यही मत है.
2024 लोकसभा चुनाव का बनेगा मुद्दा
याचिकाकर्ता,बिहार सरकार और केन्द्र सरकार का जातीय गणना को लेकर मंतव्य कोर्ट मे आ गया है अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या फैसला देती है..वह पटना हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए बिहार में हो रही जातीय गणना को लेकर हरी झंडी दिखाती है या फिर बिहार सरकार के जातीय गणना के अभियान को झटका देती है.सुप्रीम कोर्ट का फैसला चाहे जातीय गणना के पक्ष में हो या विपक्ष में..पर ये स्पष्ट हो गया है कि यह मुद्दे अब राजनीतिक रूप ले चुका है और इस पर बयानबाजी और राजनीति 2024 के लोकसभा चुनाव तक जारी रहेगी.