BIHAR POLITICS : दलितों के अपमान पर गरमाई सियासत, 'भूलेगा नहीं बिहार' पोस्टर से आरजेडी पर सीधा वार


तेजस्वी की मुसहर रैली के बाद आया पोस्टर, डॉ. अंबेडकर जयंती से पहले बढ़ा सियासी तापमान
PATNA : बिहार की राजनीति में एक बार फिर पोस्टर वार ने माहौल गर्म कर दिया है, राजधानी पटना की दीवारों पर एक के बाद एक कई पोस्टर सामने आए हैं जिनमें आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव पर दलित समाज को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियों और कथित भेदभाव के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। अहम बात यह रही कि यह पूरा घटनाक्रम ऐसे वक्त में सामने आया है जब देशभर में 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती मनाई जाने वाली है, ऐसे में इन पोस्टरों ने न सिर्फ आरजेडी के दलित समर्थन के दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं बल्कि चुनावी मौसम में दलितों के सम्मान और उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर बहस भी छेड़ दी है।
'भूलेगा नहीं बिहार' बनी नई सियासी मुहिम
'भूलेगा नहीं बिहार' शीर्षक वाले इन पोस्टरों में आरजेडी के शीर्ष नेताओं के पुराने बयान और घटनाएं उजागर की गई हैं। साथ ही हर पोस्टर पर एक QR कोड दिया गया है, जिसे स्कैन करने पर वेबसाइट www.bhuleganahibihar.com खुलती है। वेबसाइट पर आरजेडी के कथित जंगलराज, परिवारवाद, भ्रष्टाचार और दलितों के खिलाफ अत्याचारों का विस्तृत ब्यौरा दिया गया है।
पोस्टरों में बताए गए आरोपः
पोस्टर में तेजप्रताप यादव द्वारा मांझी समाज के खिलाफ दिए गए एक विवादित बयान का जिक्र किया गया है, जिसे कई दलित संगठनों ने अपमानजनक बताया है। वहीं लालू यादव द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को लेकर की गई अभद्र टिप्पणी को भी प्रमुखता से दिखाया गया है, एक अन्य पोस्टर में यह आरोप लगाया गया है कि तेजस्वी यादव ने एक दलित आरजेडी नेता को जान से मारने की धमकी दी थी। इसी के साथ महिला विधायक संगीता कुमारी को दलित होने की वजह से गालियां दिए जाने की घटनाओं को भी उजागर किया गया है।
तेजस्वी की मुसहर रैली के बाद आया पोस्टर, सवालों में फंसी 'दलित प्रेम' की राजनीति
हैरानी की बात यह है कि यह पोस्टर तेजस्वी यादव द्वारा आयोजित मुसहर समुदाय की रैली के कुछ ही दिन बाद लगाए गए हैं, विपक्षी हलकों में इसे तेजस्वी के दलित समुदाय को लुभाने की कोशिश की प्रतिक्रिया माना जा रहा है। हालांकि अब इस पर दलित संगठनों और विरोधियों ने सवाल उठाने शुरु कर दिए हैं कि क्या यह रैली सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट थी ?
डॉ. अंबेडकर के सपनों का किया अपमान ?
इन पोस्टरों का संबंध 14 अप्रैल को मनाई जाने वाली डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती से भी जोड़ा जा रहा है। पोस्टर लगाने वालों ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि जिन लोगों ने अंबेडकर जी के आदर्शों की कसम खाई, वही आज उनके समाज के साथ अन्याय कर रहे हैं। पोस्टर में यह सवाल उठाया गया है कि क्या यही है वह 'समाजवादी सोच' जिसका दावा आरजेडी करती रही है ?
'काला दिन' और 'जंगलराज' का ज़िक्र फिर हुआ ताजा
इससे पहले लालू यादव के मुख्यमंत्री बनने के दिन को 'काला दिन' बताते हुए पोस्टर लगाए गए थे, जिनमें चारा घोटाले से लेकर 'तेल पिलावन-लाठी घुमावन राज' तक का उल्लेख था। अब जंगलराज का अत्याचार नाम से एक डॉक्युमेंट वेबसाइट पर अपलोड किया गया है, जिसमें आरजेडी शासनकाल के विभिन्न विवादों और कथित अत्याचारों को सामने लाया गया है।
राजनीति में नया मोड़, अब दलित सम्मान बन सकता है चुनावी एजेंडा
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले यह पोस्टर वार कई राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है, दलित वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे दलों के लिए यह बड़ा झटका है। वहीं आरजेडी पर दलित विरोधी मानसिकता का आरोप लगाने वाले संगठनों को अब एक नया मुद्दा मिल गया है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आने वाले दिनों में यह पोस्टर वार और भी तेज हो सकता है, खासकर तब जब दलित मुद्दों को लेकर भावनाएं और भी प्रबल होती हैं। ऐसे में देखना होगा कि आरजेडी इस चुनौती का सामना कैसे करती है और विपक्षी खेमा इसे किस हद तक चुनावी हथियार में बदल पाता है।