रथ यात्रा से श्रद्धालु काफी उत्साहित : 185 साल पुरानी परम्परा के तहत चैनपुर राजगढ़ से निकली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, भक्तों ने जमकर लगाया जयकारा

Edited By:  |
Reported By:
rath yaatra se shradhalu kaaphi utasaahit rath yaatra se shradhalu kaaphi utasaahit

पलामू:पलामू के चैनपुर राजगढ़ परिसर से हर साल की भांति इस साल भी रथ यात्रा धूमधाम से निकाली गई. रथयात्रा से पहले आज राज परिवार के द्वारा धूम धाम से गाजे बाजे के साथ भगवान जगन्नाथ,भगवान बलराम,माता सुभद्रा को रथ पर विराजमान कराया गया. इसके पहले गुरुवार को दोपहर में मंदिर में विधि-विधान से भगवान जगन्नाथ को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग और रथ पूजन भी किया गया था. रथयात्रा की अगुवाई शाही झंडे के साथ राज परिवार के टिकैत विश्वदेव नारायण सिंह,कुमार विवेक भवानी सिंह ने रथयात्रा का नेतृत्व किया.

रथयात्रा को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे. चैनपुर में रथयात्रा की गौरवशाली परम्परा लगभग 185 साल पुरानी है. विगत दो वर्षों से कोरोना के कारण रथयात्रा नहीं निकाली जा रही थी. अब इस साल निकल रहे रथ यात्रा से लोग काफी उत्साहित हैं. गाजे-बाजे व जयकारे के साथ निकाली गई रथयात्रा दर्शनीय होती है.

स्थानीय समेत शहर व सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों श्रद्धालु रथ यात्रा में पहुंचते हैं और भगवान के रथों को खींचते हैं. भक्तगण रथों को खींचते हुए करीब 2 किलोमीटर दूर कृष्णदह नदी स्थित मौसीबाड़ी ले जाते हैं. वहां भगवान दो दिन विश्राम के बाद वापस मंदिर लौट आते हैं. राज परिवार की मानें तो उनके पूर्वज ठकुराई छत्रधारी सिंह वैष्णव को भगवान जगनाथ में अटूट आस्था थी. उनके लिए प्रतिवर्ष रथयात्रा के मौके पर पूरी से प्रसाद आता था. किसी कारणवश एक बार प्रसाद नहीं पहुंच पाया. ठकुराई छत्रधारी सिंह को भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न दिया कि तुम अपने यहां मुझे प्रतिष्ठापित कराओ. ऐसा माना जाता है कि 1830-40 के सन्निकट मंदिर का निर्माण कराया गया था. भगवान जगन्नाथ में आस्था के कारण छत्रधारी सिंह ने अपने पोते का नाम जगन्नाथ दयाल सिंह रखा. तब से लेकर अनवरत रथयात्रा की परंपरा जारी है. 1895 से 1900 के कालखण्ड में राजा भगवत दयाल सिंह ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर इसे भव्य स्वरूप प्रदान किया था.


Copy