'अंधा' सिस्टम ! : एक महीने पहले ज़िंदगी में छाया अंधकार, ना कोई गिरफ्तार, मुआवजे का भी इंतजार

Edited By:  |
Reported By:
muzaffarpur-eye-hospital-eye-damaged-of-65-people-demanding-compensation muzaffarpur-eye-hospital-eye-damaged-of-65-people-demanding-compensation

जिस बिहार में सीएम के आदेश पर चंद मिनटों में शराब की बोतल ढूंढने में खुद पुलिस के मुखिया डीजीपी और नौकरशाह के मुखिया मुख्य सचिव लग जाते हैं। उसी बिहार में 25 से ज्यादा लोगों की आंखें छिनने वाले लोग FIR के एक महीने से ज्यादा बीतने पर भी ना गिरफ्तार किए जाते हैं और ना ही आंखें गंवा चुके पीड़ितों को कोई मुआवज़ा मिल पाता है। मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में 22 नवंबर को मोतियाबिंद के ऑपरेशन में आंखें गंवाने के मामले में हंगामा और सवाल उठने पर स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य सचिव ने दोषियों पर कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया था। लेकिन हालत ये है कि मामले की जांच रिपोर्ट आए एक महीना से ज्यादा बीत गया, किसी की गिरफ्तारी तो नहीं हुई, हां आंखों की रौशनी गंवा चुके पीड़ित जरूर मुआवज़े के लिए सिस्टम के आगे लाचार बने भटक रहे हैं।

कोई सिस्टम किस हद तक सड़ सकता है। कोई सिस्टम किस हद तक अंधा और बहरा हो सकता है। इसकी बानगी है आंखों की रौशनी गंवा चुके मुजफ्फरपुर के ये लोग। जिनकी आंखें मुजफ्फरपुर एक अस्पताल Muzaffarpur Eye Hospital की लापरवाही ने छीन ली और इनकी रौशनी भरी ज़िंदगी में अंधकार छा गया। कोई परिवार में अकेला कमाने वाला था, तो कोई बूढ़ा और बेसहारा था। आंखों की रौशनी गंवाने के बाद कमाने के लिए भी उसे दूसरों पर निर्भर रहना पड़ेगा। इन पीड़ितों को सरकार ने मुआवजा देने की घोषणा की थी। मुजफ्फरपुर के सांसद अजय निषाद ने लोकसभा में भी मामले को उठाते हुए मुआवज़ा देने की मांग की थी। लेकिन घटना के एक महीना से ज्यादा बीतने के बाद भी ये पीड़ित उसी सड़े सिस्टम के सामने मुआवज़े की मांग को लेकर दर-दर भटक रहे हैं। हालात ये है कि कोरोना बढ़ने के कारण इन्हें सिस्टम के आगे अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए धरना देने का भी अधिकार नहीं है।

दरअसल मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में 22 नवंबर को ज्यादा अनुदान की लालच में एक ही दिन में 65 लोगों का मोतियाबंद का ऑपरेशन किया गया। जबकि मानकों के मुताबिक एक दिन में 15 से ज्यादा ऑपरेशन नहीं किया जा सकता है। ऑपरेशन के बाद ही आंखों में इंफेक्शन की शिकायत आने लगी। लेकिन अस्पताल ने हर रोज ऑपरेशन का सिलसिला जारी रखा। हालत ये हो गई कि 22 लोगों की आंखें निकालनी पड़ीं। 25 से ज्यादा लोगों की आंखों की रौशनी चली गई। हंगामा हुआ तो जांच बिठाई गई। अस्पताल प्रबंधन पर ब्रह्मपुरा थाना में केस दर्ज कराया गया। पीड़ितों को मुआवज़ा देने की घोषणा की गई। लेकिन अब तक किसी की भी गिरफ्तारी और कोई कार्रवाई नहीं हुई। वहीं पीड़ित मुआवज़े की मांग के लिए सिस्टम से गुहार लगा रहे हैं। लेकिन गुहार सुनना तो दूर कोरोना के कारण उन्हें जिला कलेक्ट्रिएट के बाहर धरना नहीं देने दिया गया।

जिले के सिविल सर्जन के मुताबिकमुआवजा देने की मांग उठी थी जिसपर सरकार बिचार करने की बात कही थी,लेकिन आगे कोई अपडेट नही हैं। ज़ाहिर है आंखों की रौशनी गंवा चुके लोगों के साथ सिस्टम और सरकार का इससे भद्दा मजाक नहीं हो सकता है। सवाल है कि

1 महीने बीतने के बाद भी किसी की गिरफ्तारी क्यों नहीं? 1 महीने बीतने के बाद भी किसी पर कार्रवाई क्यों नहीं? जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति क्यों? अस्पताल प्रबंधन को क्या बचाने की हो रही है कोशिश? घोषणा के बाद भी पीड़ितों को मुआवज़ा क्यों नहीं? करीब 50 लोगों की आंखे छिनने के लिए कोई जिम्मेदार नहीं? पीड़ितों के साथ भद्दा मजाक क्यों कर रहा है सिस्टम?


Copy