JHARKHAND NEWS : रामनवमी के मौके पर पत्नि संघ तपोवन मंदिर पहुंचे सीएम हेमंत सोरेन की पुजा-अर्चना

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RANCHI : रामनवमी का पर्व पुरे देश में धुम-धाम से सनाया जा रहा है. देश के अलग-अलग राज्य में इसे मनाने की अपनी परमपरा है. अगर झारखंड की बात करे, तो यहां भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है. जिसमें हजारो की संख्या में राम भक्त शामिल होते है. वही राज्य कि राजधानी में स्थित तपोवन मंदिर अलग इतिहास है. रामनवमी के दिन शहर के अलग-अलग महावीर अखाड़ो से निकलने वाली शोभा यात्रा का अखरी पड़ाव तपोवन मंदिर होता है.

सीएम ने राज्य की खुशहाली के लिए की कामना

रामनवमी के मौके पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी पत्नी सह गंडेय विधायक कल्पना मुर्मू सोरेन के साथ तपोवन मंदिर पहुंचे. इस खास मौके पर उन्होंने पूरे श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना की और मंदिर परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं के साथ धार्मिक अनुष्ठान में भाग लिया. मुख्यमंत्री उनकी पत्नी के मंदिर पहुंचने पर स्थानीय भक्तों और मंदिर प्रशासन की तरफ से भव्य स्वागत किया गया. इस दौरान तपोवन मंदिर के मुख्य पुजारी ने मुख्यमंत्री का पारंपरिक तरीके से स्वागत किया और उन्हें तलवार भेंट की. यह भेंट सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती है. रामनवमी के मौके पर आयोजित इस पूजन में मुख्यमंत्री ने राज्यवासियों की खुशहाली और समृद्धि की कामना की. मुख्यमंत्री के इस दौरे को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इस दिन का विशेष महत्व हिंदू धर्म से होता है और यह त्योहार देश के साथ राज्य के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है.

तपोवन मंदिर का निर्माण कब हुआ आज भी रहस्य

तपोवन मंदिर का निर्माण कब हुआ और किसने कराया, यह आज तक रहस्य है. मंदिर परिसर में दो महंतों की समाधि है. महंत बंटेकेश्वर दास की समाधि1604 की है, जबकि महंत रामशरण दास की समाधि 1646 की है. इसके बाद जितने महंत हुए हैं, उन्हें उनकी इच्छानुसार बनारस में जल समाधि दी गई. तपोवन मंदिर के महंत का चयन अयोध्या के श्रीराम मंदिर से होता है.

अंग्रेज अधिकारी ने कराया था शिव मंदिर का निर्माण

वर्तमान समय में जिस जगह पर तपोवन मंदिर स्थित है, वह शुरुआत समय में जंगल था. इस स्थल पर सर्वप्रथम बकटेश्वर महाराज तपस्या किया करते थे. किंवदंतियों अनुसार उस दौरान जंगली जीव-जंतु भी उनके भजन के वक्त आ आते थे. इसी दौरान एक दिन अंग्रेज अधिकारी ने बाघ को गोली मार दी, जिससे क्रोधित होकर बाबा ने उन्हें श्राप दे दिया. बाद में अंग्रेज अफसर ने अपनी भूल मान ली, जिसके बाद उन्हें शिव मंदिर की स्थापना करने को कहा. अंग्रेज अफसर ने शिव मंदिर की स्थापना की. मंदिर परिसर में शिवलिंग भी मौजूद है. इसके अलावा मंदिर मां काली समेत अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति भी स्थापित है.