27 सालों का इंतजार होगा ख़त्म : महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश, जानिए क्या है खासियत और कब हो सकता है लागू

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NEW DELHI : संसद के विशेष सत्र का आज दूसरा दिन था। पुराने संसद भवन को छोड़कर नये संसद भवन में लोकसभा की कार्यवाही हुई, जहां पहला कदम रखते ही मोदी सरकार ने अभूतपूर्व फैसला लिया और महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश कर दिया। इस बिल को "नारी शक्ति वंदन अधिनियम" के तौर पर जाना जा रहा है।


मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने किया पेश

केन्द्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने नये संसद भवन में पहला बिल पेश किया। इस बिल में लोकसभा और विधानसभा में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है। इसका मतलब ये हुआ कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में हर तीसरी सदस्य अब महिला होगी।


जानिए बिल की क्या है खासियत

लोकसभा में इस वक्त कुल 82 महिला सांसद है लेकिन इस महिला आरक्षण बिल के कानून बनने के बाद लोकसभा में महिला सदस्यों के लिए कुल 181 सीटें आरक्षित हो जाएंगी।

इस बिल में संविधान के अनुच्छेद - 239AA के तहत दिल्ली की विधानसभा में भी महिलाओं को 33% आरक्षण दिया गया है। मतलब अब दिल्ली विधानसभा की 70 में से 23 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी।

महिला आरक्षण बिल के कानून बनने के बाद सिर्फ लोकसभा और दिल्ली विधानसभा ही नहीं बल्कि शेष राज्यों की विधानसभाओं में भी 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा।

लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए आरक्षण 15 साल के लिए मिलेगा। 15 साल बाद महिलाओं को रिजर्वेशन देने के लिए फिर से बिल लाना होगा।

SC-ST और ओबीसी महिलाओं को अलग से आरक्षण नहीं

SC-ST महिलाओं को अलग से आरक्षण नहीं मिलेगा। आरक्षण की ये व्यवस्था आरक्षण के भीतर ही की गई है यानी लोकसभा और विधानसभाओं में जितनी सीटें एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है, उन्हीं में से 33 % सीटें महिलाओं के लिए होंगी। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि इस वक्त लोकसभा में 84 सीटें SC और 47 सीटें ST के लिए आरक्षित हैं। बिल के कानून बनने के बाद 84 SC सीटों में से 28 सीटें SC महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी। इसी तरह 47 ST सीटों में से 16 ST महिलाओं के लिए होंगी।

लोकसभा में OBC वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। एससी-एसटी की आरक्षित सीटों के हटा देने के बाद लोकसभा में 412 सीटें बचती हैं। इन सीटों पर ही सामान्य के साथ-साथ ओबीसी के उम्मीदवार भी लड़ते हैं। इस हिसाब से 137 सीटें सामान्य और ओबीसी वर्ग की महिलाओं के लिए होंगी।

अनारक्षित सीटों पर नहीं लड़ सकेंगी महिलाएं?

फिलहाल इस बिल के सामने आने के बाद लोगों के दिमाग में ये सवाल कौंधने लगा है कि क्या अनारक्षित सीटों पर महिलाएं अब चुनाव नहीं लड़ सकेंगी। ऐसा नहीं है, जो सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित नहीं होंगी, वहां से भी महिलाएं चुनाव लड़ सकती हैं। इस बिल को इसलिए लाया गया है ताकि लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ायी जा सके।

राज्यसभा में क्या मिलेगा आरक्षण?

राज्यसभा और जिन राज्यों में विधान परिषद हैं, वहां महिला आरक्षण लागू नहीं होगा। अगर ये बिल कानून बनता है तो ये सिर्फ लोकसभा और विधानसभाओं पर ही लागू होगा।

जानिए कब होगा लागू?

महिला आरक्षण बिल अगर कानून बन गया तो इसे लागू होने में वक्त लगेगा। बताया जा रहा है कि परिसीमन के बाद ये कानून लागू होगा। जानकारी के मुताबिक साल 2026 के बाद देश में लोकसभा सीटों का परिसीमन होना है। इस परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण लागू होगा।

विशेषज्ञों की माने तो इस बिल के पारित होने के बाद भी लागू होने तक की राह में कई रोड़े हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावों में महिलाओं को आरक्षण का फायदा जनगणना और फिर परिसीमन के बाद ही मिलने वाला है।

27 सालों से लटका हुआ है बिल

गौरतलब है कि महिला आरक्षण बिल पिछले 27 सालों से लटका हुआ है। महिला आरक्षण बिल साल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है। उस समय HD देवेगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था लेकिन पारित नहीं हो सका था। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था।

वाजपेयी सरकार ने भी पेश किया था बिल

वहीं, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था। कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा। इस वजह से बिल पारित नहीं हो सका। वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुई।

यूपीए सरकार ने राज्यसभा में किया पेश

बीजेपी सरकार के जाने के बाद साल 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आयी और डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। UPA सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया। वहां यह बिल 9 मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ। बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था।

सरकार गिरने के डर से लोकसभा में नहीं किया पेश

हालांकि, यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया। इसका विरोध करने वालों में मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी और लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल शामिल थी। ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे। कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है।

सोनिया और राहुल गांधी ने दिया था आश्वासन

गौरतलब है कि साल 2014 में सत्ता में आयी मोदी सरकार से तब ही लोगों को उम्मीद थी कि पहले ही कार्यकाल में इस बिल को लाया जाएगा लेकिन नहीं आया। हालांकि पीएम मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में इसे पेश किया है। हालांकि, उसने 2014 और 2019 के चुनाव घोषणा-पत्र में 33 फ़ीसदी महिला आरक्षण का वादा किया है। इस मुद्दे पर उसे मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का भी समर्थन हासिल है।

कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी ने साल 2017 में प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर इस बिल पर सरकार का साथ देने का आश्वासन दिया था। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने 16 जुलाई 2018 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महिला आरक्षण बिल पर सरकार को अपनी पार्टी के समर्थन की बात दोहरायी थी।