Bangladesh Crisis : शेख हसीना को आखिर क्यों छोड़ना पड़ा मुल्क, प्रदर्शनकारियों के आगे क्यों झुकीं बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री, पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट

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 Why did Sheikh Hasina have to leave the country?  Why did Sheikh Hasina have to leave the country?

NEWS DESK :जनवरी 2024 में हुए चुनाव में जीतकर पांचवीं बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं शेख हसीना के लिए बीते कुछ महीने अच्छे नहीं रहे। पहले उनपर चुनाव में धांधली का आरोप लगा, फिर कोटा सिस्टम को लेकर हफ्तों तक प्रदर्शन और आखिरकार शेख हसीना के इस्तीफे की मांग, जिसके बाद प्रदर्शनकारियों के आगे शेख हसीना को झुकना पड़ा और इस्तीफा देना पड़ा। यही नहीं उन्हें अपना मुल्क भी छोड़ना पड़ा।

बांग्लादेश में इस वर्ष जनवरी में हुए चुनाव में शेख हसीना ने जीत हासिल की थी लेकिन छह महीने बाद ही उनके खिलाफ आक्रोश इतना उग्र हो गया कि उन्हें इस्तीफा देकर देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। समीक्षकों के मुताबिक ये स्थिति कई वजहों से उत्पन्न हुई है, जिसका नीचे जिक्र किया जा रहा है।

क्यों शुरू हुआ प्रदर्शन?

सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ छात्रों का प्रदर्शन जुलाई में शुरू हुआ। इस दौरान हजारों छात्र सड़कों पर उत्तर आए। प्रदर्शन 16 जुलाई को हिंसक हो गया, जब प्रदर्शनकारी छात्र सुरक्षा अधिकारियों और सरकार समर्थक कार्यकर्ताओं से भिड़ गए। अधिकारियों को आंसू गैस छोड़नी पड़ी, रबर की गोलियां चलानी पड़ी और देखते ही गोली मारने के आदेश के साथ कर्फ्यू लगाना पड़ा।

इंटरनेट बंद करना पड़ा

देश में बिगड़ते हालात को काबू करने के लिए इंटरनेट और मोबाइल डाटा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। देशभर में सेना उतारनी पड़ी और कर्फ्यू लगा दिया गया। इस दौरान देश का बाहरी दुनिया से संपर्क लगभग टूट गया था। फोन सेवा सही से कार्य नहीं कर पा व रही थी। स्कूल और विश्वविद्यालय को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया। पिछले महीने हिंसा में लगभग 150 लोग मारे गए।

अवामी लीग समर्थकों को फायदे का आरोप

पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश के 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाले लोगों के परिवार के सदस्यों के लिए 30 प्रतिशत तक सरकारी नौकरियों में आरक्षण था। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह प्रणाली भेदभावपूर्ण है और इससे प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों को फायदा हुआ।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सुधरे हालात

बांग्लादेश में 56 प्रतिशत आरक्षण से छात्र परेशान थे। खासकर 30 प्रतिशत आरक्षण बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शामिल लोगों के स्वजनों को दिया गया था। कुछ वर्ष पहले छात्रों के विरोध के बाद सरकार ने इस 30 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगा दिया था। बाद में इसे हाईकोर्ट ने बहाल कर दिया, जिससे छात्र गुस्से में थे। सुप्रीम कोर्ट ने 56 प्रतिशत आरक्षण को कम कर 7 प्रतिशत कर दिया। इसके बाद देश में हालात शांत हो गए थे।

जांच का किया था वादा

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इंटरनेट बहाल कर दिया। उम्मीद थी कि स्थिति सामान्य हो जाएगी लेकिन विरोध लगातार बढ़ता गया। शेख हसीना ने हिंसा को दबाने के दौरान अधिकारियों की ओर से की गई लापरवाही की जांच और कार्रवाई की भी बात कही थी लेकिन छात्र नेताओं ने इसे अस्वीकार कर दिया।

फिर बिगड़े हालात

छात्रों ने सरकार की ओर से बातचीत के ऑफर को ठुकरा दिया। छात्रों की मांग थी कि शेख हसीना और उनका मंत्रिमंडल इस्तीफा दे। हसीना ने प्रदर्शनकारियों पर तोड़फोड़ का आरोप लगाकर फिर से इंटरनेट पर रोक लगा दी। उन्होंने कहा कि जो प्रदर्शनकारी तोड़फोड़ में लगे हैं, वे छात्र नहीं बल्कि अपराधी हैं और उनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए।

प्रदर्शनकारियों ने रविवार को ढाका के एक प्रमुख सार्वजनिक अस्पताल पर हमला किया और कई वाहनों के साथ-साथ सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यालयों को आग लगा दी। इस दौरान 95 लोगों की मौत हो गई, जिसके बाद सोमवार को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।