गिरिडीह के रण में किसका चढ़ेगा रंग ? : जयराम की होगी जय या मथुरा का लहरएगा परचम या चंद्रप्रकाश फिर चमकेंगे ?


बेरमो :सियासत की बिसात पर न कोई दोस्त होता है और न ही कोई दुश्मन. यहां सब अपने मकसद और मतलब के लिए सत्ता के खातिर उस हुकूमत को हांकना चाहते है. जो उन्हें नाम -दाम और ताकत देती है. दरअसल, राजनीति का यही इतिहास और उसके पन्ने पलटने पर यही बाते उकेरी रहती है. इतिहास सबक भी देता है और एक नसीहत भी.जो आने वाले हर खतरे को आगाह करता है और एक मुक़म्मल राह भी बनाता है . सियासत की इस अगर -मगर वाली डगर पर सियासतदान भी समझकर और बूझकर ही कदम आगे बढ़ाते है. क्योंकि यहां हर कदम पर चुनौती और एक कशमकश का फ़साना है.
अभी लोकसभा चुनाव देशभर में चल रहा है. झारखण्ड में भी इसकी बिसात बिछ चुकी है और इसके रणबांकुरे दौड़ लगाने को बेताब हैं. इंडिया और एनडीए की जंग यहां पर भी होगी. हालांकि इसके इतर कुछ सीटों पर त्रिकोणीये मुकाबला भी परवान पर चढ़ने के आसार हैं. जिसमे गिरिडीह भी एक हैं.यहां इंडिया और एनडीए की जंग में जयराम महतो का नाम भी गूंज रहा हैं.भाषा आंदोलन के जरिये एकाएक सियासी फलक में चमकने वाले टाइगर जयराम महतो से तो मथुरा महतो और चंद्रप्रकाश चौधरी को तो टक्कर लेना पड़ेगा.गिरिडीह के चुनावी समर में तीन उम्मीदवारों के बीच टक्कर होगी.इससे तो न इंकार किया जा सकता है और न ही झूठलाया जा सकता है.गिरिडीह बीजेपी का गढ़ रहा है पिछली बार से ही गठबंधन के तहत आजसू को ये सीट मिली,जिसके चलते चंद्रप्रकाश चौधरी आसानी से जीत गए.लेकिन, इसबार जयराम के आने से वो किसका वोट काटेंगे ये देखनेवाली बात होगी.
एक आसार और अनुमान के मुताबिक फायदा आजसू को जयराम के उतारने से होगा. क्योंकि उनका भी वोट बैंक वही है जो झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का है.आदिवासी -मूलवासी की सियासत ही युवा जयराम कर रहें है.इसके साथ ही कुछ मुस्लिम वोटबैंक भी उनके पक्ष में जायेगा. अगर देखा जाए या फिर जमीनी हकीकत समझे, तो यहां लड़ाई तीन कुर्मियों के बीच है. गिरिडीह में कुर्मी -महतो की एक बड़ी आबादी है. लिहाजा इस वोटबैंक में भी बिखराव होगा.
पिछली बार जेएमएम से दिवंगत जगरनाथ महतो मैदान में थे. उनके निधन के बाद टुंडी विधायक मथुरा महतो को प्रत्याशी बनाया गया. यहां गौरतलब बात ये है कि,जो रुतबा, चमक, पकड़ और लोकप्रियता स्वर्गीय जग्गन्नाथ महतो में थी. उसकी बानगी मथुरा महतो में उतनी नहीं दिखती, साथ ही जयराम के उतरने से उनके लिए मुकाबला उतना आसान भी नहीं होने वाला है.अगर गिरिडीह के सामाजिक समीकरण को समझे तो एक अनुमान के अनुसार अलपसंख्यक 17, आदिवासी 15, दलित 11फीसदी हैं, जबकि एक बड़ी आबादी महतो और पिछड़ी जातियों की हैं.इस सामाजिक समीकरण को देखते हुए जेएमएम इसे कितना साध पाती. ये देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि इस वोट बैंक पर जयराम की भी नज़र हैं और उनकी लोकप्रियता भी उनके जनसभा में उमड़ती भीड़ भी खुद ब खुद बयां कर देती हैं.
चंद्रप्रकाश चौधरी के सामने एंटी एंनकबंसी का मसला छायेगा. क्योंकि उनके पांच साल के काम का लेखा जोखा भी जनता को याद हैं. ऐसी सूरत में चंद्रप्रकाश चौधरी को केला नहीं कमल ही पिछली बार की तरह सहारा बनेगा. इसके साथ ही पीएम मोदी का चेहरा भी उनके लिए ट्रप कार्ड साबित होगा.
गिरिडीह में एक बात तो साफ हैं कि अगर वोट में बिखराव होगा तो एनडीए को फायदा होगा. जेएमएम के लिए हेमंत सोरेन का जेल जाना और इस साहनुभूति की लहर उनके लिए कितनी मुफीद होगी. यह चुनाव इसका भी इम्तिहान लेगी. इसके अलावा पहली बार चुनाव की परीक्षा में अपने घर में उतरे जयराम पास या फेल होते हैं. इसका भी पता 4 जून को जनता अपने फैसले में सुना देगी.
कुल मिलाकर बात गिरिडीह लोकसभा की यही हैं की. इसबार मैदान में मुकाबले का अंदाज अलग होगा, जहां सियासी समीकरण ही जय और पराजय तय करेंगे.
बेरमो से पंकज सिंह की रिपोर्ट..