मुलाकात एक बहाना...कहीं और है निशाना : विस अध्यक्ष नंदकिशोर यादव से लालू प्रसाद की मुलाकात के क्या हैं सियासी मायने, जानिए अंदरखाने की बात

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What is the political significance of Lalu Prasad's meeting with Vice President Nandkishore Yadav? What is the political significance of Lalu Prasad's meeting with Vice President Nandkishore Yadav?

NEWS DESK :बिहार में नयी सरकार के गठन के बाद से ही सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच शह-मात का खेल जारी है। सत्तापक्ष लगातार अपने नये सियासी दांव से विरोधी खेमे में खलबली मचाए हुए है। लालू प्रसाद की हर सियासी साजिश को नीतीश कुमार धाराशायी कर रहे हैं और विरोधियों की हर चाल को धोबीपछाड़ दे रहे हैं। इस बीच गुरुवार को बीजेपी के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव बिहार विधानसभा के नये अध्यक्ष चुन लिए गये, जिसके बाद से ही बिहार में सियासी सरगर्मी बढ़ गयी है।


मुलाकात के निकाले जाने लगे सियासी मायने

बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव के चुने जाने के बाद सत्तापक्ष और विपक्ष ने शुभकामनाएं दी लेकिन इस बीच कुछ ऐसा भी हुआ, जिसने सभी लोगों का ध्यान आकर्षित किया। जी हां, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने नंदकिशोर यादव को आसन पर बैठाने के दौरान उनके पांव छुए और आशीर्वाद लिया। इसके तुरंत बाद ही लालू प्रसाद भी विधानसभा पहुंचे और फिर पत्नी राबड़ी देवी के साथ नंदकिशोर यादव को ढेर सारी शुभकामनाएं दीं। इस बड़ी मुलाकात के अब सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं।


बिहार के सियासी गलियारे में दबी जुबां में ये बातें कही जाने लगी है कि लालू प्रसाद ने नंदकिशोर यादव से मुलाकात कर बड़ा सियासी पासा फेंका है। दरअसल, बिहार विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव के वक्त लालू प्रसाद और उनकी पार्टी ने उनके खिलाफ कोई भी कैंडिडेट नहीं खड़ा किया था, तभी कहा जाने लगा था कि नंदकिशोर यादव के प्रति लालू प्रसाद का हमेशा से सॉफ्ट कॉर्नर रहा है।

राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबिक लालू प्रसाद हमेशा बीजेपी नेता नंदकिशोर यादव के खिलाफ मजबूत कैंडिडेट नहीं देते हैं। घोर विरोधी पार्टी में होने के बावजूद भी दोनों का संबंध हमेशा मधुर रहा है। ऐसे में लालू प्रसाद द्वारा लगातार नंदकिशोर यादव के प्रति रखे जा रहे नरम दिल को लेकर सवाल पूछे जाने लगे हैं।

लालू प्रसाद को क्या सता रहा है ये डर!

विश्लेषकों की माने तो लालू प्रसाद को अपनी पार्टी में टूटने का डर सता रहा है लिहाजा वे अपने पुराने रिश्तों को संजोते हुए नये बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव से मुलाकात कर शुभकामनाएं दे रहे हैं और बड़ा संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं।

दरअसल, 28 जनवरी को नीतीश कुमार के 9वीं बार बिहार का मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद और फ्लोर टेस्ट के दरम्यान लालू प्रसाद ने फिर से सत्ता हासिल करने की हरसंभव कोशिश की लेकिन उनके तरकश से छोड़े गये हर तीर नाकाम साबित हुए। पार्टी नेता अवध बिहारी चौधरी को अंत समय तक विधानसभा की कुर्सी पर बैठाए रखने की भी कोशिश फेल हो गयी।

नीतीश की सेंधमारी के बाद सहमे लालू!

यही नहीं, लालू प्रसाद को तगड़ा झटका उसवक्त लगा, जब नीतीश कुमार ने बड़ी सेंधमारी करते हुए लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी के तीन विधायक चेतन आनंद, प्रह्लाद यादव और नीलम देवी को फ्लोर टेस्ट से कुछ क्षण पहले अपने पाले में कर आरजेडी सुप्रीमो की हर चाल को हवा में उड़ा दिया। यही नहीं, स्पीकर की कुर्सी से अवध बिहारी चौधरी को भी हटना पड़ा, जो यादव बिरादरी से ही आते हैं। इसतरह से नीतीश कुमार की सरकार बाल-बाल बच गयी लेकिन बड़ी बात ये है कि सत्तापक्ष और विपक्षी सदस्यों का अंतर बेहद कम है लिहाजा बिहार की सियासत अब भी पेंडुलम की भांति झूल रही है।

सियासी पंडितों की माने तो चेतन आनंद, प्रह्लाद यादव और नीलम देवी के पाला बदलने के बाद लालू प्रसाद को अब ये डर सता रहा है कि कहीं उनकी पार्टी में बड़ी टूट न हो जाए...कहीं बड़ी सेंधमारी न हो जाए लिहाजा पुराने रिश्तों की दुहाई देते हुए नये विधानसभा अध्यक्ष से सौहाद्रपूर्ण वातावरण में मुलाकात की है ताकि रिश्तों की गरमाहट के साथ-साथ सियासी दांव-पेंच से बचा जा सके और पार्टी में टूट की आशंकाओं पर विराम दिया जा सके।