बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने.... : कहने-सुनने को बहुत हैं अफसाने ... सुपरहिट बॉबी अटल के करिश्मे के सामने हुई फ्लॉप..

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UNTOLD STORY OF VAJPAYEE AND INDIRA GANDHI UNTOLD STORY OF VAJPAYEE AND INDIRA GANDHI


जनवरी 1977 की शाम, इमरजेंसी का 18 महीने का आतंक और उसमे दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष की सभा। और उस पर भी कयामत ये कि अटल बिहारी वाजपेई के भाषण का खुमार। विपक्ष के सारे नेता स्टेज पर मौजूद, सामने रामलीला मैदान में हजारों की भीड़, और 4 बजे शाम रात के 9 बजे 5 घंटे के बाद, सभा में एक आवाज़ गूंजती है, बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने.. कहने-सुनने को बहुत हैं अफसाने... और वहीं इस आवाज़ के साथ, हाथों का एक जंगल वाजपेई के इस्तकबाल में उठ जाता है।


सुपरहिट बॉबी अटल के स्टारडम के सामने हुई फ्लॉप

तात्कालिक सरकार को इस बात की जानकारी पहले से ही थी की जनता का जनसैलाब अटल बिहारी वाजपेई के भाषण से बहुत प्रभावित होगा और उसका सीधा असर इमरजेंसी के फौरन बाद होने वाले चुनाव पर पड़ेगा। सो, सरकार ने ठीक उसी दिन फिल्म बॉबी जो उस ज़माने की ब्लॉकबस्टर हिट फिल्म थी उसे टीवी पर प्रसारित करने का फ़ैसला किया, और उस दिन ये सिद्ध हो गया के अटल के सामने बॉबी फ्लॉप साबित हो गई।


कहने-सुनने को बहुत हैं अफसाने

भीड़ को शांत करने के लिए वाजपाई ने अपने दोनों हाथों को उठाए और आंखे बंद कर लीं, और फिर मुस्कराकर बस उन्होंने केवल एक लाइन कही... 'बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने'..

इस पंक्ति के बाद वाजपाई ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में एक पॉज लिया और फिर दूसरी पंक्ति पढ़ी, 'कहने सुनने को बहुत है अफसाने'..लोग के बीच फिर शोर होने लगा, हर कोई अटल बिहारी वाजपेई जिंदाबाद के नारे लगाने लगे, फिर अटल ने पूरी लाइन बोली 'खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी भला कौन जाने'

वाजपाई की पुण्यतिथि, और उनकी एक पंक्ति

वाजपेई अगर एक शानदार राजनेता थे तो साथ ही साथ एक लाजवाब कवि भी थे। ग्वालियर की 1924 की क्रिसमस की शाम में अटल बिहारी वाजपेई का जन्म होता है और सफ़र शुरू होता है जो 16 अगस्त 2018 तक चलता है, पर उनका राजनितिक सफ़र उससे कुछ दिन पहले ही जिसे 2004 तक माना जा सकता है, खत्म हो गया था जिसमे कुछ योगदान उनके स्वास्थ्य और कुछ हद तक उसके बाद पार्टी पर वाजपेई की कमज़ोर पड़ गई पकड़ का भी है।

एक पत्रकार, कवि और राजनेता

गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों में अटल बिहारी वाजपेई पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अपना कार्यकाल 1999 से 2004 तक का पूरा किया थाl कवि हृदय होने के बावजूद, अटल बिहारी वाजपेई एक कुशल राजनेता रहे, जिनकी सत्ता में रहते हुए विपक्ष से और विपक्ष में रहते हुए सत्ता से मतभेद होने के बावजूद भी कभी मनभेद नहीं हुआ। जब इंदिरा सरकार को भारत का पक्ष रखने के लिए विदेश भेजने की ज़रूरत पड़ी तो उन्होंने सरकार से नहीं बल्कि अपने धुर राजनितिक विरोधी अटल बिहारी वाजपई को भेजा और वहीं जब वाजपाई जनता सरकार में विदेश मंत्री बने तो उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू की उनके ऑफिस से हटाई तस्वीर को दुबारा लगवा दिया था। और जब वाजपाई की तबियत बिगड़ी थी तो उन्हें सबसे पहले राजीव गांधी ने ही स्वास्थ लाभ के लिए विदेश में इलाज करवाने के लिए उन्हें सारी सरकारी सुविधाएं मुहैया कराई थी। इसलिए आज जब राजनितिक मतभेद व्यक्तिगत रिश्ते को खत्म कर देता है, तो आज अटल बिहारी वाजपेई और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। आज वाजपाई की पुण्यतिथि है और उनकी एक पंक्ति के साथ हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं:

'हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।'


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