5 सालों से कुएं का गंदा पानी पीने को मजबूर : चतरा के बरहे में बूंद-बूंद को तरस रहे आदिवासी समाज, समस्या सुनने वाला कोई नहीं
चतरा :आदिवासी के नाम पर नेता झारखंड में सत्ता तक तो पहुंच जाते हैं, लेकिन जब आदिवासी हित में किए जा रहे काम की बात आती है तो सरकारी योजनाओं की दुर्गती देखने को मिलती है। आदिवासियों का बूंद बूंद पानी के लिए तरसना पड़ता है। सरकार योजनाओं पर करोड़ों खर्च करने के बाद भी जनता की हालत जस की तस बनी रह जाती है। चतरा में लोग कुआं से पानी भरते देखे जा सकते हैं और कुआं के गंदे पानी से ही वो अपना गुजारा भी करते हैं।
चतरा जिले का प्रतापपुर प्रखंड के योगीयारा पंचायत के बरहे इलाका आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। एक तरफ सरकार विकास के दावे कर रही है और दूसरी ओर प्रदेश की जनता को पीने तक का पानी नसीब नहीं हो रहा है। आलम ये है कि लोग कुआं का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। क्योंकि आज तक इस बस्ती को चापानल नहीं मिला जिसका नतीजा है कि आदिवासी समुदाय के लोग सालों भर इसी कुआं का गंदा पानी पीने को विवश व लाचार है। आदिवासी बहुल इस बस्ती में करीब 100 से ज्यादा लोग पानी के लिए इसी सड़क किनारे बने कुआं पर निर्भर है। गांव वालों की मानें तो इस बरहे टोला के लोगों को हैंडपंप नसीब तक नहीं हुआ है, लेकिन शासन प्रशासन इस समस्या को उठा नहीं रहा। ऐसे में वो गंदा पानी पीने को मजबूर हैं।
कहने को तो ये इलाका झारखंड सरकार श्रम उद्योग, श्रम नियोजन एवम प्रशिक्षण मंत्री सत्यानंद भोक्ता के विधानसभा क्षेत्र में आता है, लेकिन विधायक अपने ही इलाके पर नजर-ए-इनायत नहीं कर रहे हैं। इस इलाके में सरकार की ओर से चलाई जा रही हर घर जल योजना भी नहीं पहुंची है। गंदा पानी पीने से ग्रामीण बीमार पड़ रहे हैं, लेकिन शासन हो या प्रशासन उन्हें ना तो ग्रामीणों के स्वास्थ्य की चिंता है और ना क्षेत्र के विकास की।
झारखंड सरकार हर मंच से खुद को आदिवासी हितैषी घोषित करने में लगी रहती है, लेकिन इसी सरकार के शासन में प्रदेश के कई आदिवासी बहुल इलाके विकास से अछूते हैं। कहीं सड़क नहीं तो कही पानी की कमी है। सरकार अगर दावों के अलावा जमीनी स्तर पर हो रहे काम पर जोर दे तो शायद ऐसी तस्वीरें देखने को ना मिले।
चतरा से कुमार चंदन की रिपोर्ट