भीमराव सकपाल के स्कूल टीचर का नाम था अंबेदकर : पुण्यतिथि पर शत—शत नमन
PATNA- 14 अप्रैल 1891 भारत के मध्य प्रदेश में एक गांव है महू जहां पर एक बच्चे का जन्म होता है, जिसे आगे चलकर लोग भीमराव अंबेडकर के नाम से जानते हैं और वह भारतीय संविधान का निर्माता बनता है। आज 6 दिसंबर है। अर्थात उनकी पुण्यतिथि। 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी सहित अन्य नेताओं ने उन्हें श्रद्धाजंलि सुमन अर्पित किया।
आज कशिश न्यूज़ उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर आपको उनकी कहानी सुनाने जा रहा है। भीमराव सकपाल के पिताजी का नाम रामजी सकपाल था, जो अंग्रेज की सेना में सूबेदार पद पर कार्यरत थे। शिक्षित पिता अपने सभी संतानों को पढ़ाना—लिखाना चाहते थे। सबको उन्होंने सहयोग भी किया लेकिन। भीमराव सकपाल की तरह अन्य कोई भी संतान ने पढ़ने से साफ इंकार कर दिया। हालांकि आरम्भिक शिक्षा सबने प्राप्त की।
रिटायरमेंट के बार रामजी सकपाल महू से महाराष्ट्र के सतारा आ गए। यहां भीमराव ने अपने स्कूली शिक्षा का आरंभ किया। स्कूल में प्रवेश के लिए उन्हें काफी जद्दोजहद करने पड़ा। पहले उसे स्कूल में प्रवेश करने से रोका गया। उसके साथ के बच्चे उसके पास बैठने से इंकार करते थे। हरेक मोड़ पर भीमराव को अपमानित किया जाता था। स्कूल परिसर में मटके से पानी पीने से मना किया जाता था। गांव के पोखर—तालाब पर उनके परिवार को जाने नहीं दिया जाता था। इसी बीच भीमराव की मुलाकात उसी स्कूल में काम करने वाले एक गुरुजी से होती है, जिनका नाम अंबेदकर गुरुजी था। कहा जाता है कि भीमराव सकपाल की प्रतिभा को देखकर अंबेदकर गुरु जी इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने भीमराव को अपना नाम दे दिया था।
जब भीमराव सातारा को छोड़कर महाराष्ट्र आ रहे थे तो अंबेदकर गुरु जी ने कहा था कि भीमराव मैं तुम्हें अपना नाम देता हूं और उम्मीद करता हूं कि तुम्हारे नाम के साथ जुड़कर मैं भी अमर हो जाऊं। बचपन में ही भीमराव अंबेडकर का विवाह हो गया था अर्थात बाल विवाह। उनकी पत्नी का नाम रामा बाई था। रमाबाई भी भीमराव की तरह ही काफी प्रतिभावान थी और संघर्षशील महिला थी।
आगे चलकर भीमराव अंबेदकर अमेरिका और लंदन के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई करने जाते हैं। वह अपने जाते के पहले ऐसे बच्चे थे जिन्होंने मैट्रिक और इंटर की परीक्षा पास की। स्वतंत्र भारत का उन्हें प्रथम कानून मंत्री बनाया गया। बाद के दिनों में उन्हें संविधान सभा में ड्राफ्टिंग समिति का अध्यक्ष बनाया गया।