वोट देने पर कटा हाथ, फिर भी देते हैं वोट : चतरा के जसमुद्दीन अंसारी की रियल स्टोरी, जानिये सच- वोट देने पर क्यों काट दिया गया था हाथ ?

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Real story of Chatra's Jasmuddin Ansari, know the truth - Why was his hand chopped off while voting? Real story of Chatra's Jasmuddin Ansari, know the truth - Why was his hand chopped off while voting?

चतरा जिला वैसे तो वर्षों से नक्सल गतिविधियों के कारण बदनाम रहा है.‌ एक जमाना था जब चतरा समेत पूरे झारखंड भर में नक्सलियों की दबिश थी. तब न तो गांवों में कोई विकास का कार्य हो पाता था और न ही संतोषजनक मतदान. वैसे तो चुनाव में भी मतदाताओं को डराना-धमकाना अपराध है. ऐसा करने पर सजा भी निर्धारित है, लेकिन अविभाजित बिहार के नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली लोकतंत्र के महापर्व में विघ्न डालते रहे हैं. लेकिन वक्त के साथ-साथ हालात भी बदल रहे हैं और धीरे-धीरे सरकारें नक्सलियों के विरुद्ध अभियान चलाकर उनकी कमर तोड़ने का काम कर रही है.

नक्सलियों के फरमान को नजर अंदाज कर वोट डालने की सजा

बात है वर्ष 1999 की जब लोकसभा चुनाव के दौरान चतरा में माओवादियों ने वोट बहिष्कार का फरमान जारी करते हुए फरमान को नजर अंदाज कर वोट डालने वालों का हाथ काटने का एलान किया था. तब चतरा जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर स्थित टंडवा प्रखंड के कामता गांव निवासी जसमुद्दीन अंसारी ने नक्शलियों के जारी फरमान का बहिष्कार किया था. न केवल वोट दिया था बल्कि दूसरे लोगों को भी मतदान के लिये के लिये प्रेरित किया था. मतदान के लिये बनाये गये बूथ पर जसीमुद्दीन अंसारी ने सबसे पहले मतदान किया था, इसके बाद गांव के अन्य लोगों ने भी मतदान किया था. इससे आक्रोशित नक्सली जसीमुद्दीन को आधी रात में उठाकर अपने साथ ले गये थे और उसका हाथ काट दिया था.

'जब तक जीवित हूं राष्ट्र निर्माण के लिये मतदान करता रहूंगा'

चतरा जिले के जसीमुद्दीन अंसारी मतदाताओं के लिए रोल मॉडल हैं। साल 1999 में नक्सलियों के फरमान का उल्लंघन कर मतदान करने पर माओवादियों ने उनका हाथ काट दिया था। इसके बावजूद वह डरे नहीं। वह आज भी मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। गांव के अन्य लोगों को भी प्रेरित करते हैं। 70 वर्षीय अंसारी कहते हैं कि वोट देने से उन्हें कोई वंचित नहीं कर सकता है। जब तक जीवित हूं,राष्ट्र निर्माण के लिए मतदान करता रहूंगा। शायद उस वक्त जसीमुद्दीन के इसी जोशीले अंदाज के कारण लोग वोट करने के लिए प्रेरित हुए थे।

24 सालों में किसी सरकार ने नहीं ली सुध

माओवादियों ने जसीमुद्दीन के साथ ही गाड़ीलौंग गांव के महादेव यादव का भी अंगूठा काट दिया था. इस घटना के करीब चार वर्षों बाद महादेव की मौत हो गई. जसीमुद्दीन नक्सलियों के अत्याचार की 25 वर्ष पुरानी घटना को याद कर कभी-कभी भावुक हो जाते हैं. 1999 में चतरा समेत कई इलाकों में नक्सलियों का आतंक था. चुनाव में उन्होंने वोट बहिष्कार का नारा दिया था. उस वक्त चतरा का टंडवा प्रखंड हजारीबाग संसदीय क्षेत्र के अधीन था. तब जसमुद्दीन और महादेव एक राजनीतिक दल के प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार कर रहे थे. नक्सलियों के फरमान की परवाह नहीं करते हुए दोनों मतदान सुनिश्चित कराने के अभियान में जुटे थे. उनसे प्रेरित होकर लोग मतदान के लिए आगे आ रहे थे. यह सब देखकर नक्सली बौखला उठे थे. डराने धमकाने का असर नहीं हुआ तो दोनों को उनके घरों से उठा लिया. साथी नाजिर अंसारी बताते हैं कि जब वोट डाले जाने को लेकर जसमुद्दीन को माओवादियों ने हाथ काटा था तब पूरे गांव सहित प्रखंड भर में दहशत का माहौल था. तब पिड़ित परिवार को आश्वासन के रूप में नौकरी देने का वायदा भी किया गया था. लेकिन सब ठंडे बस्ते में चला गया.

झारखंड अलग होने पर ठंडे बस्ते में चला गया मामला

चतरा जिले के सिमरिया विधानसभा क्षेत्र के तत्कालीन विधायक योगेंद्रनाथ बैठा ने बिहार विधानसभा में इस मामले को उठाया था. तब सदन ने न्याय का भरोसा दिलाते हुए दोनों को नौकरी देने का वायदा किया था. इसी बीच झारखंड अलग हो गया. जिसके कारण यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. झारखंड बनने के 23 सालों बाद सिमरिया के विधायक किशुन कुमार दास ने वर्ष 2023 में झारखंड विधानसभा में जसमुद्दीन के मामले को उठाया था. जिस पर राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार ने आश्रितों को नौकरी देने का वादा भी किया था. लेकिन इस पर कोई भी पहल नहीं किया गया. बेटा अनवारूल का कहना है कि मामले की गम्भीरता को देखते हुए आश्वासन तो दिया गया पर उस पर कोई पहल नहीं किया गया. नतीजन यह हुआ कि माओवादियों के हाथ काटने के कई सालों तक परिवार चलाना पिता के मुश्किलों से भरा रहा. फिर हम भाईयों ने होश संभाला और मेहनत मजदूरी कर परिवार का किस तरह गुजर-बसर कर रहे हैं. लेकिन पिता के साहस के सम्मान को लेकर आज भी मन कचोट ही रहा है.

जिले के मतदाताओं के लिये रोल मोडल है जसीमुद्दीन

बहरहाल जसीमुद्दीन अपने साहस के कारण आज पूरे जिले के मतदाताओं के लिए रोल मॉडल है. जिनकी कहानी सुन हर मतदाताओं के भीतर राष्ट्र हित में मतदान करने के लिए जोश तो भरता है लेकिन पिड़ित जसमुद्दीन की माली हालात देखकर सरकार और प्रशासन के उदासीनता पर भी सवाल खड़े होते हैं. बहरहाल उम्मीद है कि घटना के 24 सालों बाद भी जसमुद्दीन और उसके परिवार को सरकार और प्रशासन सम्मान दे. जिसकी आस लगाए जसमुद्दीन और उसका परिवार बैठा है.

चतरा से कुमार चंदन की रिपोर्ट