पटना हाईकोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को दिया आदेश : साइबर क्राइम से जुड़े मामलों पर हुई सुनवाई, FIR को लेकर की टिप्पणी

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पटना : पटना हाईकोर्ट ने साइबर क्राइम से जुड़े मामलों पर सुनवाई करते हुए टेलीकॉम कंपनियों को आदेश दिया है कि एफ आई आर स्थानीय थाना में ही दर्ज करवाएं, जहां अपराध किया गया हो। जस्टिस संदीप कुमार ने शिव कुमार व अन्य के मामलें पर सुनवाई करते हुए कहा कि यदि सम्बन्धित थाना एफआईआर दर्ज नहीं करता,तभी टेलिकॉम कंपनियां एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस अधीक्षक से संपर्क कर सकती हैं।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि टेलिकॉम कंपनियां एफआईआर दर्ज करवाने को लेकर सीधे पुलिस अधीक्षक या डीजीपी से संपर्क नहीं कर सकती है। इसके साथ ही कोर्ट ने वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के इस अनुरोध को नहीं माना कि टेलीकॉम कंपनियों को सीधे पुलिस अधीक्षक के समक्ष एफआईआर करने की अनुमति दी जाए।

कोर्ट ने साफ किया कि इस तरह के मामले में पुलिस अधिकारी अपने कर्तव्य से नहीं भाग सकता है, यदि सूचना से संज्ञेय अपराध का पता चलता है। प्राथमिकी दर्ज नहीं करने वाले अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की बात कहीं गई है। इस सुनवाई के दौरान नवादा, नालंदा और शेखपुरा के जिलाधिकारी भी वर्चुअल रूप से जुड़े थे। कोर्ट को जानकारी दी गई कि यू ट्यूब, एलएलसी और गूगल एल एल सी द्वारा अनुसंधान में पूरी तरह से सहयोग दिया जा रहा है।

यह भी बताया गया है कि यदि आर्थिक अपराध इकाई द्वारा आगे भी कोई जानकारी की जरूरत होगी तो इसे यूट्यूब, एल एल सी और गूगल ,एलएलसी इसकी आपूर्ति करेगा। इस मामलें पर सुनवाई के दौरान यह भी बताया गया की वरीय अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव को आर्थिक अपराध इकाई द्वारा यूट्यूब, एल एल सी और गूगल एलएलसी को भेजे गए सभी ईमेल को अग्रेषित कर दिया जाएगा। इसमें आर्थिक अपराध इकाई पी एस केस नंबर - 30/2021 से संबंधित जानकारी मांगी जाएगी।

कोर्ट ने यह भी कहा है कि जब कोई आपत्तिजनक पोस्ट/वीडियो किसी के द्वारा अपलोड किया जाता है, जोकि प्रथम दृष्टया में और दरअसल ज्यूडिशियरी को लेकर अपमानजनक और सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के जजों, हाई कोर्ट के जजों, राज्य के न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध गाली गलौज की भाषा का इस्तेमाल किया गया है, तो ऐसी स्थिति में पब्लिक प्लेटफार्म से आपत्तिजनक पोस्ट/ वीडियो या मैटेरियल को ब्लॉक करने या हटाने के लिए किसी कोर्ट की आर्डर की जरूरत नहीं है।

इसको लेकर कोर्ट ने खास तौर से मेटा प्लेटफ़ॉर्म इंक को हलफनामा दायर करने को कहा है। कोर्ट ने भारत सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय को भी इसके सचिव के जरिये इस मामले में प्रतिवादी बनाने को कहा है। साथ ही सूचना व प्रसारण मंत्रालय को ये हलफनामा दायर करने का आदेश दिया गया है कि न्यायपालिका के विरुद्ध सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पोस्ट किए गए अपमानजनक पोस्ट / वीडियो को हटा लेना चाहिए या वे इसे सिर्फ कोर्ट के आदेश के बाद ही करेंगे।

कोर्ट ने पुलिस के डी जी या ए डी जी को राज्य के सभी पुलिस अधीक्षक और वरीय पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर यह जानकारी देने को कहा है कि यदि उनके क्षेत्र में साइबर क्राइम का रिपोर्ट आता है, तो वे उसे ई डी, इनकम टैक्स विभाग के अनुसंधान विंग के साथ जरूर शेयर करें, ताकि उचित कानूनी कार्रवाई की जा सके। साइबर क्राइम की शुरुआत फर्जी कागजात के आधार पर सिम की बिक्री के साथ हो जाती है, जिसमें आम जनता को तकलीफ उठाना पड़ता है।

यदि टेलिकॉम कंपनियों की शिकायत पर एफ आई आर दर्ज नहीं की जाती है, तो राज्य में साइबर क्राइम करने वाले अपराधियों का कभी पता नहीं लगाया जा सकता है और गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। राज्य सरकार के अधिवक्ता अजय ने बताया कि कोर्ट ने राज्य के डी जी पी को दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल करके बताने को कहा है कि टेलीकॉम कंपनियों द्वारा उनके कार्यकाल में की गई शिकायत के मामले में क्या कार्रवाई की गई है। इस मामले पर अगली सुनवाई 7 फरवरी,2022 को की जाएगी।


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