नक्सली इलाके में संवरी किसानों की जिंदगी : 'लेमन ग्रास' की खेती ने किया कमाल, आमदनी हुई दोगुनी

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गया : कभी नक्सलियों का दंश झेल रहा इलाका अब ऑर्गेनिक खेती की बदौलत लहलहा रहा है। खेती कर किसान मालामाल हो रहे हैं। परंपरागत खेती के मुकाबले ऑर्गेनिक खेती ने इलाके की तस्वीर ही बदल दी। धान गेंहू के मुकाबले किसान लेमन ग्रास ऊगा कर दोगुनी कमाई कर रहे हैं।

बिहार के गया जिला के बाराचट्टी प्रखंड क्षेत्र के दक्षिणी ईलाके का अंजनिया टांड़ गांव नक्सलियों का गढ़ माना जाता है। नक्सलियों के संरक्षण में इस इलाके में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती किये जाने की सच्चाई समय-समय पर साबित होती रही है। लेकिन अब इलाके में केंद्र सरकार ने सकारात्मक पहल की है। विशेष केंद्रीय सहायता योजना के तहत वैकल्पिक और आधुनिक कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है।

अब इस क्षेत्र के लोग परंपरागत खेती को छोड़कर लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं और दोगुना मुनाफा भी कमा रहे हैं। इस गांव की मंजू देवी इनकी प्रेरणास्रोत बनी हुई है। यहां के गोविंद प्रजापति, मंजू देवी सहित अन्य किसानों को एकजुट कर सामुहिक रूप से लेमन ग्रास की खेती करवाई जा रही है। लेमनग्रास के इस क्लस्टर के लिए केंद्र सरकार द्वारा 15 लाख 20 हजार रुपए की आर्थिक मदद किसानों को दी गयी है। यहां पर लेमन ग्रास से तेल निकलने का प्लांट भी लगाया है। जिससे किसान खुद लेमनग्रास का तेल निकालकर बाजार में बेच रहे हैं।

महिला किसान मंजू देवी बताती हैं कि धान और गेंहू जैसे खेती में अत्यधिक श्रम करना पड़ता था साथ ही बार-बार सिंचाई जरूरी था। लेकिन लेमनग्रास में ऐसी बात नही है। धान-गेंहू के अनुपात में दुगुना मुनाफा है। उन्होंने बताया कि लेमन ग्रास की खेती के लिए बार-बार जुताई भी नहीं करनी पड़ती है। लेमन ग्रास से निकाला हुआ एक किलो तेल 14 सौ रुपये के हिसाब से बिकता है। पिछली बार 15 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती की थी। जिसके बाद 64 किलो तेल निकाला गया इस हिसाब से लगभग 88 हजार रुपए की कमाई हुई।

उन्होंने कहा कि यदि धान-गेहूं की खेती करने के हिसाब से देखा जाए तो उसके मुकाबले दुगना फायदा हुआ है। अब हमलोग गांव के दूसरे किसानों को भी लेमन ग्रास की खेती करने के लिए प्रेरित रहे हैं। उन्होंने कहा कि अंजनिया टांड़ नक्सल प्रभावित इलाका है। ऐसे में जो लोग कभी नक्सल विचारधारा से जुड़े हुए थे। उन्हें भी इस खेती से जुड़ने का सुझाव देते हैं।

वही किसान गोविंद प्रजापति बताते हैं कि जो लोग अफीम की खेती करते थे, वे भी अब प्रेरित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2021 के जुलाई माह से लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं। प्राण संस्था के लोगों के द्वारा लेमन ग्रास की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। सरकार के द्वारा भी शुरुआती दौर में हर संभव मदद की गई। जिसके बाद इस खेती से अब दुगना लाभ कमा रहे हैं। लेमन ग्रास की खेती के बहुत फायदे हैं, एक तो इसमें बार-बार पानी नहीं देना पड़ता है। दूसरी नीलगाय एवं अन्य जानवर भी लेमनग्रास के पौधों को नहीं खाते हैं। तो देखा जाए तो इसमें मेहनत कम और फायदा ज्यादा है। गांव के दूसरे लोगों को भी इस खेती को करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

अंजनिया टांड़ गांव निवासी द्वारिका प्रजापत बताते हैं कि बाप-दादा के समय से गेहूं-धान की खेती कर रहे हैं। लेकिन गांव के ही लोगों के द्वारा लेमन ग्रास की खेती के बारे में बताया गया। यह भी जानकारी दी गई कि इसमें दुगुना फायदा होता है। हाल ही में हमने लेमन ग्रास की खेती को लगाया है। आने वाले समय में कितना फायदा होगा ? यह देखने वाली बात होगी।


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