PITRUPAKSHA मेला : कभी प्रभु राम ने सीता के साथ किया था पिंडदान,आखिर गयाजी में पिंडदान का क्या है धार्मिक महत्व..

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Lord Ram had performed Pind Daan with Sita, what is the religious significance of Pind Daan in Gayaji.. Lord Ram had performed Pind Daan with Sita, what is the religious significance of Pind Daan in Gayaji..

पृथ्वियां च गया पुण्या गयायां च गायशिरः।श्रेष्ठम तथा फल्गुतीर्थ तनमुखम च सुरस्य हिं।।
श्राद्धरम्भे गयायं ध्यात्वा ध्यात्वा देव गदाधर ।स्व् पितृ मनसा ध्यात्वा ततः श्राद्ध समाचरेत ।।


GAYA:-विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला धार्मिक नगरी गयाजी में शुरू हो गयी है जहां सनातन धर्म से जुड़े देश विदेशी तार्थयात्री गयाजी में अपने पूर्वजों के मोक्ष की कामना को लेकर गयाजी आने लगे हैं.वे यहां अपने पितरों(पूर्वजों) के नाम से पिंडदान और तर्पण(जल अर्पण) करते हैं. प्रथम दिन पटना के पुनपुन तीर्थ में पिंडदान करने का महत्व है. लेकिन जो तीर्थयात्री पुनपुन तीर्थ नहीं जा पाते है, वे गया के गोदावरी कुंड में पिंडदान करते हैं.


पिंडदान में कई तरह के इंतजाम

यूं तो पिडदान और तर्पण बनारस,हरिद्वार समेत कई स्थलों पर किया जाता है,पर बिहार के गयाजी का महत्व सबसे अलग है.यही वजह है कि गजायी में लोग सालों भर पिंडदान और तर्पण करने आतें हैं पर पितृपक्ष के दौरान लाखों तीर्थयात्री गयाजी आतें हैं और यहां मेला सा दृष्य रहता है.बिहार के पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने इस राजकीय मेला का दर्जा दिया था जिसके बाद बिहार सरकार की तरफ से यहां तीर्थयात्रियों के लिए साफ-सफाई,पेयजल,आवासन,सुरक्षा एवं सहयोग के लिए कई तरह के इंतजाम किये जातें हैं.

राम-सीता ने किया था पिंडदान

गया में पिंडदान की परम्परा प्राचीन काल से मानी जाती है.और ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरूषोत्त्म श्रीराम अपनी पत्नी सीता के साथ अपने पिता दशरथजी के लिए पिंडदान किया था.इस संबंध में स्थानीय पांडा शैलेश कुमार मिश्रा ने बताया कि. इसे पितरों का महीना भी माना जाता है, जिसमें पितर खुश रहते हैं. जो पुत्र अपने माता-पिता से नाराज भी रहता है, वह भी यदि इस महीने में गयाजी आए और फल्गु नदी के जल में उसका पैर पड़ जाए, तो भी पितरों को बैकुंठ वास होता है. ऐसे में गयाजी में पिंडदान करना सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.

गया में पिंडदान से 7 पीढ़ी और 108 कुलों का उद्धार

इसके साथ ही गयाजी में तर्पण और पिंडदान को लेकर कई तरह की कथायें प्रचलित है.प्राचीन ग्रंथो में भी गयाजी में पिंडदान और तर्पण को लेकर की तरह का वर्णन है.गया में पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण या श्राद्ध कर्म करने से 7 पीढ़ी और 108 कुल का उद्धार होता है. साथ ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.


गरुड़ पुराण के आधारकाण्ड में गयाजी में होने वाले पिंडदान का महत्व बताया गया है. इसमें कहा गया है कि गयाजी में भगवान राम और सीता ने पिता राजा दशरथ को पिंडदान किया था. यदि इस स्थान पर पितृपक्ष में पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहाँ पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. इसी लिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है.

इसके साथ ही धर्मशास्त्रों में श्लोक के माध्यम से महत्व बताया गया है-

*

जीवितो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात्।

गयायां पिण्डदानञ्च त्रिभिः पुत्रस्य पुत्रता।।

अर्थात् माता-पिता के जीवित रहते हुए उनका सम्मान करना चाहिए. मृत्यु के बाद उनके निमित्त ब्राह्मणों(ज्ञानी) को भोजन कराना चाहिए.इसके साथ ही पुत्र का तीसरा कर्तव्य है कि माता-पिता की मृत्यु के पश्चात गया जाकर वहां पिंडदान करे.

*‘गयायां पिण्डदानेन पितृणामनृणो भवेत्’

अर्थात- गया में पिण्डदान से पितृ़ऋण से मुक्ति मिलती है. अगर पुत्र ने माता-पिता या पितरों का श्राद्ध नहीं किया तो उसे मुक्ति नहीं मिल सकती है.

* कूर्मपुराण में कहा गया है-

तस्मात्सर्वप्रयत्नेन ब्राह्मणस्तु विशेषतः

प्रदद्याद्विधिवत्पिण्डान् गयां गत्वा समाहितः।

अर्थात्- मनुष्यों के लिए पितरों के निमित्त पिंडदान करना आवश्यक है. मनुष्य को किसी भी तरह का प्रयत्न कर अपने पितरों के लिए पिंडदान करना चाहिए. खासकर ब्राह्मणों के लिए तो इसे अत्यंत आवश्यक बताया गया है कि वे गया जाएं और वहां श्राद्ध कर पितरों की आत्मा को संतुष्ट करें.

* धेनुकारण्य के अऩुसार-

काङ्क्षन्ति पितरः पुत्रान्नकादभयभीरवः।

गयां यास्यति यः कष्चित्सोऽस्मान् तारयिस्यति।

अर्थात- पितर कामना करते हैं कि कुल में यदि कोई भी गया जाएगा तो वह हम सबों को उद्धार कर देगा. धर्म पृष्ठ पर ब्राह्मणों के समक्ष गया स्थित अक्षयवट पर पितरों के लिए किया गया श्राद्ध अक्ष्य होता है.

*गयां प्रसंगतोगत्वा, मातुः श्राद्धं सुतष्चरेत्।

जीवत्पिता मातुः श्राद्धमुद्दिष्यगयांनगच्छेत्।।

अर्थात्- पुत्र को अपनी मां का श्राद्ध भी गया में ही करना चाहिए. अगर किसी का पिता जीवित है, तब उसे गया नहीं जाना चाहिए. यानी पिता की मृत्य़ु के पश्चात गया जाकर माता और पिता, दोनों का श्राद्ध करना चाहिए.

*गरुड़पुराण में कहा गया है कि महाकल्पकृतं पापं गयायां चविनष्यति।।

अर्थात-ब्रह्मा का वचन है कि गया में पिण्डदान से जो फल मिलता है, करोड़ों वर्षों में उसका आख्यान नहीं हो सकता.

*त्रिस्थली सेतु प्रकरण में कहा गया है-

गंगायां धर्मपृष्ठे च सदसि ब्रह्मणस्तथा।

गयाशीर्षक्षयवटे पितृणादंत्तमक्षयम्।

ब्रह्मारण्यं धेनुपृष्ठं धेनुकारण्यमेव च।

दृष्टवैतानि पितृंष्चाच्र्यं वंश्यान्विं शतिमुद्धरेत।।

इसके साथ ही कई अन्य ग्रंथों में गयाश्राद्ध को लेकर श्लोक के जरिए चर्चा है-

*स्नानं कृत्वा गयालोले दृष्ट्वा च प्रपितामहम्।

अक्षयांल्लभते लोकान् कुलानां तारयेच्छतम्।।

गयां गतो गयालोलो गायत्री च गदाधरः।

गया गयाशिरष्चैव षड्गया मुक्तिदाः स्मृताः।।

कृत्यसारसमुच्चय में कहा भी गया है-

गयायां सर्वकालेषु पिण्डं दद्याद्विचक्षणः।।

अधिमासे जन्मदिने अस्ते च गुरु शुक्रयोः।

न त्यजेच्च गया श्राद्धं सिंहस्थे च वृहस्पतौ।।