JP SPECIAL : सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' से राजनीति की लकीर बदलने वाले जेपी..... कौन है जेपी का असली वारिस...
आज ही के दिन 1979 को सम्पूर्ण क्रांति और लोकतंत्र को यथार्थ करने वाले शख्स की मौत हुई थी। आज ही के दिन लोहिया का वो कथन कि ' ज़िंदा कौमें 5 साल का इंतज़ार नहीं करती' को धरातल पर उतारने वाले शख्स की पुण्यतिथि है।
'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'
कल्पना कीजिए, 5 जून 1974 की शाम 5 बजे पटना के गांधी मैदान को जहां 5 लाख की भीड़ सुनती है राष्ट्रकवि दिनकर की कविता की पंक्ति ' सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'. सारा विपक्ष इंदिरा गांधी सरकार के आपातकाल के विरुद्ध लोकतंत्र को बचाने के लिए गांधी मैदान में जमा होता है। और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में अहिंसक सत्याग्रह का आग़ाज़ होता है जिसे जेपी 'सम्पूर्ण क्रांति' का नाम देते हैं। जेपी कहते हैं,
'यह क्रान्ति है मित्रों! और सम्पूर्ण क्रान्ति है। विधान सभा का विघटन मात्र इसका उद्देश्य नहीं है। यह तो महज मील का पत्थर है। हमारी मंजिल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है।’ जेपी और छात्र जब बिहार के छात्रों ने जेपी से आग्रह किया कि आप हमारा नेतृत्व करें और देश और उसके लोकतंत्र की रक्षा करें तब जेपी ने उनसे दो वादे लिए, स्थिति कुछ भी बन जाए हिंसा का सहारा नहीं लिया जाएगा। छात्रों को एक वर्ष के लिए अपने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को बंद रखना होगा।
- जेपी कहते हैं, 'केवल मंत्रिमंडल का त्याग पत्र या विधान सभा का विघटन काफी नहीं है, आवश्यकता एक बेहतर राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने की है। छात्रों की सीमित मांगें, जैसे भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी का निराकरण, शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन आदि बिना सम्पूर्ण क्रान्ति के पूरी नहीं की जा सकती।’ उन्होंने सीमा सुरक्षा बल और बिहार सशस्त्र पुलिस के जवानों से अपील की कि वे सरकार के अन्यायपूर्ण और गैर कानूनी आदेशों को मानने से इनकार कर दें।'
वैसे तो जेपी का पूरा जीवन ही आंदोलन, संघर्ष, क्रांति और उपलब्धियों से भरा पड़ा है। भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर आपातकाल के विरुद्ध चलने वाले देशव्यापी सम्पूर्ण क्रांति तक भारत का इतिहास लोकनायक के महानता की गाथा गाता है, लेकिन स्वतंत्रता के बाद जब पहली दफा देश का लोकतंत्र आपातकाल के शिकंजे में फंसा तब भारत छोड़ो आंदोलन का वही वीर सिपाही सामने आया जिसने गांधी और नेहरू की जेल की सजा के दौरान अंग्रेज़ों से आमने सामने की लड़ाई में प्रत्यक्ष रूप से और कभी भूमिगत हो कर लोहा लिया था।
जेपी और आज
वहीं जब आज हम भारत में चुनावी मैदान में एक दूसरे को जली कटी सुनाती बिल्कुल अलग-अलग विचारधाराओं और संकल्पनाओं के राजनितिक दलों और उनके नेताओं को जेपी को अपनी-अपनी सियासी सहूलियतों के हिसाब से इस्तेमाल करते देख हम समझ सकते हैं कि जेपी जितने प्रासंगिक अपने जीवन काल में रहे उतने ही आज भी हैं और कुछ मायनों में ज़्यादा, जैसे लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी उसूलों को समझने के मामले में। क्यूंकि, जहां एक तरफ गृह मंत्री अमित शाह जेपी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखते हैं , 'लोकतंत्र की रक्षा के लिए ‘सम्पूर्ण क्रांति’ की नींव रख कर जयप्रकाश नारायण जी ने सिद्ध किया कि अन्यायी हुकूमत कितनी भी अहंकारी या शक्तिशाली क्यों न हो, उसे जनता के स्वाभिमान के सामने झुकना ही पड़ता है।
एक जनसेवक के रूप में जयप्रकाश नारायण जी का नि:स्वार्थ भाव देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा। ऐसे महान लोकनायक की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन।' वहीं दूसरी तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेपी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि ' सम्पूर्ण क्रांति के अग्रदूत, प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रखर समाजवादी लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी की पुण्यतिथि पर उनकी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।' तो चाहे इंडिया गठबंधन हो या एनडीए दोनों ही खुद को उनका उत्तराधिकारी बताते हैं।