JHARKHAND NEWS : मधुपुर में गणगौर महोत्सव प्रतिमा विसर्जन के साथ संपन्न

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मधुपुर : चैत मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को राजस्थानी महिलाओं एवं युवतियों के लिए खासा महत्व रखती है. अपनी जन्मभूमि से दूर बसे राजस्थानियों के लिए अपनी धार्मिक सांस्कृतिक परंपरा के निर्वहन का वक्त यह गणगौर महोत्सव है . गुरुवार को मधुपुर की सड़क पर भी गणगौर के विसर्जन के लिए युवतियों-महिलाओं का जत्था मारवाड़ी युवा मंच की ओर से अग्रसेन भवन में आयोजित गणगौर उत्सव विसर्जन में शामिल होने के लिए निकला तो देखते ही बन रहा था. गणगौर महोत्सव समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झांकी प्रदर्शित करने का भी अवसर है.

इस बार मारवाड़ी युवा मंच की ओर से अग्रसेन भवन में गणगौर सज्जा प्रतियोगिता, हौजी गेम, गणगौर गीत,पेपर गेम,सेल्फी जोन व गणगौर विसर्जन प्रतियोगिता का भव्य आयोजन किया गया. प्रथम द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया. विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का स्टॉल भी लगाया गया था. साथ ही कार्यक्रम स्थल को दुल्हन की तरह सजाया गया था. इसके उपरांत पारंपरिक गीतों के साथ ईसर-गौरा की मूर्तियों का सामूहिक रूप से विधिपूर्वक निर्मित कृत्रिम तालाब में विसर्जन किया गया.

बता दें कि गणगौर महोत्सव के दिन सभी सुहागन महिलाएं और युवतियां सामूहिक रूप से ईसर-गौरा का पूजन करती हैं. पूजा के दौरान महिलाएं समवेत स्वर में पारंपरिक लोकगीत भी गाती हैं तथा ईसर-गौरा की प्रतिमा की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना कर दूर्वा से जल के छींटे देती हैं. इससे एक दिन पूर्व द्वितीय तिथि को सिंधारा उत्सव मनाया जाता है, जिसमें लड़कियां तथा महिलाएं मेंहदी लगाती हैं. नए वस्त्र धारण करती हैं एवं पारंपरिक पकवानों का सेवन करती हैं. गणगौर पूजन होलिका दहन के दूसरे दिन अर्थात होली के दिन से शुरू होता है. पूजन आरंभ होने के सप्ताह भर बाद शीतला अष्टमी मनाई जाती है. सोलह दिन पूजनोपरांत चैत मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन सोलह कुओं का जल लाकर गणगौर को पिलाया जाता है. इस दिन प्रात: काल में राजस्थानी समुदाय की महिलाएं सामूहिक पूजन करती हैं. महिलाएं 'ईसर गौरा' से अपने सुहाग तथा भाइयों की सलामती की प्रार्थना करने के पश्चात विधिपूर्वक नदी अथवा तालाब में मूर्तियां व पूजन सामग्री विसर्जित करती हैं. गुरुवार संध्या महिलाओं का जत्था लोकगीत गाते हुए अग्रसेन भवन विसर्जन हेतु पहुंचा. इन स्थानों पर पारंपरिक गीतों के साथ ईसर-गौरा की मूर्तियों का विधिपूर्वक विसर्जन किया गया.


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