झारखंड ने खोया अपना सपूत : दिशोम गुरु शिबू सोरेन पंचतत्व में विलीन, पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार


RANCHI : झारखंड की राजनीति, आदिवासी अस्मिता और सामाजिक न्याय की मजबूत आवाज रहे दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब इस दुनिया में नहीं रहे। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक, अलग झारखंड राज्य आंदोलन के पुरोधा और देश की राजनीति में आदिवासी नेतृत्व के प्रतीक रहे शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव नेमरा में पूरे राजकीय सम्मान के साथ संपन्न हुआ।
शोकाकुल माहौल में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके छोटे भाई बसंत सोरेन ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ अपने पिता को अंतिम विदाई दी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें मुखाग्नि दी इस भावुक क्षण में हज़ारों की संख्या में समर्थक, ग्रामीण और तमाम राजनीतिक दलों के नेता शामिल हुए।
प्राकृतिक श्रद्धांजलि, चिता पर रखते ही मूसलाधार बारिश
नेता जी के पार्थिव शरीर को चिता पर रखने से पूर्व परंपरागत आदिवासी रीति-रिवाजों के तहत परिक्रमा कराई गई, जैसे ही उनका शरीर चिता पर रखा गया अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गई मानो स्वयं प्रकृति भी इस युग पुरुष को अंतिम सलामी दे रही हो। बारिश के बावजूद बड़ी संख्या में लोग अंतिम दर्शन को मौके पर डटे रहे।
राज्य भर में शोक की लहर, नेताओं का नेमरा में जुटान
दिवंगत नेता राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार, विधानसभा अध्यक्ष रविन्द्र नाथ महतो, केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री, विधायक, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, प्रशासनिक अधिकारी और झारखंड के कोने-कोने से आए गणमान्य व्यक्ति ने श्रद्धांजलि दी। विधानसभा परिसर में भी एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जहां सभी ने पुष्पांजलि अर्पित कर शिबू सोरेन को याद किया।
राजकीय शोक की घोषणा
झारखंड सरकार ने तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है, इस दौरान सभी सरकारी भवनों पर झंडे आधे झुके रहेंगे और सभी शासकीय कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए हैं।
झारखंड की माटी ने अपना लाल खोया
राजनीति से लेकर समाज तक हर वर्ग में शिबू सोरेन के निधन को अपूरणीय क्षति बताया जा रहा है। वे न केवल झारखंड आंदोलन के मार्गदर्शक थे, बल्कि आदिवासी अधिकारों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। उन्हें झारखंडी अस्मिता का प्रतीक, आदिवासी चेतना की आवाज और सामाजिक न्याय का प्रहरी माना जाता है। उनकी संघर्षगाथा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी, दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा, आदर्श और बलिदान झारखंड की आत्मा में सदैव जीवित रहेंगे।