झारखंड आंदोलन के पुरोधा 'गुरुजी' नहीं रहे : शिबू सोरेन के निधन से शोक की लहर, आदिवासी चेतना के स्तंभ को झारखंड का अंतिम प्रणाम


(संपादक अनुराग ठाकुर की रिपोर्ट)
विनम्र जोहार,
झारखंड आंदोलन के पुरोधा, आदिवासी चेतना और सामाजिक न्याय के अमिट प्रतीक, श्रद्धेय श्री शिबू सोरेन ‘गुरुजी’ के परलोकगमन का समाचार अत्यंत पीड़ा और शोक के साथ प्राप्त हुआ। यह केवल एक राजनीतिक व्यक्तित्व के चले जाने की सूचना नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा, उसकी संघर्षशील चेतना और सांस्कृतिक पहचान के एक स्तंभ के विलीन होने की घटना है।
गुरुजी का जीवन संथाल परगना की लाल माटी से उठकर राष्ट्र की संसद तक पहुँचा, और उनकी वाणी में आदिवासी जनगाथाओं की गूंज थी। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन वंचित, शोषित और उपेक्षित समाज के अधिकारों की रक्षा में समर्पित कर दिया। जंगल, ज़मीन और जीवन इन तीन शब्दों को उन्होंने झारखंड के प्रत्येक नागरिक की आत्मा में उतार दिया। उनका जीवन दर्शन आज भी जनमानस को जागृत करता है। उन्होंने सामाजिक, भाषायी और सांस्कृतिक विविधता को समेटते हुए झारखंड को आत्मबल और आत्मगौरव देने का कार्य किया। उनके व्यक्तित्व में करुणा, धैर्य और वह नेतृत्व था जो केवल जन्मजात जननायकों में पाया जाता है।
हम गुरुजी के निधन को अपना व्यक्तिगत शोक मानते हैं। हम हेमंत सोरेन जी, समस्त शोक संतप्त परिवार एवं सभी स्नेही जन के प्रति अपनी गहरी संवेदना प्रकट करते हैं। गुरुजी का जीवन संदेश, उनका समर्पण, और उनका लोकनायक स्वरूप आने वाली पीढ़ियों के लिए पथप्रदर्शक रहेगा। झारखंड उनकी दृष्टि, उनके कर्म और उनके स्वप्नों को स्मरण करते हुए सदा नमन करता रहेगा।
सादर श्रद्धांजलि।