Independence Day : आज़ादी के जश्न का सबसे रौशन सितारा दूर से ही क्यूं देखता रहा जश्न-ए-आज़ादी... नेहरू और पटेल के बुलावे पर भी नहीं आए बापू...
आज देश अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस ख़ुशी में पूरा देश झूम रहा है, और आज़ादी के खुमार में डूबा हुआ है लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज हम भले ही स्वतंत्रता दिवस में ध्वजारोहण, लाल क़िले पर हिंदुस्तान की खूबसूरती बिखेरती झांकियां या देश के कोने-कोने में झंडोत्तोलन के बाद लहराते हमारे तिरंगे की सुंदरता देख कर मंत्रमुग्ध हैं। पर जब हमारे देश को आज़ादी मिली थी, तब जिस शख्स के सिर पर इस गुलामी को ख़त्म करने का सेहरा है, यानी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वो 14 और 15 अगस्त 1947 को दिल्ली की आतिशबाजी और जश्न से बहुत दूर नवाखली में दंगे में मारे गए लोगों के साथ उनके दुख और दर्द को बांट रहे थे।
पटेल और नेहरू के बुलावे पर भी जश्न में शामिल नहीं हुए थे बापू
जब सारे राजनीतिक घटनाक्रमों के बाद 15 अगस्त को उस समय के कांग्रेस के दो सबसे दिग्गज नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बापू को चिट्ठी लिखी और उसमें गुज़ारिश की कि देश अपना पहला जश्न-ए-आज़ादी मना रहा है, उसमें राष्ट्रपिता का इस समारोह से दूर रहना बहुत दुखी करने वाला है तो इस पर बापू ने जवाब में कहा कि 'जब कलकत्ता में हिन्दू-मुस्लिम एक-दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं? मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा।'
जिस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना..उसे राष्ट्रपिता ने अनसुना कर दिया
क्या आप जानते हैं कि अपना ऐतिहासिक महत्व रखने वाला पंडित जवाहरलाल नेहरू का वो भाषण, जिसे खुद नेहरू ने 'भाग्य के साथ मिलन' या 'Tryst With Destiny' नाम दिया था, उसे उस शख्स ने ही नहीं सुना, जिसकी अकाट्य व्यूह रचना में फंसकर ब्रिटिश शासन ने हिंदुस्तान में दम तोड़ दिया था, यानी उस रात बापू 9 बजे रात में ही सो गए थे।
कहीं ना कहीं ये एक ऐतिहासिक सत्य है कि जिस दिन ब्रिटिश साम्राज्य की हिंदुस्तान में नकेल उखाड़ी गई थी, उस दिन कहीं ना कहीं आज़ादी के संघर्ष के कई जगमगाते सितारों में सबसे रौशन सितारा कहीं छुप गया था।