गांधी और आज... गांधी का प्रभाव उनके बाद : गांधी का विचार कैसे बदला संसार, मंडेला और डॉ. किंग ने क्या सीखा बापू से..
2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे मोहन दास करमचंद गांधी एक नाम, एक व्यक्तित्व और एक कभी अप्रासंगिक ना होने वाली सोच है। आज जब समस्त विश्व और मानव सभ्यता हिंसा, द्वेष और असुरक्षा की भावनाओं से ग्रस्त है, उस वक्त बापू और भी ज़रूरी हैं। एक शक्ति जिसके पास अपने दौर के सारे विध्वंसक हथियार थे, एक विशाल और विश्वयुद्ध जैसे युद्ध में जीत दर्ज करने वाले सेना का साहस था, एक संसद जिसके बारे में कहा जाता था कि वो इस दुनिया में कुछ भी कर सकती है सिवाए पुरुष को स्त्री और स्त्री को पुरुष बनाने के, एक विंस्टन चर्चिल जैसा राजनेता जिसके लिए भारत सांप और सपेरों का केवल एक जंगल था, और अंततः एक ऐसा साम्राज्य जिसके राज में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था।
और फिर, उस कभी ना डूबने वाले साम्राज्य की टकराहट होती है एक दुबले-पतले, धागे से बंधे ऐनक पहनने वाले और चर्चिल की ही भाषा में ' आधे नंगे फकीर' से जिसकी अकाट्य सत्यता और कभी ना झुकने वाली दृढ़ता इंग्लैंड की धरती पर आधे ढंके तन के साथ उसी साम्राज्य के शहंशाह को कहता है कि 'हमारे इस भूख और नंगेपन के पीछे आपकी ही हवस और ज़ुल्म का हाथ है'। ये शक्ति उनमें आई उनकी नैतिकता और जीवन में बनाए और निभाए गए उनके सिद्धांतों की वजह से, ना किसी तीर और तलवार से चलाए जा रहे किसी शासन की सेना के सेनाध्यक्ष होने की वजह से।
आज पूरी दुनिया गांधी को उनकी 154वीं जयंती पर याद कर रही है, और वो इसलिए नहीं की ऐसा करना परंपरा है, बल्कि इसलिए क्यूंकि आवश्कता है।
गांधी और तात्कालिक दुनिया
याद कीजिए पहला विश्वयुद्ध और पूरी दुनिया दो भागों में बंटी और एक दूसरे को मिटा देने को बेचैन। उस समय में 10 अप्रैल 1917 को एक शख्स हाथ में एक छड़ी तन पर एक धोती और अपने मानस में एक साम्राज्य से टकराने का लोहा लेने की हिम्मत और वो भी दो ऐसे हथियारों से जिसका उपयोग और प्रयोग दोनों इस तरह से पहली दफा मानव इतिहास में होने जा रहा था, और वो थे- अहिंसा और सत्य।
गांधी और तात्कालिक भारतीय नेता
महात्मा गांधी जहां सुभाषचंद्र बोस के लिए बापू थे, गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर के लिए महात्मा, तो वहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए रोशनी और रूहानी पिता, सरदार पटेल के लिए एक दोस्त और मार्गदर्शक, वहीं मौलाना आजाद के लिए एक आदर्श और बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के लिए एक चतुर नेता थे। पर इनमें से कोई भी गांधी की सच्चाई, उनकी कार्यवनिष्ठा और सबसे बढ़कर उनकी देश के प्रति समर्पण से इंकार नहीं कर सकता है।
' डरो मत '
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी शानदार पुस्तक ' द डिस्कवरी ऑफ इंडिया ' में महात्मा गांधी के बारे में लिखा है कि वो एक रोशनी की तरह थे। उन्होंने आगे लिखा कि गांधी जी ने जो सबसे बड़ा और सबसे महान योगदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में दिया है वो है भारत की सदियों से दबी और कुचली हुई आवाम को नहीं डरने का मंत्र ये कह कर कि 'डरो मत'.
गांधी और आज
चाहे वो अमेरिका के काले लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग हों या, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के खिलाफ लोहा लेने वाले नेल्सन मंडेला हों या फिर तिब्बत के बौद्धों के लिए लड़ने वाले दलाई लामा हों, सबों ने कहीं ना कहीं गांधी और गांधीवाद को ही अपना आदर्श माना है।
गांधी और आज का भारत
जहां आज हम कई छेत्रों में एक विश्व शक्ति बनकर उभरे हैं, जैसे, सामरिक, तकनीकी, कई मामलों में फसलों की पैदावार और एक विशाल बाज़ार के रूप में। परंतु आज भी भारत जिस एक शख्स के नाम से जाना जाता है उसे हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं। चाहे G-20 में आए हुए देश हों या विश्व के शक्तिशाली राज्यों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हों उनका सब का सफ़र गांधी के ही किसी घाट, बैठकी या समाधि से शुरू होता है।