ब्रज की होली : राधा-कृष्ण के बिना होली अधूरी

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Holi is incomplete without Radha-Krishna Holi is incomplete without Radha-Krishna

लोहरदगा:- कहते हैं ब्रज की होली सबसे प्रसिद्ध है. यह सत्य भी है और अटूट भी है. राधा और कृष्ण के बिना रंग और गुलाल होली की परंपरा भला कहां पूरी हो सकती है. दक्षिणी छोटानागपुर में जमींदार परिवारों के यहां ठाकुरबाड़ी मंदिर स्थित है. अमूमन सभी क्षेत्रों में जहां पर ठाकुर और चौहान परिवार रहते हैं, वहां पर ठाकुरबारी तो होती ही है. चौहान परिवारों के यहां बिना ठाकुरबाड़ी के पूजा-अर्चना के दिन की शुरुआत नहीं हो सकती. साल के सभी प्रमुख त्योहारों में यहां पर पूजा-अर्चना होती है. साल के 365 दिन यहां पर पूजा-अर्चना की जाती है. लोहरदगा जिला के किस्को प्रखंड के बेठठ गांव में स्थित ठाकुरबाड़ी मंदिर में भी होली की परंपरा एक अनूठी परंपरा है.


यहां पर डोल पूजा का आयोजन होता है. भगवान कृष्ण और राधा के संग होली खेली जाती है. जब तक राधा और कृष्ण को रंग और गुलाल ना लगाया जाए, तब तक होली अधूरी है. दिन के पहले पहर में भले ही कितना भी रंग खेला जाए, पर दिन के दूसरे पहर में गुलाल के बिना रंग पूरा नहीं होता या काहे की रंगोत्सव पूरा नहीं होता. यहां सबसे पहले राधा और कृष्ण को रंग और गुलाल लगाया जाता है. पुरोहित पूजा अर्चना करते हैं. ठाकुरबारी मंदिर से राधा और कृष्ण को लाकर डाल पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है. उसके बाद होली की परंपरा पूरी की जाती है. लगभग 400 सालों से यह परंपरा निभाई जा रही है. आज भी अनवरत रूप से हर साल परंपरा का निर्माण होता है.