दुर्गा भाभी नाटक बना मील का पत्थर : गुमनाम क्रांतिकारियों को प्रकाश में लाने की मुहिम तेज, सुपर स्टार कुणाल सिंह भी शामिल

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पटना : अनिल मुखर्जी शताब्दी नाट्योत्सव के दूसरे दिन हुआ नाटक का मंचन वीरांगना दुर्गा भाभी के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया।राजधानी के रबिन्द्र भवन में आयोजित नाट्योत्सव के दूसरे दिन राजधानी के लोगों को गुमनाम क्रांतिकारियों में से एक दुर्गा भाभी के जीवन पर आधारित नाटक की प्रस्तुति XIII स्कूल ऑफ़ टैलेंट डेवलेपमेंट गाजियाबाद की प्रस्तुति देखने को मिली। दूसरे दिन के कार्यक्रम में भारत में, चीन में त्रिनिनाद एवं टोबैगो के राजदूत चंद्रदत सिंह एवं भोजपुरी, हिंदी औरअंग्रेजी फिल्मों की प्रोड्यूसर अनिता चंद्रदत सिंह के साथ भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार कुणाल सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय भी नाटक की प्रस्तुति के दौरान उपस्थित रहे।

इस मौके पर भाजपा के पूर्व सांसद और कार्यक्रम के अध्यक्ष आर के सिन्हा ने कहा कि इस नाटक को मैंने देखा है तब से ही मेरे मन में था कि इस नाटक का मंचन पटना में भी हो और आज वह दिन आपके सामने है श्री सिन्हा ने दुर्गा भाभी गुमनाम क्रांतिकारियों में से एक हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई में तन मन से भाग लिया।आजादी के दिनों में दुर्गा भाभी क्रांतिकारियों को अपने घर में पनाह देने के अलावे उनके खाने पीने के अलावा सभी आर्थिक जरूरतों को पूरा करती थी। पूर्व राज्यसभा सदस्य, वरिष्ठ पत्रकार एवं भाजपा के संस्थापक सदस्य रवीन्द्र किशोर सिन्हा ने कहा कि इस नाटक के देशभर में 50 से अधिक मंचन होंगे। पूर्व सांसद आर. के. सिन्हा ने बताया कि अनेकों क्रांतिकारियों समेत शहीद चंद्रशेखर आजाद को माउजर पिस्टल उपलब्ध कराने से लेकर शहीद भगत सिंह और राजगुरु को अपने तीन वर्षीय पुत्र के साथ लाहौर से निकालने का कार्य दुर्गा भाभी ने ही अंजाम तक पहुंचाया था।

भारत सरकार के गुमनाम क्रांतिकारियों को प्रकाश में लाने के अभियान में ‘आजादी की दीवानी दुर्गा भाभी’ नाटक मील का पत्थर साबित हुआ है। नाटक के निर्देशक एवं लेखक अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि वीरांगना दुर्गा भाभी के जीवन की उन्होंने साढ़े तीन साल तक गहन पड़ताल की। अनेक तथ्य जुटाये। उनके परिजनों से सम्पर्क किया। फिर इसे लिखा और इसका निर्देशन किया। उन्हें गर्व है कि आजादी की यह दीवानी वीरांगना दुर्गा भाभी अपने अंतिम समय तक गाजियाबाद में भी रहीं।अभ तक इस नाटक के चार मंचन हो चुके है। नाटक का सह-लेखन एवं सह-निर्देशन अदित श्रीवास्तव ने किया। वस्त्र परिकल्पना रोजी श्रीवास्तव की थी। गीत कवि डॉ। चेतन आनंद ने लिखे। संगीत संकल्प श्रीवास्तव ने दिया। सेट व प्रकाश परिकल्पना राघव प्रकाश एवं दिव्यांग श्रीवास्तव की रही। कला निर्देशन साहेब श्रीवास्तव व प्रखर श्रीवास्तव का था। रूपसज्जा हरि सिंह खोलिया का था डॉ। माला कपूर ‘गौहर’ का विशेष सहयोग रहा। नाटक के 35 कलाकारों का डेढ़ घंटे के इस नाटक में नौजवानों की संख्या सर्वाधिक थी।

नाटक में काम करने वाले कलाकारों में तनुपाल, शिवम सिंघल, अभिषेक त्यागी, कुमार सौरभ, राजीव वैद, सिमरन मिश्रा, रूकेशव साधना, बालकृष्ण श्रीवास्तव, निशांत शर्मा, अनिरुद्ध शर्मा, विनय कुमार, नेहा पाल, साक्षी देशवाल, मनु वर्मा, कल्याणी मिश्रा, जतिन शर्मा, श्रेयस अग्निहोत्री, ऋषभ सहगल, नीरज शर्मा, इमप्रीत सिंह, शौर्य केसरवानी, राहुल, सुभाष शर्मा, तरुण योगी, आभास, प्रवीण डहल, निखिल, दिव्यांशु भट्ट, अमन, देव आदि प्रमुख थे ।नाट्य प्रस्तुति के बाद पूर्व सांसद आर के सिन्हा ने कलाकारों को सम्मानित भी किया।


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