पाठक सर,प्लीज : स्कूलों में आ गए BPSC शिक्षक,पर एक झोपड़ी में 5 क्लास ,मंदिर का दीवार बना ब्लैकबोर्ड
MUZAFFARPUR:-बिहार की सरकारी शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव IAS केका पाठक काफी मेहनत कर रहे हैं जिसका साकारात्मक असर दिख भी रहा है.बीपीएससी द्वारा नियुक्ति के बाद करीब 90 हजार शिक्षकों ने स्कूलों में ज्वाईन कर लिया है जिसके बाद ग्रामीणों क्षेत्र के स्कूलों की स्थिति बदलती नजर आ रही है पर अभी भी सैकड़ों स्कूल भवनहीन हैं जो सार्वजनिक स्थल,झोपड़ी या मंदिर के कैंपस में चलाये जा रहे हैं.यहां की स्थिति काफी खराब है और यहां के शिक्षक के साथ ही छात्र और ग्रामीण एसीएस केके पाठक से नजरे इनायत करने की अपील कर रहे हैं जिससे कि इन स्कूलों की तस्वीर बदल सके.
एक झोपड़ी में पांच क्लास
मुजफ्फरपुर के कुछ स्कूलों से रूबरू कराते हैं जहां की स्थिति जानकर आप हैरान हो जायेंगे.यहां एक ही क्लास रूम में आठ क्लास के बच्चें पढ़ रहे हैं.एक ही ब्लैकबोर्ड पर दो-दो शिक्षक अलग-अलग क्लास के बच्चों को पढाते नजर आ रहे हैं.मंदिर की दीवार को ब्लैकैबोर्ड के रूप में प्रयोग किया जा रहा है.स्कूलों की ये स्थिति मुजफ्फरपुर जिले के औराई प्रखंड क्षेत्र की है.पहली तस्वीर औराई प्रखंड मधुबन प्रताप की है, जहां झोपड़ी नुमा एक कमरे में कुल 137 बच्चों के भविष्य को संवारा जा रहा है।बीपीएससी नियुक्ति के बाद शिक्षक तो पर्याप्त संख्या में आ गये हैं,पर संसाधन के अभाव में पढ़ाई नहीं हो पा रही है।केके पाठक के निर्देश पर छात्र और शिक्षक स्कूल पहुंच रहे हैं लेकिन भवन और बेंच-डेस्क के अभाव में कहीं पेड़ के नीचे तो कही मंदिर की दीवार को बोर्ड बनाकर बच्चों का पठन पाठन करवाया जा रहा है। शिक्षकों को एक ही ब्लैक बोर्ड में बंटवारा कर दिया गया है, जो अलग अलग विषयों की पढाई करवा रहे हैं.
मंदिर का दीवर बना है ब्लैकबोर्ड
दूसरे स्कूल उसरी टोला की बात करें तो यहां की तस्वीर और ज्यादा हैरान करने वाली है.यह स्कूल बर्षों से एक दलान में चलाई जा रही है. इस विद्यालय में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त हो गयी है,लेकिन संसाधन के अभाव में पढ़ाई नही हो पा रही है। यहां भी शिक्षक ब्लैक बोर्ड का बंटवारा कर चुके हैं,और दोनों अलग-अलग विषय का पठन-पाठन करवा रहे हैं. कई शिक्षक तो अपनी बारी का इंतजार भी करते हैं कि अब हमारी बारी-कब आयेगी.जिले में इस तरह के 237 विद्यालय हैं जो भवनहीन है और यहां की पढाई रामभरोसे चल रही है.
आश्चर्यचकित हैं बीपीएससी शिक्षक
इन स्कूलों में बीपीएससी से नियुक्त शिक्षकों की तैनाती की गयी है.यहां आने के बाद व्यवस्था से कई बीपीएससी शिक्षक निराश नजर आ रहे हैं तो कई मौजूदा संसाधन मे ही बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं.हाल ही में स्कूल में योगदान देनेवाली बीपीएससी शिक्षिका चंचल गुप्ता ने बताया कि जिस तरह से बीपीएससी का नाम है और जिस प्रकार से हमारी परीक्षा ली गई थी। उससे हमलोगों को काफी ज्यादा उम्मीदें थी। उम्मीद थी कि पढ़ाने के लिए बेहतर माहौल मिलेगा, लेकिन यहां पढ़ाने के लिए भवन ही नहीं है। किसी और के दरवाजे पर बच्चों को पढ़ाना पड़ता है। जब सभी बच्चे आ जाते है तो खड़े होने की भी जगह नहीं होती है। बच्चों को भी पढ़ने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वही शिक्षिका नेहा कुमारी ने बताया कि हमें स्कूल तक पहुंचने में ही काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मैंने अपने जीवन में पहली बार चचरी पुल को पाड़ किया, वो भी गोद में छोटे बच्चे को लेकर।जब यहां पहुंचे तो उम्मीद थी कि बेहतर स्कूल मिलेगी लेकिन झोपड़ी वाली स्कूल थी। हमें उम्मीद है उनका विभाग इस ओर भी ध्यान देगा.
चचरी पुल क सहारे स्कूल पहुंचते हैं शिक्षक-शिक्षिका
इस स्कूल के प्रधानाध्यापक राजेश कुमार ने बताया कि इस स्कूल में चार नए शिक्षक नियुक्त हुए थे, जिसमें से तीन ने ज्वाइन किया है। एक यूपी,एक पटना और एक मुजफ्फरपुर जिले के रहनेवालें हैं. यहां सबसे बड़ी समस्या आवागमन की है। यह गांव विस्थापित है इसलिए सरकार की कोई भी योजना यहां तक नहीं पहुंच पाती है। यहां स्कूल का भवन भी नहीं बन सकता क्योंकि यह गांव दो नदियों के बीच में है। किसी तरह हम लोग बच्चों को पढ़ाने की कोशिश करते हैं। एक शेड और एक ब्लैक बोर्ड है और जब बच्चे को बाहर पढ़ाते हैं तो मंदिर की दीवार का सहारा लिया जाता है। विभाग की तरफ से कहा गया है यह गांव विस्थापित है इसलिए यहां नए भवन का निर्माण नहीं हो सकता है।स्कूल को कहीं और मर्ज भी नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसी स्थिति में बच्चों को नाव या चचरी पुल के सहारे नदी पार करनी होगी जो काफी खतरनाक साबित हो सकती है।
ACS केके पाठक से उम्मीद
वहीं यहां के बच्चों और ग्रामीणों को उम्मीद है कि जब शिक्षा विभाग ने उनके स्कूल में योग्य शिक्षक-शिक्षिका की तैनाती की है तो भवन को लेकर भी जरूर कोई न कोई वैकल्पिक इंतजाम करेगी.इन्हें केके पाठक से विशेष उम्मीद है कि वे इस तरह के स्कूलों की सुविधा मुहैया कराने को लेकर कुछ ने कुछ रास्ता निकालेगें और जब बढ़िया भवन में प्रतियगिता परीक्षा पास करके आये शिक्षक-शिक्षिका उनके बच्चों को पढ़ायेंगें तो निश्चित रूप से उनके बच्चे भी पढ़-लिख कर ऊंची उड़ान भर सकेंगे.