लोगों को लुभा रहा बिहार सरस मेला : संडे को पहुंचे 50 हजार से अधिक लोग, ग्रामीण शिल्प की जमकर की खरीदारी


PATNA :रविवार का दिन बिहार सरस मेला के लिए खास रहा। ग्रामीण शिल्प की खरीददारी और देशी व्यंजनों का लुत्फ़ उठाने 50 हजार से अधिक लोग आए। बिहार सरस मेला 18 सितंबर से बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति, जीविका द्वारा ज्ञान भवन, पटना में आयोजित हो रहा है।
प्राचीन संस्कृतियों का पुनर्मिलन, विलुप्त हो रही कलाकृतियों को प्रोत्साहन एवं कल तक घर की चाहरदीवारी में कैद हुनर का बड़े कैनवास पर प्रदर्शन एवं बिक्री बिहार सरस मेला में हो रही है। एक तरफ ग्रामीण शिल्प एवं कलाकृतियों को प्रोत्साहन और बाज़ार तो दूसरी तरफ ग्रामीण हुनर को मेला के माध्यम से सम्मान दिया जा रहा है। स्वयं सहायता समूह से जुडी ग्रामीण महिलाओं के हुनर, आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन के विविध रंगों का समावेशन भी सरस मेला में प्रदर्शित है।
लोक शिल्प एवं परंपरा पर आधारित सरस मेला अपने अन्दर लोक संस्कृति, परंपरा एवं लोक कला को अपने अंदर समेटे हुए राष्ट्रीय स्तर पर परिलक्षित है और आगंतुकों को लुभा रहा है। विदेशी और मशीनरी व्यवस्था से इतर हाथ से निर्मित और कसीदाकारी किए हुए देशी उत्पाद एवं दादी-नानी के ज़माने के व्यंजन आगंतुकों के लिए आकर्षण के खास केंद्र हैं।
सीप से बने शर्ट-पैंट, सूट आदि के बटन, माला, कान बाली, हाथ की बाला, पांवजेब और शंख इत्यादि लोगों को बरबस ही रिझा रहे हैं। वहीं, घास, बालू, लकड़ी के बुरादा आदि से बनी कलाकृतियां, लहठी, चूड़ियां, खादी के परिधान, कांस्य, पीतल, पत्थर, घास और जूट आदि से बनी कलाकृतियां, दरी-कालीन, चादर, रसोई घर के सामान और बचपने के खिलौने, बांस एवं जूट से बने उत्पाद, सिक्की कला, मधुबनी पेंटिंग, फुलकारी कला, बुटिक प्रिंट की साड़ियां, अहीर कला, तंजोर कला, कच्छ कला, सिक्की कला, बम्बू कला, लेदर पपेत्री, कलमकारी, अदिवा, हैंडलूम समेत हैंडीक्राफ्ट के अंतर्गत आनेवाली विभिन्न कलावों के तहत निर्मित उत्पादों की जमकर खरीद-बिक्री हो रही है।
स्टॉल पर उपस्थित ग्रामीण शिल्पकार स्वयं सहायता समूह से जुडी हुई हैं। समूह से जुड़कर उन्होंने अपने हुनर और पुश्तैनी परंपरा और शिल्प को व्यवसाय से जोड़ा है। समूह से मिली सहायता, ऋण , प्रशिक्षण और प्रोत्साहन की बदौलत ग्रामीण महिलाएं अब कुशल शिल्पकार एवं व्यवसायी के तौर पर आज सरस मेला में खुद के द्वारा अपने हाथ से निर्मित उत्पादों को लेकर देश के कोना-कोना से मेला में आई हैं।
प्रमिला देवी पहली बार सरस मेला में आई हैं। प्रमिला देवी अररिया से बेंत से बने डलिया और टोकरी को लेकर आई हैं। चार दिन में उन्होंने लगभग 20 हजार की बिक्री की है। गांव में रहकर इतनी राशि कमाना मुश्किल था। प्रमिला देवी बताती हैं कि उन्होंने काफी गरीबी देखी है। पति पतानु मांझी और वो खेत में मजदूरी करते थे लेकिन अब उनकी गरीबी दूर हो गई है। प्रमिला देवी भारती जीविका महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी।
प्रमिला पहले से ही बेंत से डलिया, टोकरी , स्टूल, फर्नीचर आदि बनाना जानती थी l उन्होंने इसी हुनर को जीविका के माध्यम से व्यवसाय में तब्दील किया l समूह से क्रमशः 10, हजार, 20 हजार और 30 हजार रूपया ऋण लिया और बेंत व्यवसाय शुरू किया l अपने बेटा भोला मांझी को सिलीगुड़ी में इसके लिए प्रशिक्षण भी दिलाया l प्रशिक्षण के बाद उनके बेटा ने उनके हुनर को आधुनिक बाज़ार से जोड़ा l घर से ही बेंत से निर्मित उत्पादों का व्यवसाय घर से ही शुरू हुआ l घर से ही कारोबारी बेंत से निर्मित उत्पाद उनसे थोक में ले जाते हैं l लेकिन उसमे ज्यादा मुनाफा नहीं होता है l लेकिन सरस मेला में आकर उन्हें ज्यादा मुनाफा हुआ है l लाये गए सभी उत्पाद बिक गए हैं l प्रमिला बताती हैं कि सरस मेला में आकर उन्हें व्यवसाय के नए तरीके भी सीखने को मिला है l
मेला के चौथे दिन 21 सितंबर को 38 लाख 61 हजार से अधिक की राशि के उत्पादों एवं व्यंजनों की खरीद-बिक्री हुई। खरीद-बिक्री का आंकड़ा स्टॉल धारकों द्वारा लिए गए रिपोर्ट के आधार पर आधारित होता है। रविवार को खरीद-बिक्री का आंकड़ा 1 करोड़ पार करने की संभावना है। शनिवार को अनुमानत: 40 हजार से अधिक लोग आए और खरीददारी की l सरस मेला 27 सितंबर तक चलेगा। बिहार सरस मेला का समय सुबह 10 बजे से शाम 8 बजे तक निर्धारित l प्रवेश निःशुल्क है।