JHARKHAND NEWS : पूर्व सांसद धीरज प्रसाद साहू ने पेसा नियमावली को कैबिनेट से मंजूरी पर राज्य सरकार को दी बधाई

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लोहरदगा: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व राज्यसभा सांसद धीरज प्रसाद साहू ने झारखंड सरकार द्वारा पेसा (PESA)कानून की नियमावली को कैबिनेट से मंजूरी दिए जाने पर राज्य सरकार को बधाई दी है.उन्होंने इसे एक ऐतिहासिक और दूरगामी परिणाम वाला फैसला बताते हुए कहा कि यह कदम जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाने,ग्राम सभाओं को मजबूत करने और उन्हें भूमि व प्राकृतिक संसाधनों पर स्वशासन का अधिकार देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है.

पूर्व सांसद धीरज प्रसाद साहू ने कहा कि पेसा कानून के प्रभावी क्रियान्वयन से आदिवासी क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी और विकास की प्रक्रिया में ग्राम सभा की निर्णायक भूमिका सुनिश्चित होगी. खासकर भूमि अधिग्रहण, खनन और विकास परियोजनाओं जैसे मामलों में अब ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य होगी, जिससे आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा होगी. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार का यह निर्णय न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल बनेगा.

धीरज प्रसाद साहू ने केंद्र की भाजपा सरकार और राज्य में भाजपा नेतृत्व पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि प्रभु यीशु के जन्म से ठीक 24 घंटे पहले राज्य सरकार ने यह ऐतिहासिक निर्णय लेकर आदिवासी समाज को सम्मान देने का काम किया है.उन्होंने कहा कि पेसा केवल एक कानून नहीं है,बल्कि यह धरती की वंदना,जल की वंदना और मातृ शक्ति की वंदना है.मानव इतिहास की पहली लोकतांत्रिक नींव आदिवासी समाज ने ही रखी,जहां समुदाय,प्रकृति और सहयोगिता को सर्वोच्च स्थान दिया गया.

उन्होंने कहा कि वर्ष 1996 में पेसा कानून बनने के बावजूद वर्षों तक इसे जानबूझकर लागू नहीं किया गया.झारखंड भाजपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि सत्ता में रहते हुए भी आदिवासी अधिकारों की अनदेखी की गई.“मैं पूछना चाहता हूं कि जब आप मुख्यमंत्री थे,तब पेसा कानून क्यों लागू नहीं किया गया?”उन्होंने कहा कि अर्जुन मुंडा जनजातीय क्षेत्र से सांसद रहे,मुख्यमंत्री रहे,फिर भी पेसा लागू नहीं हुआ.

पूर्व सांसद ने आगे कहा कि रघुवर दास की पांच साल की सरकार में भी आदिवासी अस्तित्व पर लगातार हमला हुआ. लेकिन जब हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड में सरकार बनी, तो एक साल के भीतर पेसा कानून की नियमावली को मंजूरी देकर ऐतिहासिक कार्य किया गया. उन्होंने इसे आदिवासी स्वाभिमान और अधिकारों की जीत बताते हुए कहा कि यह फैसला आने वाली पीढ़ियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा.