तीन तिगाड़ा...महागठबंधन का काम बिगाड़ा ! : बिहार में कन्हैया, हार्दिक, जिग्नेश की इंट्री और कांग्रेस ने तोड़ा आरजेडी से नाता
‘’अगर स्ट्राइक रेट की बात करते हैं, तो लोकसभा चुनाव में पूरे विपक्ष ने 1 सीट जीता तो वो कांग्रेस ने जीता। ‘’
--कन्हैया कुमार
कांग्रेस में शामिल होने के बाद कन्हैया जब बिहार आए तो आते ही कुछ इस अंदाज में तेजस्वी यादव और आरजेडी को निशाने पर लिया। चुनाव में कांग्रेस के स्ट्राइक रेट पर आरजेडी बार-बार सवाल उठाता रहा है। जिसका जवाब कन्हैया ने अपने भाषण की शुरुआत में ही दी। कन्हैया कुमार यहीं नहीं रुके, हाल ही में आरजेडी सांसद मनोज झा ने बिहार कांग्रेस प्रभारी भक्त चरण दास पर ड्रॉइंग रुम वाली राजनीति करने का आरोप लगाते हुए हमला किया था, जिसके जवाब में भी कन्हैया ने करारा पलटवार करते हुए कहा मनोज झा को नसीहत दी कि जाकर अपने आका से ड्राइंग रुम में जाकर पूछे कि भक्त चरण दास कौन हैं?
वहीं कन्हैया के साथ-साथ हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी ने भी बिहार कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने की पूरी कोशिश की।
शायद युवा तिकड़ी के इस जोश का ही नतीजा है कि कल तक जिस तेजस्वी यादव को सीएम उम्मीदवार घोषित कर आरजेडी के पीछे-पीछे कांग्रेस चलने को तैयार थी। उस तेजस्वी और आरजेडी से अलग कांग्रेस उपचुनाव की दोनो सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए। इसे तीन तिगाड़ा, महागठबंधन का काम बिगाड़ा ही कहेंगे, कि कन्हैया, हार्दिक और जिग्नेश की युवा तिकड़ी की बिहार में एंट्री होती है और आरजेडी से पूरी तरह नाता तोड़ने का सीधा ऐलान बिहार कांग्रेस प्रभारी भक्त चरण दास करते हुए अगला लोकसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ने का दंभ भरते हैं।
यानी कांग्रेस को भरोसा है कि इस युवा तिकड़ी के ज़रिए ना सिर्फ वो तेजस्वी की काट ढूंढ चुके हैं, बल्कि कांग्रेस को बिहार में खोई हुई ज़मीन भी मिल सकती है। लेकिन क्या ये इतना आसान है। समझने के लिए ज़रा बिहार कांग्रेस की मौजूदा स्थिति देखिए।
पिछले तीस सालों से बिहार में कांग्रेस की जड़ें कमज़ोर होती गईं। बिहार के आखिरी कांग्रेसी मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र थे। आरजेडी के सहारे ही अब तक कांग्रेस का वजूद टिका रहा है। पिछले 5 विधानसभा चुनावों में पार्टी को खास सफलता नहीं मिली। फरवरी 2005 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 10 सीटें मिलीं थीं। 2010 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 4 सीटें मिलीं थीं। 2015 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं। लेकिन 2015 में नीतीश-लालू के साथ होने का फायदा मिला था। 2020 विधानसभा चुनाव में 70 में से सिर्फ 19 सीटें जीत सकीं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक सीट मिली।
साफ है बिहार में बहुत कठिन है डगर कांग्रेस की। जिसे पार करने के लिए कांग्रेस को युवा तिकड़ी पर भरोसा है। जिस भरोसे की अग्निपरीक्षा दो सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में होगी। और 2 नवंबर को आने वाले इस परीक्षा के नतीजे तय करेंगे कि इस युवा तिकड़ी में कांग्रेस के डूबते जहाज को बचाने के लिए कितना दम है?