सुप्रीम कोर्ट में बड़ी बहस.... : जो आदमी 24 घंटे पहले रिटायर हुआ उसे चुनाव आयुक्त कैसे बना दिया


NEW DELHI - सुप्रीम कोर्ट में आज उस मामले की सुनवाई की गई जिसमें अरुण गोयल को आनन—फानन में चुनाव आयुक्त बनाने का आरोप लगाया गया। याचिकाकर्ता का कहना था कि जिस अधिकारी ने वीआरएस लिया उन्हें मात्र 24 से 36 घंटे में केंद्र सरकार ने एक संवैधानिक पद पर बैठा दिया। आसान भाषा में कहा जाए तो उम्मीदवार पर नहीं लेकिन उम्मीदवार के चयन पद्धि पर सवाल उठाए जा रहे हैं। आइए डिटेल में जानते हैं कि आज सुप्रीम कोर्ट में क्या कुछ हुआ...
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चुनाव आयुक्त के रूप में गोयल की नियुक्ति पर केंद्र द्वारा लाई गई मूल फाइलों का अवलोकन किया।
शीर्ष अदालत ने 1985 बैच के आईएएस अधिकारी गोयल को एक ही दिन में नियुक्त करने पर केंद्र सरकार से सवाल किया। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण गोयल के चयन पर कहा कि आप लोगों ने जिस तरह से मात्र 24 घंटे के अंदर सारी चयन प्रक्रिया को पूरा किया गया वह काबिलेतारीफ है। गोयल ने 18 नवंबर को अपनी पिछली पोस्टिंग से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और 19 नवंबर को उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया और 21 नवंबर को कार्यभार संभाला।
सुनवाई के दौरन इस पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार को भी शामिल किया गया है। शीर्ष अदालत ने चुनाव आयुक्तों (ईसी) और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
जस्टिस अजय रस्तोगी ने पूछा, आपके पहले पन्ने के मुताबिक यह वैकेंसी 15 मई से थी. क्या आप हमें दिखा सकते हैं कि मई से नवंबर तक ऐसा क्या था जो सरकार पर भारी पड़ा कि नवंबर में सब कुछ सुपरफास्ट किया जाए। फाइल पर गौर करते हुए शीर्ष अदालत ने पूछा कि कानून और न्याय मंत्रालय ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए चार नामों को कैसे शॉर्टलिस्ट किया। पीठ ने पूछा, "नामों के विशाल भंडार में से सरकार वास्तव में एक नाम का चयन कैसे कर लेती है।"
अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया कि चयन के लिए एक तंत्र और मानदंड है और ऐसा कोई परिदृश्य नहीं हो सकता है जहां सरकार को हर अधिकारी के ट्रैक रिकॉर्ड को देखना पड़े और यह सुनिश्चित करना पड़े कि वह छह साल का कार्यकाल पूरा करता है।
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