विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 2022 : श्राद्ध कर्मकांड में जुटे श्रद्धालु, मोक्षदायिनी फल्गु किनारे उमड़ा जनसैलाब

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गया : विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 2022 महासंगम के दूसरे दिन शनिवार को मोक्षदायिनी फल्गु नदी में श्राद्ध कर्मकांड करने का विधान है। वहीँ विभिन्न पिंडवेदियों पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। इस दौरान पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर श्रद्धालु पूरे विधि विधान से श्राद्ध कर्मकांड करते नजर आए।

इस संबंध में विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभूलाल विट्ठल ने कहा कि 15 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष मेला के दूसरे दिन फल्गु नदी में श्राद्ध कर्मकांड करने का विधान है। फल्गु के पवित्र जल से स्नान कर तर्पण किया जाता है साथ ही पिंडदान की प्रक्रिया संपन्न कराई जाती है। जिससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मुख्य रूप से फल्गु नदी में पांच वेदियों पर पिंडदान करने का विधान है। देश-विदेश से आए श्रद्धालु आज फल्गु नदी में पिंडदान कर रहे हैं। स्थानीय पंडा समाज के लोगों के द्वारा पूरे विधि विधान से पिंडदान की प्रक्रिया संपन्न कराई जा रही है।

वही राजस्थान के जयपुर से आए पिंडदानी अतुल शर्मा ने कहा कि अपने माता-पिता दादा और बड़े भाई का पिंडदान करने के लिए गया जी आए हुए हैं। बचपन से ही सुनते आए हैं कि गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। इसी को लेकर आज पिंडदान कर्मकांड कर रहे हैं। गया शहर के फल्गु नदी के जल से तर्पण कर्मकांड किया है। इस बार फल्गु नदी में काफी पानी है। जिसे देखकर काफी अच्छा लग रहा है। हमारे पिताजी ने भी अपने समय में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था। अपने पूर्वजों की इस परंपरा को निभाते हुए आज हमने भी पिंडदान कर्मकांड किया है।

इस दौरान जयपुर से पिंडदान करने आए पिंडदानी पूरणमल विश्वास ने कहा कि गयाजी को मोक्षधाम कहा जाता है। जहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए हमने यहां पर पिंडदान किया है। फल्गु नदी के जल को देखकर काफी प्रसन्नता हुई। फल्गु नदी के जल से तर्पण कर्मकांड कर हमने पिंडदान की प्रक्रिया पूरी की है। उन्होंने बताया कि हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलेगी। इसी कामना के साथ श्राद्ध कर्मकांड की विधि को हमने संपन्न किया है। गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को विष्णुलोक व बैकुंठ में वास होता है।


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