वट सावित्री पर सुहागिनों ने की पूजा-अर्चना : सदियों पुरानी आस्था में लिपटी पतिव्रता धर्म की अनुपम परंपरा
मधुपुर : शहर के ऐतिहासिक पंच मंदिर परिसर स्थित वट वृक्ष के नीचे सोमवार को वट सावित्री व्रत के अवसर पर सैकड़ों सुहागिन महिलाओं ने पूजा-अर्चना की और अखंड सौभाग्य की कामना की. सुहाग की सलामती और पति की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने पूरे विधि-विधान से वटवृक्ष की परिक्रमा की. रक्षा सूत्र बांधा और श्रद्धा भाव से व्रत कथा सुनी.
सुबह से ही मंदिर परिसर में आस्था की अनूठी छटा बिखर गई थी. लाल,पीली और गुलाबी साड़ियों में सजी महिलाएं मांग में सिंदूर,हाथों में चूड़ियां और पैरों में पायल की रुनझुन के साथ जब पूजा के लिए पहुंची,तो पूरा वातावरण एक आध्यात्मिक रंग में रंग गया.
महिलाओं ने वट वृक्ष के चारों ओर सात बार परिक्रमा करते हुए कथा में वर्णित सावित्री-सत्यवान की अमर प्रेम गाथा को याद किया.सावित्री ने यमराज से भी अपने पति का जीवन वापस ले लिया था. यही कारण है कि इस दिन को पतिव्रता नारी की आस्था,प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है.
पूजन के उपरांत व्रति महिलाओं ने एक-दूसरे को व्रत की शुभकामनाएं दीं और जीवनसाथी की लंबी उम्र की कामना के साथ मनोकामना पूर्ति हेतु मन में संकल्प लिया.
इस मौके पर वीणा देवी,अनीता देवी,नीता श्रीवास्तव आदि व्रति महिला भावुक होकर बोली, “हर साल यह व्रत मेरे लिए आस्था नहीं,बल्कि मेरे जीवन की प्रार्थना बन चुका है. जब तक सांस है,तब तक यह व्रत करती रहूंगी.”
मंदिर समिति ने भी इस अवसर पर विशेष व्यवस्था की थी. पुजारी द्वारा विधिवत पूजा करवाई गई और कथा का श्रवण कराया गया.
वट सावित्री व्रत भारतीय नारी की उस भावना को उजागर करता है, जो अपने जीवनसाथी के लिए हर कठिनाई को सहने को तैयार रहती है. यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा भी है, जो आज की बदलती दुनिया में भी उतनी ही प्रासंगिक है. जब तक ऐसे पर्व जीवित हैं, तब तक भारतीय संस्कृति की आत्मा भी जीवित रहेगी.