आरा में महादलित परिवारों के लिए खेल महाकुंभ : माता शबरी क्रिकेट टूर्नामेंट 15 नवंबर से, 'नई आशा' की पहल की हो रही सराहना

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Sports Mahakumbh for Mahadalit families in Arrah Sports Mahakumbh for Mahadalit families in Arrah

ARA :आरा का वीर कुंवर सिंह स्टेडियम माता शबरी क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए सज-धज कर तैयार है। कल यानी 15 नवंबर को टूर्नामेंट का विधिवत उद्घाटन बिहार के अपर मुख्य सचिव ( शिक्षा) डॉ. एस. सिद्धार्थ के हाथों होगा। तीन दिवसीय आयोजन के मुख्य आकर्षण होंगे महादलित परिवार के वैसे बच्चे, जो अबतक मुसहर टोली से आगे की दुनिया देखे ही नहीं थे। अब वे आरा के विशाल स्टेडियम में अपनी प्रतिभा का जलवा दिखाएंगे। नई आशा के बैनर तले होने वाले महोत्सव में दूसरी कई गतिविधियां भी रहने वाली हैं।

पत्रकार डॉ. भीम सिंह भवेश की परिकल्पना

प्रभु श्रीराम की अनन्य भक्तिन माता शबरी के नाम पर महादलित परिवार के बच्चों के लिए क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित करने की परिकल्पना डॉ. भीम सिंह भवेश की है। बताने की जरुरत नहीं है कि भोजपुर के भीम सिंह वैसे शख्सियत बन गये हैं, जिन्होंने पत्रकारिता के रास्ते समाजसेवा में एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। तभी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने लोकप्रिय रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में डॉ. भवेश के कार्यों को प्रमुखता से रेखांकित किया।

डॉ. भीम सिंह कहते हैं कि “टूर्नामेंट आयोजन का उद्देश्य केवल खिलाड़ी तैयार करना नहीं है। वे खेल के जरिए महादलित परिवार के युवाओं के बीच शिक्षा का प्रचार-प्रसार तेज करना चाहते हैं। उनको दुनिया की झलक दिखाना चाहते हैं, जहां से वे अपने सपनों को उड़ान दे सकें। भोजपुर सूबे बिहार का पहला जिला है, जहां महादलित परिवार के बच्चों के लिए अलग से क्रिकेट टूर्नांमेंट आयोजित होता है।आज ही खिलाड़ियों को जर्सी बांटने का कार्य सम्पन्न हुआ।

टूर्नांमेंट में 22 मुसहर टोले से ढाई सौ से ज्यादा बच्चे भाग लेने वाले हैं। साथ में उनके माता-पिता भी। उनके लिए सामूहिक भोज का बंदोबस्त भी किया जा रहा है।”

विशिष्ट जनों की उपस्थिति से गुलजार होगा मंच

'नई आशा' के बैनर तले आयोजित तीन दिवसीय टूर्नामेंट का उद्घाटन बिहार राज्य के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ करेंगे। मुख्य अतिथि सचिव, स्वास्थ्य एवं वाणिज्यकर विभाग संजय कुमार सिंह होंगे। भोजपुर के जिलाधिकारी तनय सुलतानिया और डीडीसी डॉ. अनुपमा सिंह आदि विशिष्ट अतिथि होंगे।

दूसरे दिन वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा के कुलपति प्रो. शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी स्टेडियम पहुंचेंगे। इस मौके पर खेल प्रतिभागियों को शिक्षा के प्रति जागरूकता दिलाने हेतु शपथ दिलाई जाएगी। तीसरे और अंतिम दिन अपर मुख्य सचिव राजस्व एवं ग्रामीण कार्य विभाग दीपक कुमार सिंह बच्चों का उत्साहवर्द्धन कर पुरस्कृत करेंगे।

नई आशा ने दिए सपनों को पंख

ये सबकुछ एक दिन में नहीं हुआ। समाज के अंतिम पायदान पर खड़े और हर दृष्टि से अभिवंचित मुसहर जाति के बच्चों के उन्नयन की पटकथा लिखने की शुरुआत वर्ष 2003 में आरा के जवाहर टोला मुसहर टोली से शुरू हुई। धीरे-धीरे आरा के अन्य 9 मुसहर टोलियों में 'नई आशा' पहुंची। बाद में इसका विस्तार भोजपुर, बक्सर, रोहतास एवं अरवल जिला के अन्य मुसहर बस्तियों में हुआ।

दस्तावेज बताते हैं कि 2008 तक डॉ. भवेश की पहल पर चार हजार बच्चों का नामांकन कराया गया, जिसकी गूंज बिहार विधान परिषद में सुनाई पड़ी। जब एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से तत्कालीन विधान पार्षद दिवंगत नागेंद्र प्रसाद सिंह ने इस सवाल को उठाया। महादलित बच्चों के नामांकन की चर्चा से उत्साहित होकर सरकार ने मुसहर जाति के बच्चों को वस्त्र के लिए 500 रुपये अलग से देने का प्रावधान किया।

नई आशा के खाते में उपलब्धियों की लंब फेहरिस्त

'नई आशा' अब तक 118 स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से साढ़े सत्रह हजार से अधिक मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण कराया। इस दौरान तीन दर्जन से अधिक कुष्ठ एवं टीबी मरीजों की पहचान हुई, जिनका इलाज संस्था ने संभव कराया। ग्रामीण बच्चों में शिक्षा के प्रति लगाव व जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से आरा के लक्षणपुर में एक सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना डा. भवेश द्वारा की गई।

पुस्तकालय का अपना भवन 2017 में बन कर तैयार हुआ। पुस्तकालय के माध्यम से सरकारी एवं अल्पसंख्यक विद्यालय के आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों का 2019 से नेशनल मेरिट स्कॉलरशिप की तैयारी शुरू कराई गई, अब तक 132 विद्यार्थी इस प्रतियोगिता में सफल हुए, जिन्हें नवम् से 12वीं तक प्रतिवर्ष बारह हजार रुपये प्रति विद्यार्थी छात्रवृति प्राप्त होती है। जिले के करीब 3200 लोगों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन और 87 अनाथ बच्चों को परवरिश योजना का लाभ भी नई आशा की पहल पर मिलना संभव हुआ। मुसहर समाज की वास्तविक स्थिति और चुनौतियों पर लिखी डॉ. भवेश की किताब ‘हाशिए पर हसरत’ भी सत्ता प्रतिष्ठान और बौद्धिक जगत को समाज की इस तल्ख सच्चाई से अवगत कराने में मददगार हुई।