आंखे होंगी चार तो क्या निकलेगी कोई राह : NDA से अलग होने के बाद शाह-नीतीश की पहली मुलाकात, क्या होगी बात?


पटना : बिहार में नीतीश का बीजेपी का साथ छूटने के करीब डेढ साल के बाद और पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव परिणाम के तुरंत बाद पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक पहली बार पटना में हो रही है. केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी , उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शामिल होंगें. हालांकि यह बैठक पूर्वी राज्यों से लगी अंतर्ऱाष्ट्रीय सीमा सुरक्षा , उग्रवाद समेत अन्य विषयों पर चर्चा के लिये बुलायी गयी है लेकिन इसके राजनीतिक संदेश भी काफी महत्वपूर्ण होने की संभावना है.
दरअसल बिहार में बीजेपी का दामन छोड़ने और महागठबंधन में शामिल होने के बाद नीतीश केन्द्र की सत्ता से बीजेपी को बेदखल करने का संकल्प लिया था.नीतीश ने इस बाबत विपक्षी दलों को एक जुट करने और विपक्षी दलों के नेताओं को एक मंच पर लाने में सफलता ही नही हासिल की पटना की बैठक में इस अभियान को एक मुकाम भी दिया था. नीतीश के इस मिहनत का परिणाम भी दिखने लगा था और विपक्षी एकता को मजबूत होते देख बीजेपी बैचेन भी दिखने लगी थी . लेकिन पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव ने देश की राजनीतिक तस्वीर ही बदल दी है. इससे ना केवल कांग्रेस कमोजर हुई विपक्षी एकता को भी झटका लगा है और बीजेपी का मनोबल 7वें आसमान पर है. शायद यही वजह है कि पांच राज्यों में चुनाव संपन्न होने के तुरंत बाद ही केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल और झारखंड का दौरा करने के बाद बिहार आ रहे हैं.
हालांकि बीजेपी से अलग होने के बाद प्रधानमंत्री या गृह मंत्रियों द्वारा बुलायी गयी किसी भी बैठक में शामिल होने से नीतीश परहेज करते रहे हैं. लेकिन इस बार नीतीश चाहकर भी इस बैठक से खुद को अलग नही रख सकते वजह साफ है मेजबान ही गायब हो तो फिर बैठक का मायने क्या रह जायेगा . लेकिन यह तो सामान्य शिष्टाचार की बात हुई हकीकत कुछ और है. असल में 2024 के लोकसभा चुनाव में फतह हासिल करने और केन्द्र सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिये नीतीश ने जो रणनीति बनायी है उसमें जातीय गणना और आरक्षण की सीमा बढाये जाने के अलावा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने या विशेष पैकेज की मांग कैबिनेट से पास कराकर नीतीश ने गेंद केन्द्र के पाले मे डाल दिया है.
पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक के बहाने जहां नीतीश कुमार इस मुद्दे को मजबूती से केन्द्र के समक्ष रख सकते है वहीं अमित शाह भी इस मामले पर स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट कर सकते हैं. वह भी तब जब भले ही नीतीश बीजेपी के विरोध में खड़े दिख रहे हों लेकिन दरभंगा एम्स के मामले में केन्द्र सरकार ने नीतीश के प्रस्ताव को स्वीकार कर यह संकेत तो दे ही दिया है कि नीतीश के हमले का जबाव ही नही नीतीश की पुरानी दोस्ती अभी भी उसके दिल में है.ऐसे में अगर अमित शाह , नीतीश की आंखें चार हुई तो नीतीश की कुछ मागें अगर केन्द्र मान भी लें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं.
ऐसे में अमित शाह और नीतीश दोनों के लिये यह अवसर है कि बैठक के बदले दोनों की आंखे चार ही नही हो आंखों आंखो में ही कोई बात हो जाये. शायद यही वजह है कि राजनीतिक पंडितों की नजर इस बैठक पर लगी है . देखिये आगे आगे होता है क्या यानि जब मिलेगें दो बिछुड़े यार तो क्या बढेगा सियासत का प्यार.
अशोक मिश्रा , संपादक .