किशनगंज के किसान का कमाल : स्मार्ट किसान खेती को बना रहे हैं स्मार्ट, ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सीमांचल को दी नई पहचान
किशनगंज : यह देश का स्मार्ट काल है। दरअसल किसानी को लेकर हम ढेर सारी बातें करते हैं, बहस करते हैं लेकिन खेत और खलिहान के बीच जूझते किसान को एक अलग रूप में पेश करने के लिए हम अब तक तैयार नहीं हुए हैं। किसानों का कोई ब्रांड एम्बेसडर है या नहीं ये मुझे पता नहीं लेकिन इतना तो पता है कि देश में ऐसे कई किसान होंगे जो अपने बल पर बहुत कुछ अलग कर रहे हैं। स्मार्ट किसान की जब भी बात होती है तब हमे ड्रेगन फ्रूट की खेती में जुटे किसान की याद आने लगती है। खास कर बिहार के किशनगंज में जिस तरह से ड्रेगन फ्रूट की खेती दिख रही है यदि अन्य किसान अनुसरण करे तो इस फसल से किसानों की तकदीर बदल सकती है। वैसे तो विकास के कई पैमानों पर बिहार का पूर्णिया, किशनगंज और सीमांचल का अन्य इलाका देश के दूसरे कई हिस्सों से पीछे हैं लेकिन नगदी फसल के मामले में इस इलाके के किसानों का प्रदर्शन ज़बरदस्त है। अनारस , केला , अमरुद , और ड्रेगन फ्रूट की फसल ने जिस तरह से किसानों की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाया है, वह काबिले तारीफ है।अब वक्त आ गया है कि हम किसानी को एक पेशे की तरह पेश करें। दरअसल किसान को हमें केवल मजबूत ही नहीं बल्कि स्मार्ट भी बनाना होगा। वैसे यह भी सच है कि स्मार्ट सिटी की बहसों के बीच स्मार्ट किसान हमें खुद ही बनना होगा।
नागराज नखत ने खेती की परिभाषा बदल दी
ठाकुरगंज नगर पंचायत के वार्ड संख्या 1 स्थित एक खेत मे मुलाकात होती एक बुजुर्ग से . उम्र 75 वर्ष लेकिन अपने खेत में लगातार सक्रीय . कोलकत्ता से बी कॉम के बाद से ही इलाके में खेती के जरिये अपनी पहचान बनाने वाले ये सज्जन है नागराज नखत . कभी जेपी आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले नागराज नखत आज इलाके में किसानो के लिए आइकन बन चुके है .
इलाके में केले की खेती को दी व्यावसायिक पहचान
बात 1968 की है जब पठन पाठन कर कोलकत्ता से ठाकुरगंज आये श्री नखत ने परम्परागत कार्य व्यवसाय छोड़ कर खेती करने की ठानी . इस बात पर उनके परिजनों ने भी काफी सहयोग किया और भुसावल से केला की पुली लाकर इलाके में पहली बार सिंगापुरी केले की खेती शुरू की . इस दौरान धीरे धीरे केला की अन्य किस्मे भी उपजाई जाने लगी मालभोग , ( मर्तवान ) जहाजी , रोवेस्टा भेराईटी की खेती कर इलाके में खेती के तरीके को बदल दिया इस दौरान इलाके में पहली बार लाल केला की खेती भी इन्होने ही कर के अब तक जुट , धान और गेहू की फसल की खेती करने को मजबूर इलाके के किसानो को नगदी फसल की तरफ आकर्षित कर दिया . स्थति यह हो गई की 1980 के अंतिम दशक और नब्बे के शरुआती दशक में केले की खेती ने ठाकुरगंज को सम्पूर्ण देश में एक अलग पहचान दी जहा कोलकत्ता जैसे मार्केट में सूबे के अन्य इलाके से जाने वाले केले बिहार के केले के नाम पर जाने जाते थे वही ठाकुरगंज से जाने वाला केला ठाकुरगंज के नाम पर अलग पहचान रखता था . उस वक्त जिले में ठाकुरगंज , पोठिया , किशनगंज तक केले की खेती होने लगी थी . केले की खेती का रुझान ऐसा चढ़ा की लोग अच्छा खासा कारोबार छोड़ कर केले की खेती में रम गए . परन्तु मौसम की मार से होने लगे नुक्सान ने लोगो को इस खेती से विमुख कर दिया .
100 पेड़ से शुरू की खेती, अब 5 एकड़ में फैला
लगभग 10 वर्षो तक खेती बाड़ी छोड़ कर पारिवारिक व्यवसाय में व्यस्त नागराज नखत ने फिर कुछ अलाग करने की ठानी और 2014 में ड्रेगन फ्रूट की खेती शुरू की। शुरुआत में केवल 100 पेड़ से शुरू यह खेती आज 5 एकड़ के भूभाग में फ़ैल चुका है। राज्य में पहली बार विदेशी फल ड्रेगन फ्रूट की खेती करके जिले का नाम रोशन करने वाले नगराज नखत ने बताया की आज के दिन खेती फसलों की लगातार बढ़ती लागत और कम होती आय इसमें भी मजदूरों की बढ़ती समस्या के कारण मुनाफे का धंधा नहीं रहा ऐसे में ड्रेगन फ्रूट की खेती उन्हें अन्य खेती से थोड़ी अलग लगी आज अपने खेत में 17000 ड्रेगन फ्रूट के पोधे के साथ रोज नए तकनीक का इस्तेमाल कर इलाके के किसानो को नया रास्ता दिखा रहे है।यही नहीं इनके बागान में दूर दूर से खेती में दिलचस्पी रखने वाले लोग पहुंचते है जिन्हें इनके द्वारा मार्गदर्शन दिया जाता है जिसके बाद दर्जनों किसान अब ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाभान्वित हो रहे है । ड्रैगन फ्रूट की खेती को देखने के लिए बिहार के राज्यपाल,पटना हाई कोर्ट के न्यायधीश समेत बिहार सरकार के कई मंत्री भी पहुंच चुके है जो की नागराज नखत की सराहना करते नहीं थकते. हालांकि अभी तक कोई सरकारी मदद इन्हें नहीं मिली है।