ऐतिहासिक दिन : सप्रीम कोर्ट ने किस सबूत के आधार पर राम मंदिर निर्माण के दिये थे आदेश,जानें..
KASHISH NEWS DESK:-सैकड़ों साल के इंतजार के बाद आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हो रही है जिसको लेकर देश-विदेश में हिन्दू धर्मावलंबियों में खासा उत्साह है.इस मंदिर का निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हो रहा है,और सुप्रीम कोर्ट ने विवादित बाबरी मस्जिद ढांचे की जगह मंदिर निर्माण का आदेश भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) की रिपोर्ट के आधार पर दिया था.
कोर्ट के आदेश पर एएसआई ने विवादित स्थल की खुदाई की थी और वहां मंदिर से जुड़े कई सबूत मिले थे.इस संबंध में एएसआई के तत्कालीन महानिदेशक बी.आर मणि ने मीडिया से बात करते हुए पूरे स्थल और सबूत के बारे में विस्तार से चर्चा की है,जो उन्होंने कोर्ट में रखे थे.एएसआई को खुदाई के दौरान क्या-क्या सबूत मिले थे और फिर कोर्ट में एएसआई ने क्या क्या तर्क रखे थे.इसकी जानकारी देते हुए बी.आर मणि ने कहा कि खोदाई से पहले अयोध्या में जीपीआर (ग्राउंड पेनाट्रेटिंग रडार) सर्वे कराया गया था।उसमें पता चला था कि नीचे ढांचा है।फिर में अयोध्या में मिले सारे पिलर एक ही लाइन में थे,यह भी मंदिर के होने का एक बड़ा प्रमाण था। बाद में श्रीराम मंदिर के निर्माण के दौरान कई और भी पुरावशेष मिले,जिससे मंदिर होने की बात की और भी ज्यादा पुष्टि हुई। इसमें बहुत सारे पिलर,शिवलिंग, आमलक आदि शामिल है।
मणि ने आगे कहा कि 12 मार्च, 2003 से खुदाई शुरू की गई। इसमें पांच पंक्ति में पिलर मिले। प्रत्येक पंक्ति में 17 पिलर थे। इस तरह से कुल 85 पिलर होते हैं, जबकि ठीक गर्भगृह में विवादित ढांचे के बिल्कुल बीच वाली जगह पर कोई पिलर नहीं था। यह वही जगह है, जहां रामलला विराजमान थे। इस तरह से कुल पिलर की संख्या ठीक 84 होती है और 84 व 108 जैसे अंक मंदिरों के लिए बहुत शुभ माने जाते हैं। 14वीं शताब्दी की अयोध्या महात्म्य नामक पुस्तक में 84 स्तंभ के मंदिर का उल्लेख मिलता है। बहुत सारे मंदिरों के निर्माण में उस वक्त और आज भी 84 व 108 की संख्या का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसके अलावा बहुत सारी ऐसी मूर्तियां व डेकोरेटेड आर्टिकल मिले, जो सिर्फ मंदिरों में उपयोग होते हैं, जैसे पत्रवल्लरि ,कपोतपालिका मगरमच्छ के मुंह वाला मकरमुख मिला, जिसका इस्तेमाल मस्जिद के फाउंडेशन में किया गया था। इसे मंदिर से उठाकर लगाया गया था।
इसके साथ ही विवादित ढांचा बनाते समय उसमें विष्णु हरि शिलालेख का उपयोग किया गया, जो मंदिर का हिस्सा था। ढांचे को तोड़ा गया, तो उसमें यही शिलालेख मिला था। सीमित इलाके में खोदाई की अनुमति थी। इसलिए हमें 50 पिलर ही मिले। अगर पूरे इलाके में खोदाई की इजाजत मिलती, तो संभवतः सभी पिलर मिल जाते.कोर्ट से कुल 2.7 एकड़ में खोदाई का आदेश मिला था,जिसमें से रामलला की मूर्ति के 10 फुट के दायरे को छोड़कर खुदाई की गई थी। पांच गुणा पांच मीटर के 90 गड्ढे बनाए गए थे।इसमें से दो गड्ढे ऐसे थे, जिसमें 12-13 मीटर की गहराई तक गए थे। इनमें जहां तक प्राकृतिक मिट्टी थी, वहां तक खोदाई की थी। वहां पर तीन और मंदिरों के प्रमाण मिलते हैं, जिनमें से एक मंदिर 11वीं शताब्दी में बना होगा। उसको कुछ समय बाद तोड़ा गया या डैमेज हुआ था। उसके बाद,वहीं पर 50-100 साल के अंदर फिर एक मंदिर का निर्माण मिला। यह वही मंदिर था, जिसमें 60 मीटर की दीवार का निर्माण किया गया था। इसके अलावा नौवीं-दसवीं शताब्दी के भी मंदिर का एक अवशेष मिला है, जो वृत्ताकार था। यह अत्यंत प्राचीन था, जो उस समय सामान्य तौर पर नहीं बनाया जाता था। इस तरह के मंदिरों की शुरुआत नौवीं-दसवीं सदी के आसपास शैव आचार्यों ने की थी, जिनका संप्रदाय मत मयूर है। मूर्ति पर अभिषेक किए हुए पानी निकलने का रास्ता मंदिरों में हमेशा ही उत्तर की तरफ होता है। अयोध्या उत्खनन में भी उत्तर की तरफ पानी निकलने का प्रमाण मिला था।
मणि ने कहा कि विवादित ढांचे के फ्लोर से जली हुई लकड़ी व कार्बन के अन्य सैंपल मिले थे। उसका विश्लेषण कराया गया तो 1540 से कुछ वर्ष पहले या बाद के होने की जानकारी मिली। यह सभी को पता है कि सन 1528 में वह ढांचा बना था। इस तरीके से डेट मिलती रही। सबसे रोचक बात यह है कि आज तक लोग यह जानते थे कि अयोध्या मंदिर का निर्माण 700 ईसा पूर्व की शुरुआत में हुआ था। हमारी रिपोर्ट आई, तो सबसे पुरानी 1680 ईसा पूर्व की डेट आई। इसके अलावा सात और डेट आई जो 680 ईसा पूर्व के पहले की थी। इसमें एक उत्तरी कृष्ण मार्जिद मृदभांड (एनवीपीडब्ल्यू) मिला, जो एक पॉटरी की तरह था। यह 680 ईसा के आसपास बनाई जाती थी। बाद में दूसरे साइट्स पर भी इसी तरह की 1200, 1300, 1500 ईसा पूर्व के आसपास की डेट मिली। इस तरीके से लोगों की आम धारणा गलत साबित हुई। इतिहासकार 1500 ईसा पूर्व से 500-600 ईसा पूर्व के कालखंड को डार्क एज मानते थे। डार्क एज का मतलब इस समय की कोई चीजें उपलब्ध नहीं है। जब हमें 1200, 1300, 1500 ईसा पूर्व की चीजें मिली थीं तो यह डार्क एज होने की बात भी गलत साबित हुई।