भोजपुरी संगीत के कोहिनूर सम्मानित : 103 साल की उम्र में मिला लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
NEWS DESK :भोजपुरी संगीत के कोहिनूर को सम्मानित किया गया है। जी हां, 103 वर्षीय लोक गायक जंग बहादुर सिंह को भोजपुरी लोकगायिकी के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए 'लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड ' से सम्मानित किया गया है। गोपालगंज के भोरे के अमही मिश्र में जय भोजपुरी-जय भोजपुरिया द्वारा आयोजित साहित्यिक सांस्कृतिक महोत्सव में अवार्ड दिया गया।
भोजपुरी संगीत के कोहिनूर हुए सम्मानित
103 साल के लोक गायक जंग बहादुर सिंह को ये सम्मान प्रख्यात लोक गायक मुन्ना सिंह व्यास, भरत शर्मा 'व्यास' और संस्था अध्यक्ष सतीश त्रिपाठी द्वारा संयुक्त रूप से दिया गया। इस मौके पर भोजपुरी के लोकप्रिय गायक मदन राय, गोपाल राय, विष्णु ओझा, उदय नारायण सिंह, राकेश श्रीवास्तव, कमलेश हरिपुरी और संजोली पाण्डेय समेत कई कलाकार और हजारों की संख्या में श्रोता मौजूद थे।
गीतों से अंग्रेजों को ललकारते थे जंग बहादुर
आपको बता दें कि साल 1920 में बिहार के सीवान के कौसड़ गांव में जन्मे जंग बहादुर सिंह आजादी के पहले अपने क्रांतिकारी भोजपुरी गीतों से अंग्रेजों को ललकारते रहे हैं। भोजपुरी देशभक्ति गीत गाने की वजह से अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया था। आसनसोल, झरिया, धनबाद और पूरे बिहार-यूपी में तीन दशक तक जंग बहादुर सिंह की गायिकी का डंका बजता रहा। भैरवी गायन कोई उनके सामने टिकता नहीं था।
माइक की नहीं होती थी जरूरत
वे पश्चिम बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल कारखाने में नौकरी किया करते थे। जंग बहादुर सिंह ने भोजपुरी की व्यास शैली में खूब गाने गाए हैं। उन्होंने झरिया, धनबाद, दुर्गापुर, रांची समेत अन्य क्षेत्रों में भी अपनी आवाज के जादू को लोगों तक पहुंचाया। उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और देशभक्तों के लिए खूब गाने गाए थे। वह एक ऐसे गायक हैं, जिन्हें माइक की भी जरूरत नहीं होती और उनकी आवाज कोसों दूर तक चली जाती है।
बड़े-बड़े पहलवानों को चटा चुके हैं धूल
जंग बहादुर सिंह ने किसी से भी गाने नहीं सीखा था। वह लोक गायक बनने से पहले पहलवान थे। उन्होंने बड़े-बड़े पहलवानों के साथ कुश्तियां भी लड़ीं। जब वह 22-23 साल के थे तो अपने छोटे भाई के पास झरिया, धनबाद गए थे। वहां उन्होंने कुश्ती के दंगल में बिहार का प्रतिनिधित्व किया और तीन कुंतल के बंगाल की ओर से लड़ने वाले पहलवान को हरा दिया। इसके बाद जंग बहादुर सिंह 'शेर-ए-बिहार' बन गए। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने गायकी की ओर रुख कर लिया। लोग उन्हें इतना पसंद करते थे कि किसी कार्यक्रम में भीड़ जुटानी हो तो आयोजक उनके पोस्टर चस्पा करा देते थे।
लगातार घंटों गा सकते हैं गाना
भोजपुरी में जंग बहादुर सिंह आजादी के संघर्ष से अब तक ढेरों देशभक्ति गीत गा चुके हैं। वह देशभक्तों में जोश जगाने के लिए घूम-घूमकर देशभक्ति के गीत गाते थे। वह कई बार पुलिस के आक्रोश का भी शिकार हुए लेकिन उन्होंने गाना नहीं छोड़ा।
देश को आजादी मिलने के बाद भी उनका गाना गाने का सिलसिला जारी रहा और धीरे-धीरे वह लोक धुन पर देशभक्ति गीत गाने के लिए जाने जाने लगे। 60 के दशक में झारखंड, बंगाल और बिहार में उनका खूब नाम था लेकिन आज जंग बहादुर की याददाश्त धूमिल पड़ रही है। उन्हें दिल की बीमारी के चलते डॉक्टर ने गाने से मना किया है लेकिन आज भी वह 4 घंटे तक लगातार गाना गा लेते हैं।