माओवादियों के गढ़ में वोटर्स का उत्साह : 35 साल बाद वोट डाल रहे बूढ़ा पहाड़ के मतदाता, खत्म हुआ माओवादियों का खौफ
गढ़वा : झारखंड का बूढ़ा पहाड़, वो इलका जहां नक्सलियों की हुकूमत चलती थी, उनकी तूती बोलती थी. लेकिन आज यहां लोकतंत्र बोल रहा है. यहां करीब 35 साल बाद हजारों वोटर पहली बार इवीएम के बटन पर उंगली दबा रहे हैं. गढ़वा जिले में आठ बूथ ऐसे थे जहाँ पहले कभी मतदान हुआ ही नहीं था और आज इन बूथों पर मतदान हो रहे हैं. यह इलाका ऐसा था की मतदान कर्मियों को हेलीकाप्टर से बूथ तक पहुँचाना पड़ा था. बढ़गढ़ के मदगढ़ी, हेसातु सहित आठ बूथ.. बूढा पहाड़ के तराई के गाँव में हैं. जहाँ आज तीन दशक के बाद मतदान हो रहा है. इन बूथों पर काफ़ी संख्या मे मतदान कर्मियों की भीड़ देखी जा रही है.
बूढ़ा पहाड़ इलाका आज भी इतना दुर्गम है कि यहां तक सवारी गाड़ियां नहीं पहुंचतीं. एक तरफ झारखंड और दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ को बांटने वाला बूढ़ा पहाड़ माओवादी नक्सलियों का सबसे बड़ा और सबसे सुरक्षित पनाहगाह रहा है. माओवादियों ने बारूदी सुरंगों और हथियारबंद दस्तों के साथ इलाके की इस तरह घेराबंदी कर रखी थी कि पुलिस और सुरक्षाबलों के लिए यहां पहुंचना मुश्किल था. इलाके में रहने वाली तकरीबन 20 हजार की आबादी नक्सलियों का हर हुक्म मानने को मजबूर थी. ऐसे में उनके लिए भला क्या चुनाव और क्या वोट ! लेकिन इस बार नक्सलियों के मंसूबों पर पानी फिर गया. बड़ी संख्या में वोटर्स मतदान केन्द्रों पर पहुंच रहे हैं और अपना मत डाल रहे हैं. यहां बंपर वोटिंग हो रही है.