SAD NEWS : रामधारी सिंह दिनकर की जयंती मनाने की चल रही तैयारी,अचानक उनके बेटे के निधन की खबर आ गयी
BEGUSARAI:-राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 115 वीं जयंती की तैयारी उनकी जन्मस्थली बेगूसराय जिले का सिमरिया गांव में की जा रही है.उनकी जयंती 23 सितंबर से ठीक पहले एक बुरी खबर आयी है.उनके बेटे केदारनाथ सिंह का निधन हो गया है.वे दिल्ली के एक अस्पताल में दो महीने से ज्यादा समय से भर्ती थे.उनकी उम्र करीब 90 साल की थी.कोराना काल में वे भी संक्रमित हो गए थे जिसके बाद सांस लेने मे अक्सर उन्हें तकलीफ होते रहती थी.पिछले साल सितंबर माह में अपने पिता दिनकरजी की जयंती के अवसर पर सिमरिया गांव आये थे.और इस साल पिताजी की जयंती से ठीक एक दिन पहले उनका निधन हो गया है.केदारनाथ सिंह के निधन की सूचना पर पैतृक गांव सिमरिया में गम का माहौल है.
23 सितंबर को दिनकर की 115 वीं जयंती
बताते चले कि रामधारी सिंह दिनकर की साहित्य और राजनीतिक के क्षेत्र में अलग पहचान है.उनकी कविता आज भी लोगों को जोश बढ़ाती है और सत्ता से सवाल करने का साहस देती है.तुमने दिया राष्ट्र को जीवन राष्ट्र तुम्हें क्या देगा , अपनी आग तेज रखने को बस नाम तुम्हारा लेगा, इस पंक्ति को लिखने वाले राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की 115 वीं जयंती उनके जन्मस्थली बेगूसराय के सिमरिया गांव में मनाने की तैयारी चल रही है. दिनकर के गांव सिमरिया में जंयती समारोह में जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा, केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह हिस्सा लेंगे वहीं शहर के दिनकर भवन में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित समारोह प्रभारी मंत्री शमीम अहमद, पर्यटन मंत्री, केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा समेत सभी विधायक, विधान पार्षद हिस्सा लेंगे।
वहीं दूसरी ओर गांव के लोगों को अभी भी कसक है कि राजनेता हो या प्रशासनिक अधिकारी दिनकर के नाम का इस्तेमाल करते हैं लेकिन जो सपना दिनकर का था और जो विकास उस गांव का होना था वह आज भी अधूरा है।
भी ओ-सुनूं क्या सिंधु मैं गर्जन तुम्हारा ,
स्वयं युगधर्म का हुंकार हूं मैं ।।
अपनी इन रचनाओं से आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। दिनकर के गांव सिमरिया और बेगूसराय में उनकी 115वीं जयंती के मौके पर भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। लेकिन गांव वालों को कसक है कि हर साल दिनकर के जयंती और पुण्य तिथि पर भव्य आयोजन किया जाता है और फिर लोग भूल जाते हैं लेकिन गांव के लोगों ने दिनकर को जिंदा रखे हुए हैं तभी तो गांव के हर दीवार पर उनकी कविता की पंक्ति आज भी लिखी हुई है साथ ही उनके घर में आज भी वह बिछावन और उनकी छड़ी उनके घर में रखी हुई हैं। गांव वालों ने कहा कि राजनीतिक लोग सिर्फ दिनकर जी का इस्तेमाल किया है। जिस दरवाजा पर दिनकर बैठका लगाते थे वह आज भी जर्जर बना हुआ है। सिमरिया गांव को आर्दश ग्राम घोषित कर दिया गया लेकिन जो विकास होना चाहिए वह नहीं हुआ है।
गंगा पार करके पढ़ने जाते थे
गौरतलब है कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 8 वर्ष की आयु में ही इनके पिता का साया खत्म हो गया । एक गरीब एवं मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्मे रामधारी सिंह दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा काफी विपरीत परिस्थितियों से होकर गुजरी। उन्होंने गांव के ही स्कूल से मिडल तक की शिक्षा प्राप्त की, तत्पश्चात मोकामा से उन्होंने वर्ष 1928 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस दौरान वह लगातार नाव से गंगा पार कर मोकामा आते-जाते रहे ।
सांसद और कुलपति की मिली थी जिम्मेवारी
रामधारी सिंह दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास से बीए ऑनर्स तक की परीक्षा 1932 में उत्तीर्ण की । उसके ठीक अगले वर्ष उन्हें एक विद्यालय में प्रधानाचार्य नियुक्त कर दिया गया।इस बीच कई उतार-चढ़ाव को देखते हुए 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद 1952 में इन्हें राज्यसभा से सांसद बनाया गया। 12 वर्ष तक यह राज्यसभा के सांसद के रूप में इन्होंने देश की सेवा की। तत्पश्चात वर्ष 1964 में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में इनकी नियुक्ति की गई । अपने राज्यसभा के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई बार सत्तासीन सरकार का भी विरोध किया था।
दिनकर की राष्ट्रभक्ति एवं विद्वता को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने वर्ष 1965 से वर्ष 1971 तक उन्हें भारत सरकार में हिंदी सलाहकार के रूप में नियुक्त किया ।