गणतंत्र दिवस पर 'तंत्र' के सामने 'गण' की जीत : जब-जब 'गण' पर तंत्र पड़ता है भारी...'तंत्र' को झकझोरता है बिहारी

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RRB-NTPC की परीक्षा के रिजल्ट को लेकर प्रदर्शन के दौरान कई तस्वीरें आईं। कहीं लाठीचार्ज तो कहीं पत्थरबाजी तो कहीं ट्रेन में आग लगाने की भयावह तस्वीर। लेकिन उन तस्वीरों को कुछ देर के लिए भुलाकर ये तस्वीर देखिए।

तिरंगे के सामने प्रदर्शन कर रहे नौजवान राष्ट्रगान गाते हुए और तिरंगे को सलामी देते हुए। देश जब 73 वां गणतंत्र दिवस के जश्न में डूबा था, उस वक्त इसी गणतंत्र के ये नौजवान भी अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन तिरंगे के साए में। दरअसल गणतंत्र की यही खूबसूरती है। दरअसल 'गणतंत्र' में 'गण' पहले और 'तंत्र' बाद में आता है और जब-जब तंत्र 'गण' को दबाने की कोशिश करता है, इस देश में तब-तब नौजवान सड़क पर उतरते हैं और आखिर में तंत्र को झुकना पड़ता है और यही हुआ। जो छात्र पहले सोशल मीडिया ट्विटर पर 90 लाख ट्वीट कर डिजिटल आंदोलन के ज़रिए अपनी बात रेलवे को सुनाना चाहते थे, उन छात्रों को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि ट्विटर पर लगाई गुहार तंत्र के कानों तक नहीं पहुंची। छात्र सड़क से लेकर रेलवे ट्रैक पर उतरे, जाम किया और कई जगहों से हिंसक तस्वीरें भी आईं। तब जाकर तंत्र की नींद खुली और जो रेलवे बोर्ड कल तक छात्रों की मांगों को अनसुना कर एक नोटिफिकेशन के सहारे खुद को सही बता रहा था। उसी रेलवे बोर्ड ने NTPC परीक्षा और ग्रुप डी लेवल 1 की परीक्षा रद्द कर दी और छात्रों की शिकायतों को सुनने और जांच करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन कर दिया। दोपहर साढ़े तीन बजे खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव सामने आए और छात्रों से हिंसक विरोध ना करने की अपील करते हुए कहा कि छात्रों की सारी शिकायतों को सुना जाएगा और शिकायतों को सुनने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा।

ज़ाहिर है तंत्र की नींद तब खुली जब ‘गण’ यानी नौजवान सड़क पर उतरे। छात्रों को बुलाकर उनकी बात पहले ही सुन ली जाती तो शायद प्रदर्शन करने की नौबत ही नहीं आती। लेकिन तंत्र को तो नौजवानों के सब्र का इम्तहान लेने में मजा आता है। जब तक छात्रों को एक नौकरी के लिए मानसिक तौर पर प्रताड़ित नहीं कर दिया जाता है, जब तक छात्रों का गुस्सा सातवें आसमान पर नहीं जाता है, तब तक तंत्र बात सुनने को तैयार ही नहीं होता है। ज़रा रेलवे में बहाली के नाम पर छात्रों के साथ मजाक की क्रोनोलॉजी समझिए, जिसकी शुरुआत 16 फरवरी 2018 को तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल के इस ट्वीट से होती है।

2019 चुनाव से पहले फरवरी 2018 में तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल ग्रुप सी और ग्रुप डी में 90 हजार नौकरियों के महाअभियान शुरु करने का ऐलान करते हैं। 2018 बीत जाता है, लेकिन नौकरियों का महाअभियान नहीं शुरु होता है। फिर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले फरवरी 2019 में अलग-अलग लेवल के 35,281 पदों के लिए आवेदन मंगाए जाते हैं। लेकिन नोटिस निकालकर फिर रेलवे बोर्ड भूल जाता है। 2020 में परीक्षा आयोजित करवाने के लिए छात्रों ने प्रदर्शन किया, तब जाकर RRB NTPC की सीबीटी 1 परीक्षा, 28 दिसंबर, 2020 से 31 जुलाई, 2021 तक ली गई। जिसमें 70 लाख से ज्यादा छात्रों ने RRB NTPC की सीबीटी 1 परीक्षा दी। परीक्षा हुई, तो रिजल्ट जारी करने को लेकर छात्रों को सड़क पर उतरना पड़ा। 15 जनवरी 2022 को RRB NTPC की सीबीटी 1 परीक्षा का रिजल्ट जारी किया गया। रिजल्ट जारी होते ही रेलवे बोर्ड की कई खामियां उजागर हुई। इसे लेकर छात्रों का गुस्सा बढ़ ही रहा था कि इसी दौरान ग्रुप डी की बहाली के लिए दो परीक्षा लेने का ऐलान कर दिया जाता है, जिससे रेलवे बोर्ड के खिलाफ छात्रों का गुस्सा सड़कों पर नज़र आने लगता है। तीन दिनों के उग्र प्रदर्शन के बाद रेलवे की नींद खुलती है और फिर परीक्षा स्थगित कर छात्रों की बात सुनने का भरोसा मिलता है। यानी हर चीज के लिए छात्रों को सड़क पर उतरना पड़ता है तब जाकर तंत्र की नींद खुलती है।

वैसे सच ये भी है कि नींद में मदमस्त तंत्र को झकझोरने की शुरुआत बिहार की धरती से ही होती है। 74 के जेपी को याद कर लीजिए। 18 मार्च 1974 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में छात्र आंदोलन की शुरूआत हुई थी. जो देश भर में जेपी आंदोलन के रूप में जाना गया. 18 मार्च 1974 को बिहार से जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन की नींव पड़ गई थी. ये आंदोलन पूरे देश में ऐसा फैल गया कि देखते ही देखते राजनीति का चेहरा ही पूरी तरह बदल गया. ये आंदोलन करीब एक साल चला. देश ने इस आंदोलन के साथ आपातकाल का वो बुरा दौर भी देखा। लेकिन अफसोस ये भी है कि जिस बिहार से तंत्र को जगाने की शुरुआत होती है। उसी बिहार का तंत्र बेरोजगारों को लेकर कुंभकर्णी नींद में सोया है। अमीनों की बहाली हो या बेल्ट्रॉन कर्मियों का मामला, वार्ड सचिव की बहाली हो या शिक्षकों की बहाली हर मामले में नौजवान परेशान हैं। वो भी तब जब बिहार का तंत्र पिछले 3 दशकों से जेपी के दो चेले लालू और नीतीश के ही हाथों में है। एक बार फिर से नौजवानों के आंदोलन को सही दिशा देने के लिए बिहार और देश को जेपी की जरूरत महसूस हो रही है।


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