भाषा पर सियासत के पीछे के मायने क्या है?
भोजपुरी-मगही पर हेमंत सोरेन को नीतीश कुमार ने करारा जवाब दिया है
PATNA:-भोजपुरी और मगही भाषा को लेकर झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के बयान पर सीएम नीतीश ने करारा पलटवार किया है। दरअसल एक मीडिया संस्थान को दिए इंटरव्यू में हेमंत सोरेन ने कहा था
‘’जो लोग भोजपुरी बोलते हैं, मगही बोलते हैं वो डॉमिनेटिंग लोग होते हैं और जो यहां (झारखंड) के लोग हैं...वो बेचारे कमजोर लोग रहे हैं। भोजपुरी-मगही बिहार की भाषा है। झारखंड की नहीं। झारखंड का बिहारीकरण क्योंग किया जाए? झारखंड आंदोलनकारियों की छाती पर पैर रखकर, महिलाओं की इज्जत लूटते वक्त भोजपुरी भाषा में कितनी गालिया दीं जाती थीं।‘’
झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के इस बयान को लेकर खूब सियासी बवाल मचा। यहां तक कि झारखंड सरकार में सहयोगी पार्टी आरजेडी और कांग्रेस भी इस बयान से किनारा करती नज़र आई। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी नपे तुले शब्दों में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सभी भाषा का सम्मान करना चाहिए। वहीं अब सीएम नीतीश ने हेमंत सोरेन के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि बिहार झारखंड में खूब प्रेम है। और राजनीतिक लाभ लेने के मकसद से इस तरह का बयान दिया है।
सवाल है कि राजनीतिक लाभ लेने के मकसद से हेमंत सोरेन के बयान देने के आरोपों में कितना दम है। क्या वाकई राजनीतिक हित साधने के मकसद से हेमंत सोरेन ने जानबूझकर ऐसा बयान दिया है। दरअसल हाल के सालों में हेमंत सोरेन ने झारखंड में ट्राइबल के बीच में अपनी पैठ बनाई है और वे उनके एक मजबूत वोट बैंक के रूप में उभरे हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में ट्राइबल के गुस्से का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा था और तब चुनाव में हेमंत सोरेन ने अपने चुनावी वादों में लंबी लिस्ट रखी थी। स्थानीय और बाहरी का मुद्दा भी उठाया था। जमीन नीति में बदलाव करने के भी संकेत दिए थे। इसका उन्हें सियासी लाभ मिला।
अभी पिछले दिनों ही हेमंत सोरेन की सरकार ने राज्य में सरकारी नौकरियों में बहाली के लिए नई नीति का ऐलान किया था। इसमें एक क्षेत्रीय और एक आदिवासी भाषा में कम से कम 30 फीसदी नंबरों को मेरिट लिस्ट में आने के लिए अनिवार्य किया गया है। इसमें हिंदी को भी हटा दिया गया था। साथ ही स्थानीय लोगों के लिए प्रति माह 30 हजार की नौकरी में 75 प्रतिशत नौकरियों को आरक्षित करने के लिए रोजगार नीति को मंजूरी दी है। भाषा से लेकर नौकरी तक में स्थानीय बनाम बाहरी का मसला हेमंत सोरेन ने 2016 से ही उठाना शुरू किया था। 2016 में जब तत्कालीन बीजेपी सरकार ने नई डोमिसाइल नीति बनाई थी तब आरोप लगा कि इसमें आदिवासी हितों को दरकिनार किया गया। तभी से हेमंत सोरेन ने इस वोट पर अपनी पकड़ बनाने के लिए खास अभियान छेड़ दिया था। इसका लाभ भी मिला। सत्ता में आने के बाद भी वे इस मुद्दे को आगे बढ़ा रहे हैं। भोजपुरी-मगही पर बयान भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
हालांकि हेमंत सोरेन की इस रणनीति से आरजेडी और कांग्रेस असमंजस में हैं। क्योंकि तेजस्वी बिहारीकरण के दम पर ही आरजेडी की पैठ झारखंड में बढ़ाना चाहते हैं। ज़ाहिर है आने वाले दिनों में बिहारीकरण और भाषा पर सियासत और गरमाएगी।
सुमित झा,कशिश न्यूज