जेडीयू निराश, आरसीपी सिंह की आस ! : यूपी में बीजेपी से गठबंधन पर जेडीयू की 'निराशा' आशा में कैसे बदल गई? पढ़िए इनसाइड स्टोरी

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निराशा कितनी जल्दी आस में बदल सकती है, ये सीखना है तो नेताओं से सीखिए।निराशावादी लोगों को नेताओं से सीख लेनी चाहिए। क्योंकि 24 घंटे पहले तक जो नेता निराश हो जाते हैं, 24 घंटे में ही वो आशावादी हो जाते हैं। जेडीयू नेताओं को ही ले लीजिए। 24 घंटे पहले लखनऊ में जेडीयू नेता केसी त्यागी प्रेस कांफ्रेंस कर कहते हैं कि बीजेपी ने उन्हें यूपी में गठबंधन का हिस्सा नहीं बनाया और वो नाराज़ नहीं निराश हैं। लेकिन अगले दिन दिल्ली में जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह कहते हैं बीजेपी के साथ लड़ेंगे और बीजेपी के साथ सकारात्मक बात चल रही है। हालांकि जब आरसीपी सिंह बीजेपी से सकारात्मक बातचीत का बयान दे रहे थे, ठीक उसी वक्त गृहमंत्री अमित शाह ने ट्विटर पर एक तस्वीर जारी कर बताया कि यूपी में उनके दो ही सहयोगी दल हैं अपना दल की अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के संजय निषाद। इस तस्वीर और अमित शाह के ट्वीट में ना जेडीयू का नाम था और ना ही जेडीयू के किसी नेता की तस्वीर।

बीजेपी से गठबंधन पर आरसीपी की आस, जेडीयू निराश

दरअसल आशावादी होने में भी दो कैटेगरी होते हैं। एक होता है अतिआशावादी और एक होता है मध्यम आशावादी, जो दूसरे आशावादी शख्स के सहारे होते हैं। जेडीयू में भी यही नज़र आ रहा है। बीजेपी से बात को लेकर आशा जेडीयू की है, या सिर्फ आरसीपी सिंह की। ये सवाल इसीलिए क्योंकि दिल्ली में हुई जेडीयू के शीर्ष नेताओं की बैठक में केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह 10 मिनट पहले बाहर निकले और मीडिया से बात करते हुए कहा कि जेडीयू बीजेपी के साथ ही यूपी में विधानसभा का चुनाव लड़ेगी और इसको लेकर बीजेपी नेताओं से सकारात्मक बातचीत चल रही है। वहीं केसी त्यागी के निराश होने के बयान पर आरसीपी सिंह ने गोलमोल जवाब दे दिया। वहीं आरसीपी सिंह के निकलने के 10 मिनट बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह बाहर निकलते हैं और कहते हैं कि आरसीपी सिंह ने बताया है कि उनकी बीजेपी नेताओं की बात चल रही है और शीघ्र गठबंधन को लेकर फैसला होगा। ललन सिंह ने कहा कि हम चाहेंगे कि बीजेपी गठबंधन को लेकर शीघ्र फैसला करें हालांकि शीघ्र का मतलब कितना शीघ्र, ये उन्होने नहीं बताया। लेकिन इतना जरूर कहा कि बीजेपी को 30 उम्मीदवारों की लिस्ट सौंपी है, यानी 30 सीटों की मांग की है। अगर बीजेपी से बात नहीं बनी तो हमारे 51 उम्मीदवारों के नाम तैयार है और लिस्ट जारी कर देंगे। साफ है सीट बंटवारे को लेकर बीजेपी से बात करने के लिए जेडीयू की तरफ से अधिकृत किए गए आरसीपी सिंह एक तरफ आरसीपी सिंह आशावादी नज़र आ रहे हैं, लेकिन आरसीपी सिंह के सहारे जेडीयू पूरी तरह से आशावादी नज़र नहीं आ रहा है। क्योंकि बीजेपी ने जब उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की थी, तो सहयोगी दलों के तौर पर निषाद पार्टी और अपना दल का ही नाम लिया था, जेडीयू का नाम तक नहीं लिया गया था। ऐसे में ये आशा सिर्फ आरसीपी सिंह की हो सकती है, जेडीयू की नहीं। इसीलिए जेडीयू अपनी तरफ से 51 उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी में जुटा है।

जेडीयू की आशा पर बीजेपी ने हर बार फेरा है पानी

वैसे हालिया घटनाएं भी बताती हैं कि बार-बार जेडीयू की आशा पर बीजेपी ने पानी ही फेरा है और जेडीयू को बार-बार बीजेपी से निराशा ही हाथ लगी है। इससे पहले कई बार जेडीयू को बीजेपी ने भाव नहीं दिया है। नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार को बार-बार पिछड़ा बताया गया, जिस पर जेडीयू और नीतीश ने एतराज जताया, लेकिन फिर भी रिपोर्ट जारी होती रही। केंद्र ने नीति आयोग के मुद्दे पर भी जेडीयू को भाव नहीं दिया। फिर बिहार को विशेष दर्जे के मुद्दे पर भी बीजेपी ने भाव नहीं दिया। जेडीयू ने ट्विटर पर पीएम को टैग कर अभियान भी चलाया। सीएम नीतीश और जेडीयू अध्यक्ष ने विशेष दर्जे की मांग की। लेकिन बीजेपी ने बिहार को विशेष दर्जा देने से इंकार कर दिया। जातीय जनगणना की मांग पर भी केंद्र ने इंकार कर दिया। सीएम की अगुआई में प्रतिनिधिमंडल पीएम मोदी से भी मिला। लेकिन केंद्र ने जातीय जनगणना कराने से साफ इंकार कर दिया और अब बिहार में अब अपने खर्चे पर जातीय जनगणना की तैयारी है। वहीं सम्राट अशोक के मुद्दे पर विवाद में भी बीजेपी ने भाव नहीं दिया। सम्राट अशोक की औरंगजेब से तुलना करने वाले लेखक के अवार्ड वापसी की मांग जेडीयू कर रहा है। लेखक के पद्मश्री अवार्ड वापसी की मांग को लेकर ट्विटर पर पीएम को उपेंद्र कुशवाहा और ललन सिंह ने टैग किया। बीजेपी ने पीएम को टैग करने को लेकर उल्टे इशारों में सीएम हाउस खाली कराने को लेकर चेतावनी तक दे डाली और अब यूपी में भी गठबंधन को लेकर बीजेपी की तरफ से आखिरी वक्त तक जेडीयू को लटकाए रखा गया है। अब तक सीधे-सीधे बीजेपी ने जेडीयू को गठबंधन को लेकर कुछ नहीं कहा। यानी साफ है हर बार हर मुद्दे पर जेडीयू को बीजेपी भाव नहीं दे रही है, फिर भी जेडीयू नाराज़ नहीं निराश होकर रह जाता है, लेकिन फिर भी जेडीयू के पास बीजेपी से आस लगाए रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि बिहार एनडीए में बीजेपी 74 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है, जिसके साथ मिलकर जेडीयू सरकार चला रहा है और उसके मुखिया नीतीश कुमार हैं। देखना होगा इस बार यूपी में जेडीयू को बीजेपी से निराशा ही हाथ लगती है या सीटों की आस पूरी होती है।


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