जल संकट से मचा हाहाकार : पानी की किल्लत से जूझ रहा झारखंड का ये पंचायत, दर-दर भटकने को मजबूर महिलाएं
सरायकेला : झारखंड में भीषण गर्मी पड़ रही है. नदी, नाला, तालाब सब सूखने लगे हैं. इसक असर लोगों के रोजमर्रा की जिन्दगी पर पड़ रहा है. सरायकेला में रसुनिया पंचायत के कई गांवों में पानी की किल्लत से त्राहिमाम मचा है. नहाना भी मुश्किल हो गया है. लोगों के साथ-साथ पशुओं को भी पानी की मार झेलना पड़ रहा है. लोग
बामनी नदी सुख जाने से रसुनिया पंचायत के दर्जनों गांव पर प्रभाव पड़ा. यहां के ग्रामीणों को एक बूंद पानी के लिये तरसना पड़ रहा है. महिलाओं को एक बाल्टी पानी के लिये घंटो अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है. पानी के लिये धूप में कतार में खड़ा होना पड़ रहा. सबसे अधिक परेशानी सुखसारी, तिरुलडीह, रसुनिया, हाथीनादा, रुयानी, पियाल्डीह, कुंगलाठाड़ गांव में हैं. यहां की महिलाओं को प्रतिदिन डेकची, हांडी और बाल्टी लेकर दूर दराज जाना पड़ता है और पानी जमा कर माथे पर ढोकर घर वापस आना पड़ता है. यही नहीं इस इलाके में पशु भी प्यास बुझाने के लिये जलाशयों के आस-पास चक्कर काटते रहते हैं.
देश में लोकसभा चुनाव चल रहा है. ऐसे में हर पार्टी के नेता लोगों से जनसंपर्क साधने में जुटे हैं. इससे पहले हुए चुनाव में भी सभी दलों के नेता इस इलाके में पहुंचे थे. सभी ने पानी की समस्या को खत्म कर देने का वादा दिया था. लेकिन आज नतीजा क्या है, सबके सामने है. इस चुनाव में भी नेता जनता को रिझाने में जुटे हैं. हाथ जोड़कर लोगों से वोट मांग रहे हैं. पानी की समस्या को खत्म करने का आश्वासन दे रहे हैं. लेकिन जैसे ही चुनाव जीत जाते हैं, सभी वादे भी भूल जाते हैं.
चांडिल में पेयजल स्वच्छता विभाग की ओर से कई पंचायतों में निर्मल अमृत पानी योजना चलाया जा रहा है, जिसमे केन्द्र और राज्य सरकार दोनों का योगदान है. लेकिन इस योजना के बाद भी आमलोगों को पानी की सुविधा नहीं मिली. सभी गांवों में ये योजना हाथी की सफेद दांत साबित हुआ. ऐसे में माना जा रहा है कि ये योजना सिर्फ ठेकेदार नेता और पदाधिकारियों की कमाई का जरिया बन गया है. वर्ष 2022-23 में 15 कोरोड़ की लागत से पानी टंकी बनाया गया. इतने कम समय में ही टंकी में दरार पड़ गये, ये कभी भी टूटकर धराशायी हो सकता है. रसुनिया डुगरी में बने पानी की मीनार हाथ के दांत की तरह है. गांव में घुमने के बाद पता चलता है कि योजना फेल है.
सुकसारी पुनर्वास स्थल और आसपास के लोगों को इस वर्ष भी गर्मी में शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो पायेगा. करीब 15 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी लोग पेयजल की सुविधा से वंचित हैं. यहां के लोग पिछले पांच साल से पानी का इंतजार कर रहे हैं. पीएचईडी की ओर से 15 करोड़ की लागत से चार लाख लीटर क्षमता की जलमीनार पिछले करीब पांच वर्षों से बनकर तैयार है. पर लोगों को पेयजल सप्लाई नहीं हो पा रही है. जबकि इस जलमीनार से तीन हजार से ज्यादा घरों को पानी सप्लाई करने की योजना है. गर्मी ने दस्तक दे दी है और सरकारी कुव्यवस्था के कारण क्षेत्र में जलसंकट छाया हुआ है.
14 मार्च पीएचईडी के सहायक अभियंता मंगीलाल गिलुवा ने जलमीनार एवं पुनर्वास स्थल में पेयजल संकट का निरीक्षण कर एक सप्ताह के भीतर जलापूर्ति सुचारू करने का अश्वासन दिया था. पीएचईडी की ओर से बनी जलमीनार की क्षमता है 4 लाख लीटर. 15 करोड़ खर्च करने के बाद लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है. संवेदक की मनमानी के कारण आज लोगो को पानी की संकट से जूझना पड़ रहा है.
सरायकेला से विजय की रिपोर्ट