बिहार के इस गांव में नहीं पहुंचता एंबुलेंस : शव ले जाने के लिए चचरी पुल है एकमात्र सहारा, आजादी के बाद से आउट ऑफ कवरेज है यह गांव

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 The lives of the people of this village of Muzaffarpur are being ruined with the help of Chachari bridge.  The lives of the people of this village of Muzaffarpur are being ruined with the help of Chachari bridge.

MUZAFFARPUR :बिहार सरकार भले ही विकास को लेकर ढिंढोरा पीट ले लेकिन जमीनी हकीकत जानकर पैर के नीचे से जमीन खिसक जाएगी। आजाद देश में आज भी इस इलाके के लोग गुलामी की जंजीरों में घिरे हुए हैं जबकि सूबे के मुखिया को विकास पुरुष के नाम से जाना जाता है।

बिहार के इस गांव में नहीं पहुंचता एंबुलेंस

राजधानी पटना हो या नालंदा...आपको चमचमाती सड़कें दिख जाएंगी। सरपट दौड़ती गाड़ियां भी दिख जाएंगी। जगह-जगह ओवरब्रिज भी आपको मिल जाएंगे लेकिन जैसे ही बात मुजफ्फरपुर की आती है, यहां विकास धीमी पड़ जाती हैं। विकास की पोल खोलती तस्वीर देखकर आप यही कहेंगे कि विकास रेंगती है।

आजादी के करीब 80 साल गुजरने को हैं। यहां इस गांव में आज भी लोगों की नसीब वही है, जो अंग्रेजों के ज़माने में हुआ करता था। तभी डेड बॉडी को अर्थी के सहारे कंधों पर श्मशान पहुंचाया जाता था। पहले भी बांस बल्ली और फट्टी के सहारे श्मशान तक शव पहुंचता था। अब वही फट्टी यातायात और ज़िन्दगी जीने का सहारा बन गई है। यहां के लोगों की जिंदगी चचरी के सहारे चल रही है।

शव ले जाने के लिए चचरी पुल है एकमात्र सहारा

अस्पताल जाना हो या ससुराल या फिर मायके या श्मशान घाट लेकिन सड़क नसीब नहीं होगा। चचरी पुल होकर कंधों के सहारे ही जाना पड़ेगा। यह किस्मत है औराई के मधुवन प्रताप गांव की। यहां का एक युवक सड़क हादसे का शिकार होकर अस्पताल में दम तोड़ देता है। एम्बुलेंस की व्यवस्था होती है ताकि उसका शव आसानी से घर पहुंचाया जा सके लेकिन उस गांव के लोगों की किस्मत ऐसी कहां कि चारपहिया वाहन से जिंदा या मुर्दा गांव पहुंच सके क्योंकि नालंदा और पटना जैसी चमचमाती यहां सड़कें नहीं है।

बस केवल है तो साफ-सुथरा बांस की फट्टी का चचरी पुल, जिसपर आप चल तो सकते हैं, गाड़ियां भी चला सकते हैं लेकिन किस्मत में मौत की बाजी लगानी होगी। वहीं, इस मामले को लेकर ग्रामीण बताते हैं कि ये गांव विकास के नाम पर कोसों दूर है। इस गांव में घर तक बारात नहीं पहुंच पाती है। किसी की मौत के बाद भी एम्बुलेंस गांव तक नहीं पहुंच पाती है। चचरी और खटिया लोगों का सहारा बन चुका है।