'खाकी' देखती रही, 'खाक' हो गया परिवार : पुलिस-प्रशासन की शह पर बेखौफ होते हैं ज़मीन माफिया?

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सोचिए एक मां की कोख में पल रहा बच्चा बाहर निकलकर दुनिया देखना चाहता हो, जीना चाहता हो। लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी चिता में आग उसके पैदा होने से पहले ही लगा दी जाएगी। उस बच्चा को नहीं पता था कि इस दुनिया में अगर आप कमजोर हैं तो आपकी ज़िंदगी भी किसी और के रहमोकरम पर निर्भर करती है। ज़मीन के चंद टुकड़े के लिए यहां किसी को भी ज़िंदा जला दिया जाता है और ज़िंदगी बचाने का जिम्मा जिस पर है, जिसे पुलिस और प्रशासन कहा जाता है, वो भी कमजोर के साथ नहीं, दबंगों के साथ ही खड़ा नज़र आता है। दरभंगा से आई दिल दहला देने वाली घटना कुछ ऐसी ही है। जहां कोख में पल रहे बच्चे की जन्म लेने से पहले ही हत्या कर दी गई क्योंकि ज़मीन के चंद टुकड़े के लिए ज़मीन माफियाओं ने एक गर्भवती महिला समेत उसके परिवार को ज़िंदा जला दिया। जिसमें महिला और उसके भाई की मौत हो चुकी है। घटना 10 फरवरी की है, जब ज़मीन विवाद में दबंग पहले बुलडोजर लेकर आए, घर को तोड़ने की कोशिश की और फिर पूरे परिवार को ज़िंदा आग में झोंक दिया गया। किसी तरह परिवार की एक लड़की ने जान बचाई लेकिन वो अपनी गर्भवती दीदी और अपने भैया को नहीं बचा पाई। पिता का साया 2019 में ही उठ चुका था। जिस गर्भवती महिला की मौत हुई, उसकी एक छोटी बेटी भी है, जो अपनी मां को ढूंढ रही है।

सवाल है किसी समाज, सिस्टम और पुलिस प्रशासन के रहते कोई कैसे हिम्मत कर सकता है कि पूरे परिवार को ज़िंदा जला दें। अगर इतनी हिम्मत कोई कर लेता है तो फिर समाज, सिस्टम और पुलिस के होने का मतलब क्या रह जाता है। ऐसी पुलिस का क्या करें,ऐसी पुलिस और प्रशासन का क्या करें,जिसके रहते कोई किसी के घर पर बुलडोजर चढ़ाने आ जाता है और फिर परिवार को ज़िंदा जला देता है। ये सवाल दरभंगा से आई दिल दहला देने वाली इस घटना को लेकर है।

पीड़ित परिवार वालों की माने तो पुलिस से एक दिन पहले ही 9 फरवरी को दबंगों से सुरक्षा की गुहार लगाई थी। शायद पुलिस उस दिन साथ देती, तो आज ये परिवार सुरक्षित रहता।9 फरवरी छोड़िए 10 फरवरी को जब दबंगों ने घर में घुसकर परिवार समेत जिंदा जलाने की कोशिश की, तब भी परिवारवाले पुलिस को कॉल करते रहे, बुलाते रहे, लेकिन वक्त पर कोई नहीं आया। पुलिस आई भी तो सबकुछ खाक होने के बाद सिर्फ खानापूर्ति करने और उल्टे बुलडोजर के ड्राइवर को पकड़ने के बाद छोड़ दिया।

यानी पूरा परिवार खाक होता रहा और खाकी वाले सिर्फ देखते रहे। अब जब सबकुछ खाक हो गया, तो खाकी वालों ने थाना प्रभारी को पहले लाइन हाजिर किया और फिर निलंबित कर दिया है। 8 लोगों को पकड़ा भी है, लेकिन अभी भी पूरे परिवार को ज़िंजा जलाने वाला मुख्य आरोपी शिवकुमार झा फरार है। सोचिए तहखाने से भी शराब की बोतल ढूंढ निकालने वाली पुलिस पूरे परिवार को जिंदा जलाने वाले शिवकुमार झा को नहीं ढूंढ पा रही है। सवाल है कि

9 फरवरी को दबंगों से सुरक्षा की गुहार लगाने पर पुलिस क्यों नहीं जागी?

9 फरवरी को ही पुलिस कार्रवाई करती तो बच सकता था परिवार?

10 फरवरी को भी पुलिस को बुलाने पर भी वक्त पर भी क्यों नहीं पहुंची पुलिस?

घटना के 5 दिन बीतने के बाद भी मुख्य आरोपी शिवकुमार झा क्यों फरार है?

सरेआम परिवार को आग लगाने के बाद भी कैसे फरार हो गया शिवकुमार झा?

पुलिस क्या दबंगों, पैसे वालों के लिए ही सिर्फ काम करती है?

क्या इसे ही सुशासन कहते हैं?

सवाल ये भी है कि क्या ज़मीन माफियाओं की पुलिस प्रशासन के साथ मिलीभगत होती है, इसीलिए इतने बेखौफ होते हैं। क्योंकि दरभंगा में ज़मीन माफियाओं ने परिवार को ज़िंदा जला दिया, लेकिन पुलिस को सूचना देने के बाद भी पुलिस ने समय पर कार्रवाई नहीं की। वहीं सीमांचल में जमीन माफिया ‘गुंडा बैंक’ चलाते हैं। सीमांचल में कमजोर लोगों को दबंग सूद पर पैसा देते हैं। पैसा समय पर नहीं चुकाने पर उनकी जमीन अपने नाम लिखा लेते हैं। जमीन का दाम ज्यादा होने या पैसा कम होने पर बाकी पैसा देने का आश्वासन देकर जमीन लिखवाते हैं। कुछ दिनों के बाद पूरे परिवार को मृत पाया जाता है। साल 2020 में इसी तरह की घटना में पति-पत्नी और बच्चे का मर्डर हुआ। पुलिस घटना को आत्महत्या मानकर चुप बैठ गई। जांच में पता चला कि 80 लाख में बिकी जमीन का हिस्सा उसे नहीं दिया गया। हाल ही में मामले के आरोपियों की जमानत पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने ‘गुंडा बैंक’ से निपटने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने ‘गुंडा बैंक’ पर लगाम लगाने के लिए SIT गठन का निर्देश दिया है। ज़ाहिर है जमीन माफिया अगर इतने बेखोफ है, तो इसके पीछे वजह है सिस्टम से उनको मिली शह।



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