'सम्राट' के बहाने पिछड़ों की सियासत ! : सम्राट अशोक बहाना है, वोटबैंक की सियासत चमकाना है !

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सम्राट अशोक की औरंगजेब से तुलना किए जाने पर बिहार में इन दिनों सियासी बवाल मचा है। तुलना करने वाले लेखक दया प्रकाश सिन्हा का बीजेपी से रिश्ता बताकर जेडीयू हमलावर है। जो जेडीयू और बीजेपी सरकार में साथ हैं, उसी जेडीयू और बीजेपी के शीर्ष नेताओं के बीच जुबानी जंग चल रही है। सवाल है कि आखिर इसके पीछे क्या वजह है। सवाल का जवाब समझने के लिए जीतनराम मांझी का ये ट्वीट देखिए।

जीतनराम मांझी को सम्राट अशोक को पिछड़े वर्ग का बताकर सम्राट के अपमान को पिछड़े, दलित का अपमान बता दिया। यानी सम्राट अशोक बहाना है, दरअसल पिछड़ों के वोटबैंक की सियासत चमकाना है। जाति की सियासत के लिए कुख्यात बिहार में किसी भी महापुरुष को जाति के दायरे में बांधकर सियासत करने की रवायत पुरानी है। सम्राट अशोक पर बिहार में रजानीति नई नहीं है। 2015 विधानसभा चुनाव में अशोक की जाति मुद्दा बना था। आज जो उपेंद्र कुशवाहा सम्राट अशोक के नाम पर बीजेपी के खिलाफ आग उगल रहे हैं, 2015 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ थे और तब बीजेपी ने ही सम्राट अशोक की जाति खोजी थी। तत्कालीन बीजेपी पार्षद सूरजनंदन कुशवाहा ने सम्राट अशोक को कोईरी जाति का बताकर 2320 वीं जयंती आयोजित की थी। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद समेत बीजेपी के बड़े नेता उस कार्यक्रम में मौजूद थे। उधर नीतीश कुमार बीजेपी से नाता तोड़ लालू के साथ गलबहियां करने लगे और लव-कुश के चक्कर में सम्राट अशोक पर उनकी पार्टी ने भी दावेदारी कर दी। नतीजा ये निकला कि सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार ने 14 अप्रैल को अशोक जयंती घोषित करते हुए राजकीय छुट्टी घोषित कर दी। इस साल भी 9 अप्रैल को अशोक जयंती पर सार्वजनिक अवकाश दिया गया है। इस बात की जानकारी खुद पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने ट्वीट कर दी।

मतलब तब बीजेपी और नीतीश के विरोध उपेंद्र कुशवाहा ने एकसुर में सम्राट अशोक की जाति बताई और नीतीश कुमार ने बर्थ डे खोज लिया। बिहार के नेताओं को इससे मन नहीं भरा तो सम्राट अशोक की तस्वीर खोजकर ले आए। रविशंकर प्रसाद ने सम्राट अशोक की उस तस्वीर के साथ डाक टिकट जारी कर दिया। एक टिकट तो 2017 में पटना के जनरल पोस्ट ऑफिस में जारी किया गया। उधर इतिहासकार कह रहे थे कि सम्राट अशोक की जाति या जन्मदिन को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता, इधर बीजेपी और जेडीयू कुंडली निकाल कर पटना में बैठ गई। इतिहासकारों में अशोक की मां की जाति पर तरह-तरह की राय है। कुछ कहते हैं कि मुताबिक बिंदुसार की पत्नी शूद्र थी। कुछ इतिहासकार उन्हें क्षत्रिय मानते हैं। लेकिन नेताओं ने अपनी सियासत के लिए सम्राट अशोक को कोईरी जाति के दायरे में बांधकर पिछड़ों की सियासत साधने की पूरी कोशिश की। इस बार भी वही हो रहा है। खास तौर पर ये वक्त इसीलिए भी ज्यादा मुफीद है, क्योंकि यूपी में पिछड़े वर्ग के नेता लगातार बीजेपी से नाता तोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में बिहार में भी सम्राट अशोक के बहाने पिछड़ों की सियासत को हवा देकर जेडीयू बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश में है।

ज़ाहिर है बिहार में बिना जाति के सियासत हो नहीं सकती है और हर सियासत के पीछे जाति का एंगल जरूर होता है। सम्राट अशोक के मामले में भी जाति की सियासत ही मकसद है।


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