नीतीश के मिशन 2024 का असर : केजरीवाल ने पुकारा, मजबूती से खड़े नीतीश ने केन्द्र को ललकारा

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PATNA : कर्नाटक विधान सभा चुनाव में करारी हार के बाद बीजेपी का कमल भले कुम्हलाया दिख रहा हो लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरी तरह खिले-खिले नजर आ रहे हैं. शनिवार को बंगलुरु में कांग्रेस नेता सिद्दारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के साथ पहुंचे नीतीश का कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने जिस गर्मजोशी से स्वागत किया और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बगल में कुर्सी देकर यह साफ संकेत देने की कोशिश की कि नीतीश कुमार उऩके लिये कितने महत्वपूर्ण हैं.

जबकि उस मंच पर कांग्रेस के दो राज्यों हिमाचल और छतीसगढ के मुख्यमंत्रियो के अलावा एनसीपी प्रमुख शरद पवार माकपा महासचिव सीताराम येचुरी , सीपीआई महासचिव डी राजा, नेशनल कांफ्रेस नेता फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती भी मौजूद रही. शपथ ग्रहण के बाद इन नेताओं ने मंच पर एक जुटता का प्रदर्शन भी किया.

हालांकि इस समारोह में कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव , शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को भी निमंत्रित किया था लेकिन ये नेता नही पहुंचे थे.

वहीं आप प्रमुख दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, बीआरएस प्रमुख तेलागना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को नहीं बुलाकर यह साफ संकेत दे दिया कि जहां कांग्रेस बनाम दिल्ली में आप या तेलांगना में बीआरएस है उससे समझौता के मूड में नही है. दूसरी तरफ उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, हों या यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री सपा प्रमुख मायावती हों जिन्हें कांग्रेस बीजेपी का परोक्ष मददगार मानती है उनसे भी कोई ताल्लुक ना रहे.यानि कांग्रेस की नजर सिर्फ 2024 का लोकसभा चुनाव ही नही हैं इन राज्यों में अपनी सरकार भी बनाना है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसी लिये शामिल नही हुई कि वह चाहती है कि आगामी विधान सभा चुनाव में कांग्रेस उसके खिलाफ मैदान में ना हो जबकि कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता के इस शर्त को साफ तौर से ठुकरा दिया है और कहा है कि यह सवाल ही ऩही उठता .

यानि विपक्षी एकता में जहां कांग्रेस की महत्वाकांक्षा बड़ी बाधा है तो कई क्षेत्रीय दलो का कांग्रेस के साथ जानी दुशमनी . इन सबके बीच नीतीश का विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने की मुहिम कठिन ही नही असंभव सा भी दिखता है.

इस परिस्थिति में भी नीतीश अपने मिशन पर पूरी तरह से कायम है. शायद यही वजह है कि नीतीश बंगलुरु यानि दक्षिण के मुख्यद्वार में शपथ ग्रहण संपन्न होने के बाद सीधे हस्तिनापुर यानि दिल्ली पहुंचते हैं और मिशन में लग जाते हैं.रविवार को नीतीश ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की . इस अवसर पर तेजस्वी यादव के साथ-साथ बिहार के जलसंसाधन मंत्री संजय झा और राजद सांसद मनोज झा भी मौजूद रहे.

करीब एक घंटे की नीतीश और केजरीवाल की मुलाकात में दोनों नेताओं ने विपक्षी एकता को मजबूत करने की ही बात नहीं की बल्कि नीतीश अरविंद केजरीवाल के साथ मजबूती से खड़े दिखे. यानि दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार के बीच चल रहे टकराव में नीतीश ने मजबूती से केजरीवाल का समर्थन किया. यानि नीतीश ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि विपक्षी एकता केवल बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिये ही नही है केन्द्र सरकार द्वारा गैर बीजेपी शासित राज्यो के मुख्यमंत्रियो को पताड़ना से मुक्ति दिलाने के लिये भी है . इतना ही नही केन्द्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार के अधिकार के खिलाफ अध्यादेश लाने का संसद में विरोध करने का भी भरोसा दिलाया .

यानि नेीतीश ऐसा नेता बनकर उभरना चाहते है कि वे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ताल ही नहीं ठोकने वाले है अगर जरूरत पड़ी तो दो - दो हाथ करने से भी पीछे नही हटेगें. शायद यही वजह है कि नीतीश राहुल और केजरीवाल दोनों के प्यारे हैं. यानि नीतीश का मिशन देर से ही सही अपना असर दिखाने लगा है. देखिये आगे -आगे होता है क्या.

अशोक मिश्रा , कशिश न्यूज .


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